मुखालफत से मेरी शख्सियत संवरती है..
पहली दफा सियासी समर में कूदे अमर सिंह मुखालफत का सामना करने दिग्गजों के 'आंगन' में हैं। मगर, दुश्मनों (प्रतिद्वंद्वियों) के एहतराम (सम्मान) का अंदाज कुछ ऐसा अख्तियार किया है कि हर शब्द के साथ उनकी खुद की शख्सियत संवरती जाती है। इसका अहसास खुद अमर सिंह को इतना पक्का है कि चुनावी मंच से वह मशह
आगरा, जागरण संवाददाता। पहली दफा सियासी समर में कूदे अमर सिंह मुखालफत का सामना करने दिग्गजों के 'आंगन' में हैं। मगर, दुश्मनों (प्रतिद्वंद्वियों) के एहतराम (सम्मान) का अंदाज कुछ ऐसा अख्तियार किया है कि हर शब्द के साथ उनकी खुद की शख्सियत संवरती जाती है। इसका अहसास खुद अमर सिंह को इतना पक्का है कि चुनावी मंच से वह मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र का यह शेर गुनगुनाना नहीं भूलते- 'मुखालफत से मेरी शख्सियत संवरती है, मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूं।'
18 साल से राज्यसभा सांसद अमर सिंह पहली दफा वाया जनता दरबार, दिल्ली जाने की हसरत पाले आए हैं। वह ऐतिहासिक फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र से रालोद-कांग्रेस गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी हैं। उनके सामने बसपा से मौजूदा सांसद सीमा उपाध्याय, भाजपा से पूर्व मंत्री चौ. बाबूलाल हैं, तो सपा से कैबिनेट मंत्री अरिदमन सिंह की पत्नी पक्षालिका सिंह चुनावी मैदान में हैं। अपने बेजोड़ मैनेजमेंट के साथ मैदान में उतरे अमर सिंह का मुकाबला भाजपा की मोदी लहर से है, बसपा के वोट बैंक से है, लेकिन सबसे रोचक एपीसोड उस सपा से शुरू हुआ है, जिसे कभी वह मुखिया मुलायम सिंह के साथ मिल कर चलाया करते थे।
आगरा की जमीं पर कदम रखने के बाद सपा सुप्रीमो के लिए नरम रुख दिखाने वाले अमर सिंह को वापसी में सपा के महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव से तल्ख टिप्पणी मिली, तो धीरे-धीरे जुबानी जंग की धार तेज हो गई। उसके बाद से चुनावी सभाओं में अमर सिंह का अंदाज बदल चुका है। अब ठाकुर अमर सिंह के साथ उनका 'ऊंचा कद', बॉलीवुड का ग्लैमर और चौ. परिवार की चौधराहट नजर आती है। हजारों की भीड़ में यह कहने से उन्हें गुरेज नहीं कि यहां उनके बराबर हैसियत का कोई प्रत्याशी नहीं। सीना ठोक कर कहने में हिचक नहीं कि कोई विरोधी आरोप लगा दे कि अमर सिंह शोहरत या दौलत के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। मूंछ पर ताव देकर कहते हैं-18 साल से सांसद हूं। चुनाव का परिणाम जो भी रहे, सांसद तब भी रहूंगा।
लच्छेदार बातों और काव्यात्मक लहजे से विरोधियों पर निशाना साधकर अपनी शख्सियत संवारते-संवारते उसी हुनर से जनता के साथ खड़े हो जाते हैं। यहां भी शब्दों की जादूगरी है। कहते हैं कि आप जमीं पर बैठे जमींदार हैं और मैं चौकी (लकड़ी का मंच) पर बैठा चौकीदार हूं। मैंने चुनाव के लिए नामांकन नहीं किया। पांच साल की आपकी नौकरी करने के लिए अर्जी लगाई है। इस बीच मोदी, मुलायम और मायावती पर लगातार उनकी चुटकियां चलती रहती हैं।