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साढ़े चार साल में अपने ही फैसलों को बार-बार पलटती रही अखिलेश सरकार

अखिलेश सरकार बनने के बाद युवा नेतृत्व, पारदर्शिता व दृढ़ इच्छाशक्ति की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं। लेकिन उनके फैसले बदलते रहे हैं, जिनमें हटाए गये सात मंत्रियों की बहाली भी शामिल है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 27 Sep 2016 10:02 AM (IST)Updated: Tue, 27 Sep 2016 11:14 AM (IST)
साढ़े चार साल में अपने ही फैसलों को बार-बार पलटती रही अखिलेश सरकार

लखनऊ (जेएनएन)। तब प्रदेश सरकार को शपथ लिये तीन महीने ही हुए थे। जून में गर्मी की छुïिट्टयां चल रही थीं। बच्चे व बड़े शाम को मॉल्स में घूमने जाते थे, तभी खबर आई कि राज्य सरकार ने शाम सात बजे मॉल्स की बत्ती बंद करने का फैसला किया है। सरकार बनने के बाद यह पहला बड़ा फैसला था, किंतु इसे वापस लेना पड़ा। ऐसे ही सरकार के फैसले बदलते रहे हैं, जिनमें हटाए जाने के बाद सात मंत्रियों की बहाली भी शामिल है।

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अखिलेश सरकार बनने के बाद युवा नेतृत्व, पारदर्शिता व दृढ़ इच्छाशक्ति की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं। ऐसे में बिजली संकट से निपटने के लिए 17 जून 2012 को मॉल्स की बिजली बंद करने के फैसले की बड़ी आलोचना हुई थी। इसके साथ ही रेस्टोरेंट दस बजे बंद करने का भी फैसला सरकार ने लिया था। बाद में दोनों फैसले वापस लेने पड़े थे। अभी इस फैसले पर बवाल चल ही रहा था कि तीन जुलाई 2012 को विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधायकों को विधायक निधि से बीस लाख रुपये तक की कार खरीदने की अनुमति देने का एलान किया। इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ।

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हालांकि इसका लाभ सभी विधायकों को मिलना था किंतु विपक्ष के विधायकों ने इसे स्वीकार नहीं किया। यही नहीं वरिष्ठ सपा नेता मोहन सिंह तक ने इसका विरोध किया था। अगले दिन ही सरकार को यह फैसला भी वापस लेना पड़ा था। अखिलेश सरकार के मौजूदा कार्यकाल में ऐसे ही तमाम फैसले हुए हैं। इस दौरान 17 मंत्री हटे, जिनमें से सात दोबारा मंत्री बन गए। इसकी शुरुआत हुई अक्टूबर 2012 में, जब तत्कालीन राज्यमंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया गया।

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फरवरी 2013 में पंडित सिंह दोबारा मंत्री बना दिये गए। मार्च 2013 में पुलिस क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) को इस्तीफा देना पड़ा था। सात महीने के भीतर ही अक्टूबर 2013 में राजा भैया को दोबारा मंत्री बनाया गया। इस बीच अप्रैल 2013 में तत्कालीन मंत्री राजाराम पांडेय को बर्खास्त किया गया, जिनका उसी वर्ष निधन भी हो गया। अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री ने एक साथ आठ मंत्रियों राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, अम्बिका चौधरी, शिवकुमार बेरिया, नारद राय, शिवाकांत ओझा, आलोक शाक्य, योगेश प्रताप सिंह व भगवत शरण गंगवार को बर्खास्त किया था।

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इनमें से नारद राय इसी साल 27 जून को और शिवाकांत ओझा सोमवार को दोबारा मंत्री बन गए। हालांकि इससे पहले नौ मार्च 2014 को बर्खास्त किये गए आनंद सिंह व मनोज पारस दोबारा मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके। इसी वर्ष 21 जून को मुख्यमंत्री ने बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। उनका नाम कौमी एकता दल के सपा में विलय के मसले में सामने आया था। यह बर्खास्तगी महज छह दिन चली और 27 जून को बलराम फिर मंत्री बन गए। 27 जून को बर्खास्त हुए मनोज पांडेय सोमवार को हुए विस्तार में मंत्री बनने में कामयाब हुए। पिछले दिनों समाजवादी परिवार के सत्ता संग्र्राम में कुर्सी गंवाने वाले राज किशोर सिंह व गायत्री प्रजापति में भी गायत्री दोबारा मंत्री बनने में सफल हो गए।


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