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    अगर ये चाहे तो कर्ज हो जाए सस्ता, इसे कहते हैं रेपो रेट

    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक बार फिर रेपो रेट में इजाफा कर दिया है। इसके बाद ही बाजार में यह बात तेजी से फैसले लगी कि लोगों के कर्ज की ईएमआई बढ़ जाएगी। रेपो रेट ही वो बला है जो कर्ज को सस्ता भी कर सकती है और महंगा भी। लेकिन ये होगा कैसे और क्या है ये रेपो रेट। जब कभी बैंक यह समझे कि उनके

    By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

    नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक बार फिर रेपो रेट में इजाफा कर दिया है। इसके बाद ही बाजार में यह बात तेजी से फैसले लगी कि लोगों के कर्ज की ईएमआई बढ़ जाएगी। रेपो रेट ही वो बला है जो कर्ज को सस्ता भी कर सकती है और महंगा भी। लेकिन ये होगा कैसे और क्या है ये रेपो रेट। जब कभी बैंक यह समझे कि उनके पास पैसे की उपलब्धता कम है या फिर रोजमर्रा के कामकाज के लिए रकम की जरूरत है तो आरबीआई से कम अवधि के लिए कर्ज ले सकता है। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

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    अब रेपो रेट दर बढ़ती है तो इसका सीधा मतलब है कि रिजर्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा जिसका असर बैकों पर पड़ेगा। बैंकों पर बोझ बढ़ने से लोन लेने वाले उपभोक्ताओं पर भी प्रभाव पड़ता है। ऐसे स्थिति में बैंक अपना बोझ कम करने के लिए ग्राहकों पर बोझ डाल देते हैं और कर्ज की ब्याज दरों को बढ़ा देते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप 15 साल की अवधि के लिए 10 फीसद ब्याज दर पर 30 लाख रुपये का होम लोन लेते हैं तो आपकी ईएमआई 32,238 रुपये होगी। वहीं, इस ब्याज दर में 0.25 फीसद का इजाफा होता है तो आपकी ईएमआई बढ़कर 32,698.53 रुपये हो जाएगी। इसे विपरित अगर ब्याज दर कम होती है तो ईएमआई में भी कमी आ जाएगी या नये लोन के लिए कम ईएमआई का भुगतान करना होगा।

    आइये एक नजर उस पर भी डाल देते हैं जो इसके विपरित है। रिवर्स रेपो दर रेपो दर का उलटा है। इसके तहत बैंक अपना बकाया रकम अपने पास रखने की बजाए रिजर्व बैंक के पास रखते हैं। इसके लिए रिजर्व बैंक की तरफ से उन्हें ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर बैंक को ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं। यदि रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी का प्रवाह है, तो वह रिवर्स रेपो दर में इजाफा कर देता है, जिससे बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना धन रिजर्व बैंक के पास रखने को प्रोत्साहित होते हैं और इस तरह उनके पास बाजार में छोड़ने के लिए कम धन बचता है।