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आर्थिक सुस्ती से तनाव के शिकार हो रहे कर्मचारी

नौकरी जाने का डर और भविष्य को लेकर अनिश्चितता भारतीय कर्मचारियों को बीमार बना रही है। आर्थिक सुस्ती के बाद से कर्मचारियों को तनाव संबंधी बीमारियों ज्यादा घेर रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक 71 फीसद कर्मचारियों ने इन बीमारियों से पीडि़त होने की बात स्वीकार की है। ग्लोबल मानव संसाधन सेवा प्रदाता रेगस के इस सर्वे में

By Edited By: Published: Fri, 20 Dec 2013 01:19 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

नई दिल्ली। नौकरी जाने का डर और भविष्य को लेकर अनिश्चितता भारतीय कर्मचारियों को बीमार बना रही है। आर्थिक सुस्ती के बाद से कर्मचारियों को तनाव संबंधी बीमारियों ज्यादा घेर रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक 71 फीसद कर्मचारियों ने इन बीमारियों से पीडि़त होने की बात स्वीकार की है।

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ग्लोबल मानव संसाधन सेवा प्रदाता रेगस के इस सर्वे में 24 फीसद कर्मचारियों ने माना कि उन्हें नौकरी जाने का भय रहता है। वह जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं उसके भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक किसी भी तरह का तनाव बीमारियों की लंबी श्रृंखला का कारण बन सकता है। इन बीमारियों में मोटापा, हृदय रोग, अल्जाइमर, मधुमेह, अवसाद, गैस संबंधी रोग और अस्थमा रोग शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय अस्थिरता के कारण नौकरी बाजार सुस्त है। तनाव संबंधी बीमारियों के कारण कंपनियों और उद्योगों में कर्मचारियों की अनुपस्थिति 56 फीसद तक बढ़ी है। इससे न सिर्फ उत्पादकता प्रभावित होती है, बल्कि यह कर्मचारियों के बिगड़ते स्वास्थ्य का भी स्पष्ट संकेत देता है। कर्मचारी तनाव से बचने के लिए कामकाज के लिए आसान स्थितियां तलाशने पर भी जोर देते हैं।

रेगस इंडिया के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर साहिल वर्मा ने कहा कि कर्मचारियों से कम समय और कम वेतन में ज्यादा काम की उम्मीद की जा रही है। इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि नौकरी संबंधी चिंताएं और तनाव कर्मचारियों के निजी जीवन को प्रभावित कर रहा है। तनाव गंभीर बीमारियों के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। जो कंपनियां स्वप्रेरित तरीके से कर्मचारियों में तनाव को कम करने के उपाय करती हैं उनके पास एक स्वस्थ और ज्यादा उपस्थिति दर्ज कराने वाला कार्यबल मौजूद होता है। ग्लोबल स्तर पर 48 फीसद कर्मचारियों ने स्वीकार किया कि पिछले एक साल में उनका तनाव बढ़ा है।

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