आलू का न्यूनतम निर्यात मूल्य हटा
आलू की बंपर पैदावार को देखते हुए घरेलू बाजार में आलू की कीमतों में जरूरत से ज्यादा कमी को रोकने के लिए सरकार ने एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इससे आलू किसान और कारोबारियों को उचित व बेहतर मूल्य मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
नई दिल्ली। आलू की बंपर पैदावार को देखते हुए घरेलू बाजार में इसकी कीमतें बहुत ज्यादा कम हो सकती है। इसलिए सरकार ने आलू निर्यात को बढ़ावा देने का फैसला किया है। इससे आलू किसान और आलू कारोबारियों को उचित व बेहतर मूल्य मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
सरकार ने आलू की घरेलू कीमतों को काबू में रखने के लिए निर्यात पर लगाए गए एमईपी (न्यूनतम निर्यात मूल्य) के प्रावधान को समाप्त कर दिया है। इसका असर निर्यात पर दिखाई देने लगा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आलू की मांग को देखते हुए निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं। अप्रैल से दिसबंर के बीच आलू का निर्यात पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले बढ़कर दो गुना हो गया है। चालू रबी सीजन में आलू की बंपर पैदावार होने का अनुमान है। आलू की पैदावार में 25 से 30 फीसद तक की वृद्धि हो सकती है।
आलू की उत्पादक मंडियों में आलू 400 से 450 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है। चालू सीजन में ही आलू का निर्यात 2.5 लाख टन हो गया है, जो पिछले साल इसी अवधि में 1.18 लाख टन था। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान विकास फाउंडेशन की ओर से जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है।
अप्रैल से दिसंबर की अवधि में मूल्य के हिसाब से आलू का निर्यात 595 करोड़ रुपये का हुआ था। पिछले वर्ष की समान अवधि में यह आंकड़ा सिर्फ 140 करोड़ रुपये का था। वर्ष 2013-14 के दौरान कुल 1.66 लाख टन आलू निर्यात किया गया। इससे 209 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई थी।
वर्ष 2014-15 में आलू का कुल उत्पादन 4.21 करोड़ टन हुआ था। आलू निर्यात में वृद्धि तब शुरू हुई जब केंद्र सरकार ने पिछले महीने न्यूनतम निर्यात मूल्य की बाध्यता समाप्त कर दी। घरेलू स्तर पर महंगाई को देखते हुए आलू का एमईपी जून, 2014 में बढ़ाकर 450 डॉलर प्रति टन कर दिया गया था। लेकिन आलू की घरेलू पैदावार में वृद्धि का अनुमान आने व कीमतों के नीचे जाने की संभावना को देखते हुए वाणिज्य मंत्रलय ने एमईपी की बाध्यता हटा ली है। आलू निर्यात पर एमईपी के हटाने के फैसले से आलू निर्यात की संभावनाएं और बढ़ी हैं।