संसदीय समितियों को रिजर्व बैंक की तरह सेबी को देनी होगी तवज्जो
संसदीय समितियों से कहा गया है कि वो कि रिजर्व बैंक की तरह सेबी को तवज्जो दें। ...और पढ़ें

नई दिल्ली [ संजय मिश्र]। संसदीय समितियां अब पूंजी बाजार पर निगाह रखने वाले नियामक सेबी को सार्वजनिक बैंकों और उपक्रमों के साथ पेशी के लिए नहीं बुला सकेंगी। सेबी ने बैंकों और सरकारी उपक्रमों के साथ उसे बुलाने पर एतराज जताया था। संसदीय कार्य मंत्रालय और लोकसभा सचिवालय ने सेबी प्रमुख यूके सिन्हा की आपत्ति से सहमति जताते हुए संसदीय समितियों से ऐसा नहीं करने को कहा है।
संसदीय समितियों से कहा गया है कि सेबी को किसी मामले में बुलाने की जरूरत है तो उसे भी रिजर्व बैंक की तरह अलग से बुलाया जाना चाहिए। लोकसभा सचिवालय ने संसद की समितियों को पत्र भेजकर साफ कहा है कि सेबी संसद से पारित कानून के अनुसार एक स्वायत्त संस्था है। इसलिए सरकारी क्षेत्र के बैंकों और उपक्रमों के साथ सेबी की वैधानिक बराबरी नहीं की जा सकती। ऐसे में किसी मामले में सेबी को पूछताछ या जानकारी के लिए बुलाना है तो उसकी वैधानिक स्थिति का ख्याल रखते हुए उसे अलग से बुलाया जाए।
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सेबी चेयरमैन यूके सिन्हा ने आए दिन अलग-अलग संसदीय समितियों के बैंकों और उपक्रमों के साथ सेबी की पेशी पर एतराज जताते हुए संसदीय मंत्रालय और लोकसभा महासचिव को बीते 14 जून को एक पत्र भेजा था। इसमें कहा गया था कि सेबी को इस तरह बैंकों के साथ बुलाना उचित नहीं है क्योंकि वह संसद से पारित कानून के तहत एक वैधानिक स्वायत्त संस्था है। इसके तहत वह वित्त मंत्रालय के जरिए सरकार और संसद के प्रति जवाबदेह है। उनका कहना था कि रिजर्व बैंक, बीमा या पेंशन नियामक प्राधिकरण किसी को इन पेशियों के लिए नहीं बुलाया जाता मगर सेबी को बैंकों के साथ ऐसे मामले में भी तलब कर लिया जाता है जिससे उसका सरोकार नहीं है। इसलिए रिजर्व बैंक की तरह सेबी को भी अलग से बुलाया जाए ताकि उसका और संसदीय समिति दोनों का समय बचे।
गौरतलब है कि बीते दिनों रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन को संसदीय समिति ने अलग से सरकारी बैंकों के डूबे लाखों करोड रुपए के कर्ज यानी एनपीए की स्थिति पर पूछताछ के लिए बुलाया था। सिन्हा के एतराज के बाद संसदीय सचिवालय ने बुधवार को सेबी की वैधानिक स्थिति स्पष्ट करते हुए उसे भी रिजर्व बैंक की तरह अलग से बुलाने के लिए संसदीय समितियों को पत्र भेज दिया है।

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