ईयू व ब्रिटेन के साथ अलग अलग एफटीए की निकलेगी राह
ब्रिटेन के बाहर निकलने से ईयू के साथ एफटीए वार्ता पर केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि इसपर नए सिरे से सोचने के लिए वक्त चाहिए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने की वजह से भारत को इस पूरे क्षेत्र के साथ अपने कारोबारी व कूटनीतिक रिश्तों पर नए सिरे से सोचना पड़ सकता है। कई जानकार जहां यूरोपीय संघ के भविष्य को लेकर ही सवाल उठा रहे हैं ऐसे में भारत के सामने भी बदले माहौल के मुताबिक अपनी नीति व कूटनीति बदलने की चुनौती है। इससे जहां यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक साझेदारी को लेकर शुरु होने वाली वार्ता का भविष्य अंधकारमय हो गया है वही भारत को अब ब्रिटेन के साथ अपने द्विपक्षीय कारोबार को लेकर भी अलग फैसला करना होगा।
ईयू के साथ मुक्त व्यापार समझौते जैसा एक अलग समझौता करने को लेकर दोनों पक्षों के बीच हाल ही में वार्ता शुरु करने को लेकर सहमति बनी है। वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से इस बारे में एक प्रस्ताव भेजा गया है जिसके जबाव का इंतजार किया जा रहा है। लेकिन वाणिज्य सचिव रीता तेवतिया मानती है कि अब नए सिरे से पूरे हालात पर सोचना होगा। क्योंकि भारत जिन उत्पादों में शुल्कों की छूट की बात कर रहा था उसमें भारी बदलाव करना होगा। निश्चित तौर पर यूरोपीय संघ को इस तरह के बदलाव करने होंगे।
भारत और ईयू में मुक्त व्यापार समझौता करने को लेकर वर्ष 2007 से लेकर वर्ष 2013 के बीच 16 दौर की वार्ता हो चुकी है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसे आगे नहीं बढ़ाया गया है। अब इस पर जल्दी से बात आगे बढ़ेगी, इसके आसार कम ही है। इस बात के संकेत स्वयं वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने दी है।
उन्होंने कहा है कि ईयू के इस नए फैसले के बाद नए सिरे से सोचने के लिए वक्त चाहिए। वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि ब्रिटेन के बाहर निकलने से हालात पूरी तरह से बदल गये हैं।उधर, ब्रिटेन पहले से ही भारत के साथ अलग एफटीए करने को लेकर उत्सुक है। ब्रिटेन के कुछ बड़े नेता पहले ही इस बात का संकेत दे चुके हैं कि यूरोपीय संघ से हटने के बाद भारत व अन्य देशों के साथ पृथक एफटीए को लेकर बातचीत होनी चाहिए।
ये भी पढ़ेंः ब्रेक्जिट के बाद दुनिया के नेताओं की प्रतिक्रिया जानिए
भारतीय अधिकारी भी आने वाले दिनों में इसे एक अहम डेवलपमेंट मान रहे हैं। भारत के गारमेंट्स निर्यातक खास तौर पर ब्रिटेन के बाहर निकलने से खुश हैं और केंद्र सरकार से ब्रिटेन के साथ विशेष व्यापार समझौता करने की सलाह दे रहे है। माना जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षो में भारतीय कंपनियों ने ब्रिटेन में अपनी पहुंच बढ़ाई है उसे देखते हुए एफटीए करना भारत के हित में होगा।
ये भी पढ़ेंः ब्रेक्जिट से संबंधित सभी खबरों के लिए यहां क्लिक करें
इस समय भारत की 800 से ज्यादा बड़ी कंपनियां ब्रिटेन में निवेश कर चुकी हैं। भारत की बड़ी ऑटो व फार्मा कंपनियां वहां भारी भरकम निवेश कर चुकी हैं। दूसरी तरफ ब्रिटेन में एफडीआइ करने वाला भारत तीसरा बड़ा देश है। ब्रिटेन भारत का 12वां बड़ा व्यापारिक साझेदार है और इनके बीच 14 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार होता है।
ये भी पढ़ेंः यूरोपीय यूनियन से संबंधित सभी खबरों के लिए यहां क्लिक करें
इसी तरह ईयू के साथ भी भारत का द्विपक्षीय कारोबार पिछले वित्त वर्ष के दौरान 88 अरब डॉलर का रहा है। दोनों देशों के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है। ऐसे में भारतीय रणनीतिकारों के लिए आने वाले समय बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।