मैगी विवाद का ग्रहण मेक इन इंडिया पर
सरकारी एजेंसियों के बीच आपसी तालमेल का अभाव किस तरह से देश के हितों को प्रभावित कर सकता है, इसका हाल का सबसे बड़ा उदाहरण मैगी को लेकर उपजा विवाद है। नेस्ले कंपनी के नूडल्स ब्रांड मैगी पर कई राज्यों की तरफ से प्रतिबंध लगाने के घटनाक्रम की वजह से
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकारी एजेंसियों के बीच आपसी तालमेल का अभाव किस तरह से देश के हितों को प्रभावित कर सकता है, इसका हाल का सबसे बड़ा उदाहरण मैगी को लेकर उपजा विवाद है। नेस्ले कंपनी के नूडल्स ब्रांड मैगी पर कई राज्यों की तरफ से प्रतिबंध लगाने के घटनाक्रम की वजह से देश के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की हालत खराब हो गई है। साथ ही, खाद्य उत्पादन में मेक इन इंडिया का नारा बुलंद करने की मोदी सरकार की योजना को भी धक्का लगा है। पिछले दिनों खाद्य उद्योग से जुड़ी कंपनियों ने सरकार को साफ तौर पर बता दिया कि उनके लिए इस माहौल में नया निवेश करना असंभव है।
इंस्पेक्टर राज के लौटने का डर
उद्योग चैंबर फिक्की और सीआइआइ की अगुआई में पिछले दिनों खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी कंपनियों के एक दल ने विभिन्न मंत्रालयों के आला अफसरों से मुलाकात की। इस दल ने अफसरों के सामने यह बात रखी कि मैगी विवाद के बाद इस क्षेत्र की कंपनियों के सामने एक नए तरह का 'इंस्पेक्टर राज' कायम होने का खतरा पैदा हो गया है। सरकार को बताया गया है कि देश भर में खाद्य उद्योग से जुड़ी 100 से ज्यादा कंपनियों को पिछले दो महीने के भीतर किसी न किसी तरह का नोटिस दिया गया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) ने एनर्जी ड्रिंक्स व प्रोटीन पाउडर की जांच पड़ताल भी राष्ट्रीय स्तर पर शुरू करने की योजना बनाई है। इससे शीतल पेय बनाने वाली कई कंपनियों पर गाज गिरने के आसार हैं।
सरकार की मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत को दुनिया का 'फूड बास्केट' बनाने का लक्ष्य रखा गया है। 1.50 लाख करोड़ रुपये के भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को फूड प्रोसेसिंग हब के तौर पर विकसित करने के लिए दुनिया भर की कंपनियों को सरकार आमंत्रण दे रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि पूर्वी देशों से कच्चा माल लेकर भारत उसे प्रसंस्कृत यानी प्रोसेस कर पश्चिमी देशों को निर्यात कर सकता है। लेकिन मैगी विवाद की वजह से इस पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल लग गए हैं। कई विकसित देशों ने भारत में निर्मित मैगी को सही ठहराया है, जबकि भारत में ही उनकी बिक्री रोक दी गई है। यही वजह है कि खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने पिछले दिनों एफएसएसएआइ को देश में भय का वातावरण का माहौल बनाने का दोषी करार दिया।
निवेश की संभावनाओं पर आशंका
एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में पैकेज्ड खाद्य उत्पादों की मांग आठ से 15 फीसद तक घट चुकी है। इस तरह का माहौल भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में निवेश का माहौल खत्म कर देगा। रोबो इक्विटी के सीएमडी और खाद्य प्रसंस्करण पर सीआइआइ की समिति के अध्यक्ष राजेश श्रीवास्तव का कहना है, 'भारत में जिस तरह की मांग है उसे देखते हुए इस क्षेत्र में अगले पांच वर्षों तक हर वर्ष तीन अरब डॉलर का निवेश आ सकता है।'