जेट-एतिहाद सौदे से जुड़े गोपनीय दस्तावेज भी लीक
कॉरपोरेट जासूसी कांड में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। इस प्रकरण की चल रही सीबीआइ जांच में अब पता चला है कि वित्त मंत्रालय से लीक हुए गोपनीय दस्तावेजों में विवादास्पद जेट-एतिहाद सौदे से जुड़ी प्राय: सभी अहम फाइलें भी शामिल थीं। जांच एजेंसी को इस मामले में विदेशी
नई दिल्ली। कॉरपोरेट जासूसी कांड में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। इस प्रकरण की चल रही सीबीआइ जांच में अब पता चला है कि वित्त मंत्रालय से लीक हुए गोपनीय दस्तावेजों में विवादास्पद जेट-एतिहाद सौदे से जुड़ी प्राय: सभी अहम फाइलें भी शामिल थीं। जांच एजेंसी को इस मामले में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआइपीबी) के अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका के पुख्ता सुबूत मिले हैं। जांच में शामिल अधिकारियों का दावा है कि एफआइपीबी के अफसरों ने ही जेट-एतिहाद करार से संबंधित गोपनीय दस्तावेज बिचौलियों को बेचे हैं।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, कॉरपोरेट जासूसी प्रकरण में गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ व जांच एजेंसी के पास उपलब्ध फोन काल्स से उपरोक्त सच्चाई उजागर हुई। सीबीआइ को पता चला है कि 2058 करोड़ रुपये के जेट-एतिहाद सौदे की फाइलें प्रस्ताव के स्तर से लेकर मंजूरी के अंतिम चरण तक लगातार लीक हुई हैं।
गौरतलब है कि विमानन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा 26 से बढ़ाकर 49 फीसद किए जाने के बाद ही जेट एयरवेज व अबूधाबी स्थित एतिहाद एयरवेज के बीच करार को 2013 में अंतिम मंजूरी मिली थी। जांच एजेंसी के अनुसार, सौदे से जुड़ी फाइलें हर स्तर पर वित्त मंत्रालय के एफआइपीबी से लीक होती रहीं। मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों की अति गोपनीय फाइल नोटिंग भी लीक कर दी गई।
पूर्व में सीबीआइ की ओर से कहा गया था कि कारपोरेट जासूसी कांड में वित्त मंत्रालय की निर्णय प्रक्रिया के पहले व दूसरे चरण के ही अधिकारी और कर्मचारी ही शामिल थे, लेकिन अब भरोसेमंद सूत्रों ने माना है कि इससे ऊपरी स्तर के अधिकारियों तक भी जांच का दायरा बढ़ सकता है। वैसे खुफिया दस्तावेज लीक करने के मामले में सीबीआइ ने अब तक पांच लोगों को गिरफ्तार किया है।
इसमें विनिवेश विभाग में अनुसचिव अशोक कुमार सिंह, एफआइपीबी अनुभाग सहायक रामनिवास, अनुभाग अधिकारी लालाराम शर्मा, मुंबई चार्टर्ड एकाउंटेंट खेमचंद गांधी और चिताले लॉ कंपनी के पार्टनर परेश चिमनलाल बुद्धदेब शामिल हैं। आरोप है कि वित्त मंत्रालय के अधिकारी विदेशी निवेश नीति से जुड़े दस्तावेज पहले खेमचंद गांधी को देते थे, जो उन्हें कॉरपोरेट घरानों तक पहुंचा कर मोटी रकम वसूलता था।
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