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वित्तीय एजेंसियों के बदले सुर, भारत सरकार को दिखाया आइना, दे दी चेतावनी

कुछ समय पहले तक भारत को अपार संभावनाओं वाले बाजार के तौर पर बताने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार एजेंसियों के सुर पूरी तरह से बदल गए हैं। इन एजेंसियों की नजर में भारत निवेश के लिहाज से अब ज्यादा आकर्षक नहीं रहा। यहां आर्थिक सुधारों की जबरदस्त जरूरत है, जबकि बैंकिंग व पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण क्ष्

By Edited By: Published: Tue, 19 Nov 2013 09:38 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, दिल्ली। कुछ समय पहले तक भारत को अपार संभावनाओं वाले बाजार के तौर पर बताने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार एजेंसियों के सुर पूरी तरह से बदल गए हैं। इन एजेंसियों की नजर में भारत निवेश के लिहाज से अब ज्यादा आकर्षक नहीं रहा। यहां आर्थिक सुधारों की जबरदस्त जरूरत है, जबकि बैंकिंग व पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र बेहद खराब हालात से गुजर रहे हैं।

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वित्तीय लेन-देन का रिकॉर्ड जमा कर रही सीआइए

सीएलएसए, यूबीएस, मूडीज और फिच की तरफ से सोमवार को भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा व दिशा पर जो टिप्पणियां सामने आई हैं, वे निश्चित तौर पर चुनावी तैयारियों में जुटे यूपीए के लिए खतरे की घंटी है। तमाम देशों की अर्थव्यवस्था पर और विदेशी संस्थागत निवेशकों को निवेश सलाह देने वाली फर्म सीएलएसए ने कहा है कि भारतीय इकोनॉमी की स्थिति फिलहाल सुधरती नहीं दिख रही। अब आम चुनाव बाद ही कुछ सुधार की संभावना है। फर्म के मुताबिक, मौजूदा हालात में तो भारत निवेश के लिए ठीक नहीं है।

रेटिंग में बदलाव नई सरकार के आर्थिक एजेंडा पर निर्भर

स्विस निवेश बैंक और वित्तीय सलाहकार यूबीएस ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था में मौजूदा संभावनाओं को लेकर गंभीर आशंका जताई है। बैंक ने यहां निवेश के माहौल को प्रतिकूल करार दिया है। यूबीएस की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत लंबी अवधि में निवेश के लिए तो ठीक है, लेकिन अभी यहां दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों को लागू करना बेहद जरूरी है।

जरा सोच-समझ करें फोन पर बात, हर साल बढ़ेंगी कॉल दरें!

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारतीय बैंकों पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक इन बैंकों में फंसे कर्जे (एनपीए) की दिक्कत बढ़ेगी। यह कई तरह की समस्याओं को जन्म दे सकती है। दूसरी तरफ अन्य रेटिंग एजेंसी फिच ने बढ़ती पेट्रोलियम सब्सिडी पर जारी रिपोर्ट जारी में कहा गया है कि यह सब्सिडी इतनी बढ़ गई है कि सरकार चालू वित्त वर्ष के दौरान इसे संभाल नहीं सकती है।

एक साथ कई आर्थिक एजेंसियों की तरफ से भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में आई नकारात्मक टिप्पणी के कुछ ही देर बाद आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने सोमवार को यहां एक समारोह में स्वीकार किया कि आर्थिक विकास दर को तेज करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने मौजूदा सुस्त विकास दर के लिए ग्लोबल वजहों को प्रमुख तौर पर जिम्मेदार ठहराया। मायाराम ने बताया कि सरकार के सामने आर्थिक कानूनों में सुधार का एक व्यापक एजेंडा है। इस संबंध में सरकार दामोदरन समिति और वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए गठित आयोग की सिफारिशों पर विचार कर रही है।


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