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रेटिंग में बदलाव नई सरकार के आर्थिक एजेंडा पर निर्भर

नई दिल्ली [जाब्यू]। आने वाले समय में देश की क्रेडिट रेटिंग क्या होगी यह अब पूरी तरह से केंद्र में आने वाली अगली सरकार के आर्थिक एजेंडा पर निर्भर करेगा। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने चेतावनी दी है कि अगर केंद्र में आने वाली नई सरकार के एजेंडा से आर्थिक सुधार हटे तो देश की रेटिंग को घटाया भी जा सकता है।

By Edited By: Published: Thu, 07 Nov 2013 08:03 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

नई दिल्ली [जाब्यू]। आने वाले समय में देश की क्रेडिट रेटिंग क्या होगी यह अब पूरी तरह से केंद्र में आने वाली अगली सरकार के आर्थिक एजेंडा पर निर्भर करेगा। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने चेतावनी दी है कि अगर केंद्र में आने वाली नई सरकार के एजेंडा से आर्थिक सुधार हटे तो देश की रेटिंग को घटाया भी जा सकता है।

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मौजूदा सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लिए जूझ रही है और विदेशी निवेश के प्रवाह में भी कमी हो रही है। लेकिन एसएंडपी चुनाव से पहले भारत की क्रेडिट रेटिंग की समीक्षा नहीं करेगी। एजेंसी ने स्पष्ट कर दिया है कि रेटिंग की समीक्षा का काम अब केंद्र में नई सरकार बनने के बाद ही होगा। फिलहाल एसएंडपी ने भारत को निगेटिव आउटलुक के साथ बीबीबी-रेटिंग पर रखा हुआ है। यह किसी भी देश के लिए निवेश की न्यूनतम ग्रेड की रेटिंग है।

एजेंसी ने एक बयान में कहा कि इस रेटिंग में सकारात्मक सुधार तभी हो सकता है जब नई सरकार विकास की रफ्तार बढ़ाने की दिशा में कदम उठाएगी। आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए भी सरकार को प्रयास करने होंगे। लोकसभा के अगले चुनाव मई 2014 में होने हैं।

साल 2012-13 में देश की आर्थिक विकास की रफ्तार एक दशक के निचले स्तर पांच फीसद पर आ टिकी थी। चालू वित्ता वर्ष की पहली तिमाही में तो यह घटकर 4.4 फीसद ही रह गई है। एसएंडपी का कहना है कि अगर नीतिगत जड़ता इसी तरह बनी रहती है तो रेटिंग को घटाया भी जा सकता है।

उधर एसएंडपी की इस चेतावनी को लेकर सरकार ज्यादा गंभीर नहीं है। वित्ता मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि रेटिंग एक सामान्य प्रक्रिया है। इसे लेकर चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।


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