Move to Jagran APP

कंपनियों को लाभ पहुंचाने का दाग धोने की कोशिश

चुनावी साल में आम जनता से जुड़ने का कोई भी रास्ता यूपीए सरकार छोड़ना नहीं चाहती। आर्थिक सुधारों के लिए उठे कदमों को भी सरकार खुद को लोगों से जोड़ने की मुहिम की तरह दिखाना चाहती है। नए कंपनी कानून में सामाजिक कार्यो पर मुनाफे का दो फीसद खर्च करने के प्रावधान को भी सरकार इसी नजरिए से देख रही है

By Edited By: Published: Mon, 12 Aug 2013 09:32 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
कंपनियों को लाभ पहुंचाने का दाग धोने की कोशिश

नितिन प्रधान, नई दिल्ली। चुनावी साल में आम जनता से जुड़ने का कोई भी रास्ता यूपीए सरकार छोड़ना नहीं चाहती। आर्थिक सुधारों के लिए उठे कदमों को भी सरकार खुद को लोगों से जोड़ने की मुहिम की तरह दिखाना चाहती है। नए कंपनी कानून में सामाजिक कार्यो पर मुनाफे का दो फीसद खर्च करने के प्रावधान को भी सरकार इसी नजरिए से देख रही है। यही वजह है कि तमाम दबावों के बावजूद कंपनी कानून में इस प्रावधान को बनाए रखा गया है। आमतौर पर जनता की नजर में सरकार की छवि कंपनियों, उद्योग जगत को लाभ पहुंचाने वाली रही है। चुनाव में जाने से पहले सरकार की कोशिश अपनी छवि पर लगे इस दाग को धोने की है। इसीलिए उद्योगों और विदेशी निवेशकों के पुरजोर विरोध के बावजूद सरकार ने नए कंपनी कानून में मुनाफे का एक हिस्सा सामाजिक विकास के कामों पर खर्च करने का प्रावधान बनाए रखा।

loksabha election banner

सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक कंपनी विधेयक पर चर्चा और बाद में संसद में पेश करने के बाद भी इस प्रावधान को वापस लेने का लगातार दबाव बना रहा। घरेलू उद्योग संगठन और कंपनियां ही नहीं, विदेशी निवेश के जरिये भारतीय बाजार में प्रवेश कर चुकी कंपनियों ने भी इस प्रावधान को लेकर सरकार से विरोध जताया था। मगर इस दायरे में आने वाली कंपनियों की संख्या और इस प्रावधान पर अमल के बाद सामाजिक कामों पर लगने वाली धनराशि की मात्र के अनुमान ने सरकार को अडिग रखा।

कंपनी विधेयक को हाल ही में राज्यसभा से मंजूरी मिली है। लोकसभा पहले ही इसे पारित कर चुकी है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन छह दशक पुराने कंपनी कानून का स्थान ले लेगा। एक अनुमान के मुताबिक नए कंपनी कानून के इस प्रावधान के दायरे में करीब 8000 कंपनियां आएंगी। हालांकि देश में करीब 14 लाख कंपनियां पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से नौ लाख ही कारोबार में सक्रिय हैं।

अनुमान के मुताबिक इस प्रावधान के दायरे में आने वाली कंपनियां अगर दो फीसद का पूरा हिस्सा सालाना सामाजिक कार्यो पर खर्च करेंगी तो ये कंपनियां 12,000 से 15,000 करोड़ रुपये हर साल व्यय करेंगी। खर्च की यही राशि सरकार को आकर्षित कर रही है। सरकार जनता के सामने यह आंकड़ा पेश कर सकती है कि वो कंपनियों के लिए उदार नहीं है। उन्हें मुनाफा कमाने के साथ साथ जनता पर भी खर्च करना होगा। यूपीए के राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में सरकार को कहीं न कहीं इसका लाभ मिलेगा। कंपनियों को जनता पर खर्च करने को बाध्य करने वाली सरकार के लिए जनता के मन में उठी थोड़ी भी सहानुभूति उसे चुनाव में फायदा करा सकती है। वैसे भी सरकार का तर्क है कि यह प्रावधान कोई नया नहीं है। विदेशों में इस तरह के कानून पहले से ही हैं।

मॉरीशस में कंपनियों को मुनाफे का दो प्रतिशत कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) कार्यो पर खर्च करना पड़ता है। इस तरह के प्रावधान स्वीडन, नार्वे, नीदरलैंड, डेनमार्क और फ्रांस जैसे देशों में भी हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.