कार्यकाल के अंत तक ड्यूटी निभाने में जुटे चिदंबरम
अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में वित्त मंत्री पी चिदंबरम कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं। अब आम चुनाव खत्म हो चुके हैं और अगले कुछ दिनों के भीतर नई सरकार गठित होने वाली है। ऐसे में वित्त मंत्री तमाम वित्तीय संस्थानों से मिलने और उन्हें नए निर्देश देने में लगे हैं। इस सिलसिले में सोमवार को चिदंबरम ने सरकारी बीमा कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात की। मंगलवार को वह सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों से मिलेंगे।

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में वित्ता मंत्री पी चिदंबरम कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं। अब आम चुनाव खत्म हो चुके हैं और अगले कुछ दिनों के भीतर नई सरकार गठित होने वाली है। ऐसे में वित्ता मंत्री तमाम वित्ताीय संस्थानों से मिलने और उन्हें नए निर्देश देने में लगे हैं। इस सिलसिले में सोमवार को चिदंबरम ने सरकारी बीमा कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात की। मंगलवार को वह सरकारी बैंकों और वित्ताीय संस्थानों के प्रमुखों से मिलेंगे।
बैठक में शामिल बीमा कंपनियों को चिदंबरम ने यह सुझाव दिया कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश करें। बीमा विनियामक व विकास प्राधिकरण [इरडा] को राय दी कि वह मोटर बीमा प्रीमियम को कम करने के लिए कदम उठाए। उन्होंने कहा कि ग्राहकों को एक बार में तीन वर्षो का मोटर बीमा करवाने की छूट देने पर विचार करना चाहिए। इरडा इस बारे में एक प्रस्ताव पर काम कर रहा है। माना जाता है कि इसे लागू करने के बाद मोटर बीमा प्रीमियम में कमी आएगी। इससे वे लोग भी मोटर बीमा करवाने के लिए आगे आएंगे जो अभी तक इससे बचते रहते हैं।
चिदंबरम ने कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम [एलआइसी] के साथ ही साधारण बीमा कंपनियों को भी ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबार फैलाने पर ध्यान देने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों बीमा कंपनियों को 10,000 से ज्यादा आबादी वाले शहरों में शाखा खोलने को लेकर दबाव बनाया था। इस श्रेणी के शहरों में एलआइसी ने 1,261 ब्रांच और साधारण बीमा कंपनियों ने 1,849 शाखाएं खोली हैं। वित्ता मंत्री ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में होने वाली धोखाधड़ी और जालसाजी को रोकने के लिए भी बीमा कंपनियों को आपस में नेटवर्क बनाना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार मंगलवार को सरकारी बैंकों के साथ बैठक में फंसे कर्जे [एनपीए] और बैंकों की पूंजी जरूरत पर खास तौर पर चर्चा होगी। चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान सरकारी बैंकों के एनपीए की समस्या काफी गंभीर हो चुकी है। माना जा रहा है कि जो भी अगला वित्ता मंत्री बनेगा उसे इस समस्या के समाधान के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। इस वजह से बैंकों के पास फंड की भी किल्लत पैदा हो गई है। जोखिम मानकों के मुताबिक ज्यादा सुरक्षित अनुपात बनाने के लिए चालू वित्ता वर्ष के दौरान ही बैंकों को 47 हजार करोड़ रुपये की दरकार है। इसके अलावा शिक्षा व कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले कर्ज के हालात पर भी चिदंबरम चर्चा करेंगे।

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