प्रधानमंत्री ने बीमारी की वजह बताई, नुस्खा नहीं
आम चुनाव से पहले स्वतंत्रता दिवस के अपने आखिरी भाषण में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीमार अर्थव्यवस्था के जल्द ठीक होने की उम्मीद तो जताई, लेकिन वह इसके इलाज का नुस्खा बताने से चूक गए। डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत और उसकी वजह से चालू खाते के घाटे पर पड़ रहे असर पर प्रधानमंत्री अपने भाषण में एकदम चुप्पी स
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आम चुनाव से पहले स्वतंत्रता दिवस के अपने आखिरी भाषण में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीमार अर्थव्यवस्था के जल्द ठीक होने की उम्मीद तो जताई, लेकिन वह इसके इलाज का नुस्खा बताने से चूक गए। डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत और उसकी वजह से चालू खाते के घाटे पर पड़ रहे असर पर प्रधानमंत्री अपने भाषण में एकदम चुप्पी साध गए।
लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने माना कि देश की आर्थिक विकास दर में तेजी से कमी आई है। पिछले वित्त वर्ष 2012-13 में तो यह घटकर पांच फीसद रह गई है। लेकिन उन्होंने कहा, 'हम इस हालात में सुधार लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। मेरा मानना है कि भारत में धीमे विकास का दौर बहुत अधिक दिन नहीं चलेगा।' इतना कहते हुए उन्होंने न तो तेजी से घट रहे औद्योगिक उत्पादन का जिक्र किया और न ही रुपये में गिरावट का।
देश की अर्थव्यवस्था की खराब हालत के लिए उन्होंने ग्लोबल स्थितियों को भी जिम्मेदार माना। प्रधानमंत्री ने कहा 'सिर्फ हमारा देश ही अकेला कठिनाइयों का सामना नहीं कर रहा है। पूरी विश्व अर्थव्यवस्था के लिए पिछला साल मुश्किल भरा रहा है। सभी विकासशील देशों को मंदी का सामना करना पड़ रहा है।' देश की अर्थव्यवस्था की खराब हालत में रुपये की घटती कीमत भी अहम भूमिका निभा रही है। एक डॉलर की कीमत 61 रुपये को पार कर चुकी है। इसके चलते न केवल देश में महंगाई बढ़ रही है, बल्कि आयात बिल भी निरंतर ऊपर की तरफ जा रहा है।
अर्थव्यवस्था की खराब हालत का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में महंगाई को भी जगह नहीं दी। चूंकि महंगाई काबू करने के सरकार के प्रयासों का अब तक कोई नतीजा दिखाई नहीं दिया है। इसलिए प्रधानमंत्री ने इसका जिक्र करने के स्थान पर अपने भाषण में खाद्य सुरक्षा कानून को जगह देना मुनासिब समझा। उन्होंने कहा, 'इससे 81 करोड़ भारतीयों को तीन रुपये प्रति किलो चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये प्रति किलो मोटा अनाज मिल पाएगा।'
अलबत्ता प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में गरीबी की परिभाषा को लेकर हुए विवाद का संदर्भ लेते हुए कहा कि संप्रग के शासनकाल में गरीबों की संख्या तेजी से कम हुई है। 'गरीबी को नापना एक मुश्किल काम है। गरीबी की परिभाषा को लेकर अलग-अलग मत हैं। लेकिन हम गरीबी की चाहे कोई भी परिभाषा अपनाएं, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि 2004 के बाद गरीबी कम होने की गति तेज हुई है।'
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