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    रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' को मिलेगा बढ़ावा, विदेशी निवेश को मिली मंजूरी

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Tue, 21 Jun 2016 02:54 PM (IST)

    रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने विदेशी निवेश की सीमा में छूट देने का फैसला किया है।

    नई दिल्ली। रक्षा क्षेत्र में "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा देने और देश में निवेश व रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार ने बेहद संवेदनशील रक्षा क्षेत्र में भी अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) को ज्यादा आसान कर दिया है।

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    पहले 49 फीसदी से ज्यादा के एफडीआइ के मामलों को सरकार तभी मंजूरी देती थी, जब इससे भारत में आधुनिकतम (स्टेट आफ आर्ट) तकनीक का आना सुनिश्चित होता हो। लेकिन अब इसकी अनिवार्यता हटा दी गई है।

    जानिए, एफडीआई पॉलिसी में बदलाव से आप को कैसे होगा फायदा

    रक्षा क्षेत्र की कंपनियों में 49 फीसदी तक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ऑटोमेटिक रूट के जरिये किया जा सकता है। इससे ज्यादा के एफडीआइ के मामलों में सरकार से विशेष मंजूरी लेनी होती है। अब तक के नियमों के मुताबिक यह मंजूरी देते समय सरकार यह देखती थी कि क्या इससे आधुनिकतम तकनीक भारत में आने का मौका मिल रहा है।

    अगर ऐसा हो, तभी प्रस्ताव को मंजूरी दी जाती थी। मगर नए नियमों के मुताबिक अब आधुनिकतम (स्टेट आफ आर्ट) तकनीक के जुड़े होने की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है। इसकी जगह आधुनिक यानी मॉडर्न तकनीक को ही पर्याप्त मान लिया गया है।

    साथ ही रक्षा क्षेत्र के लिए किया गया यह बदलाव आयुध अधिनियम 1959 के तहत आने वाले छोटे अस्त्र-शस्त्र और गोला-बारूद पर भी शामिल होगा। इसी तरह अब रक्षा क्षेत्र में मुख्य व्यापार के लिए मंजूरी मिली हो तो उस कंपनी को अपनी शाखा, लायजन या प्रोजेक्ट ऑफिस खोलने के लिए अलग से रिजर्व बैंक या दूसरी एजेंसियों की इजाजत नहीं लेनी होगी।

    हालांकि अब भी ऑटोमैटिक रूट से मिलने वाली मंजूरी की सीमा 49 फीसदी तक ही रहेगी। दो साल पहले वर्ष 2014 में इसे 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी तक किया गया था। इसके बावजूद रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अपेक्षित तेजी नहीं मिल रही थी क्योंकि उनकी निवेश की सीमा 49 फीसदी तक रहने से कंपनी के अहम फैसले भारतीय साझेदार ही करते थे।

    इसलिए ऑटोमेटिक रूट से निवेश की सीमा को बढ़ाने की मांग की जा रही थी। सरकार के ताजा फैसले पर आलोचकों का यह भी कहना है कि न तो पहले "स्टेट ऑफ आर्ट" की कोई परिभाषा थी और ना ही अब मॉडर्न" की कोई परिभाषा तय की गई है। इसलिए इसका विश्लेषण पूरी तरह से सरकार पर निर्भर करेगा।

    रक्षा क्षेत्र में निवेश संबंधी नियमों को उदार करने में भारत में काफी देरी हुई है। विपक्ष में रहते हुए भाजपा रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ का विरोध करती रही है। इसे वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक बताती थी। साथ ही इसका कहना था कि इससे आधुनिकतम तकनीक के भारत आने की कोई गारंटी नहीं है।

    इसी तरह संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सरकार को समर्थन कर रहे वामपंथी इसके पूरी तरह खिलाफ थे। इस वजह से भी सरकार कदम आगे नहीं बढ़ा सकी थी। जबकि दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के लगातार आते मामलों की वजह से कोई अहम फैसला लेना मुश्किल था।