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    जिंदगी के जज्बे से हार गई मौत, ऐसे दी कैंसर को मात

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Sun, 04 Jun 2017 04:53 PM (IST)

    मनोज कुमार महतो ने अपने हौंसले और बुलंद इरादों से निश्चित मौत मानी जानी वाली बीमारी कैंसर को भी हरा दिया है।

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    जिंदगी के जज्बे से हार गई मौत, ऐसे दी कैंसर को मात

    दिनेश कुमार, धनबाद। तब उनकी उम्र महज 27 साल थी। युवावस्था के जोश में वे सफलता की हर बुलंदी पा लेने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहे थे। राजनीतिक क्षेत्र में किस्मत आजमाया और धनबाद के प्रखंड प्रमुख तक बन गए। वीआइपी रुतबा हो गया। जिंदगी खुशहाली से बीत रही थी, लेकिन वर्ष 2015 के अंतिम महीने दिसंबर ने उनकी जिंदगी को झकझोर कर रख दिया। मामूली खांसी से शुरू हुई बीमारी की असल पहचान होते होते कैंसर की स्थिति खतरनाक थर्ड स्टेज तक पहुंच गई थी।

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    बस तब सामने मौत ही खड़ी थी। कुछ और नहीं। लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। धनबाद के मुनीडीह शास्त्रीनगर के रहने वाले धनबाद प्रखंड के पूर्व प्रमुख मनोज कुमार महतो ने अपने हौंसले और बुलंद इरादों से निश्चित मौत मानी जानी वाली बीमारी कैंसर को भी हरा दिया है। छह माह के अंतराल में ही कैंसर को मात देकर वे परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी बीता रहे हैं।

    यह है कहानी :
    धनबाद प्रखंड के पूर्व प्रमुख मनोज महतो को दिसंबर 2015 में पहले खांसी हुई। उन्होंने सामान्य तरीके से इलाज कराया लेकिन खांसी नहीं गई। कुछ दिन के बाद ही उनकीगर्दन के दाहिने हिस्से के नस में एक गिल्टी भी उभर आई। इसे भी सामान्य गिल्टी मानकर उन्होंने उसका उपचार धनबाद के एक चिकित्सक से कराया। कुछ दिन तक उपचार के बाद जब गिल्टी ठीक नहीं हुई तो उन्होंने दूसरे चिकित्सक से संपर्क किया। लेकिन तब भी न तो उन्हें और न ही चिकित्सकों को इसका आभास था कि यह कैंसर है। इसी बीच, 12 फरवरी 2016 को वे इसी स्थिति में अपने दोस्तों के साथ घुमने के लिए दिल्ली चले गए।

    दिल्ली गए तो सोचा कि एक बार गुरुग्राम में अवस्थित प्रसिद्ध मेंदांता अस्पताल में जांच करा लें। वहां जांच कराने पर डॉक्टरों ने उन्हें कैंसर होने की पुष्टि की। यह भी बताया गया कि बीमारी बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है। तब एक पल को तो उन्हें लगा कि बस अब जिंदगी खत्म हो गई। अब कुछ नहीं हो सकता। परिजनों को भी उन्होंने बीमारी के बारे में कुछ नहीं बताया। सोचा वे भी चिंतित हो जाएंगे लेकिन दोस्तों ने उन्हें साहस दिया। कहा इलाज तो कराओ। इलाज के पहले ही हार मान लेना ठीक नहीं। उन्हें भी हिम्मत मिली। तय कर लिया कि जब अब बीमारी हो ही गई है तो इसे ऐसे क्यों बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाए। इलाज कराते हुए लड़ा जाए।

    इसके बाद वे 26 फ रवरी 2016 को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल से मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल ईलाज के लिए चले गए। वहां डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि बीमारी स्टेज थ्री में पहुंच चुकी है और स्थिति काफी गंभीर है लेकिन मनोज ने हौंसला नहीं खोया। डॉक्टरों से कहा-सर जैसी भी स्थिति है आप इलाज करते हुए कोशिश शुरू कीजिए। आखिरकार चार माह के लगातार इलाज के बाद उन्होंने इस जानलेवा बीमारी को मात दे दी। मई 2016 में उनकी स्थिति में सुधार होने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी।

    जानिए, क्या कहते हैं मनोज
    कैंसर ही क्यों, किसी भी तरह की जानलेवा बीमारी को मात देने के लिए पीडि़त के अंदर ही जीतने का हौंसला होना चाहिए। स्थिति देखकर घबराए नहीं बल्कि यह सोचें कि मैं इस बीमारी को मात देकर फिर खुशहाल जिंदगी जीना है। इंसान यदि खुद में आशा और विश्र्वास बनाए रखेगा तो वह किसी भी विषम परिस्थिति को मात दे सकता है। अपने मामले में मैं स्वयं इसका उदाहरण हूं। बीमारी का पता चला तो पहले तो मैं घबरा गया लेकिन फिर लड़ने का फैसला लिया।
    मनोज महतो, पूर्व प्रखंड प्रमुख, धनबाद।

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