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हाई कोर्ट ने कहा, मुरथल में हुआ था सामूहिक दुष्कर्म

जाट आंदोलन के दौरान मुरथल घटना पर हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि मुरथल में दुष्कर्म हुआ था। जांच दल को अपराधियों और पीडि़तों की पहचान पहचान करने के निर्देश दिए गए हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 05 Jul 2016 10:22 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2016 04:15 PM (IST)

जेएनएन, चंडीगढ । मुरथल सामूहिक दुष्कर्म मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि मुरथल में महिलाओं से सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। अब जांच दल का काम अपराधियों और पीडि़तों की पहचान कर केस दर्ज करना है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने विशेष जांच दल को आदेश दिए कि वे अगली सुनवाई के दौरान बेहतर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर बताए कि दुष्कर्म मामले में एसआइटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) कहां तक पहुंची है।

मामले की सुनवाई शुरू होते ही सोमवार को हरियाणा सरकार की ओर से गठित की गई एसआइटी ने कोर्ट में सामूहिक दुष्कर्म की जांच को लेकर स्टेटस रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दाखिल की। हरियाणा सरकार की ओर से पैरवी कर रहे एडीश्नल सॉलिसिटर जनरल ऑफ़ इंडिया तुषार मेहता ने कहा कि जांच अभी चल रही है और उन्हें कुछ और समय दिया जाए, ताकि ठोस तथ्यों के साथ वे कोर्ट में पूरी रिपोर्ट पेश करें। एमिकस क्यूरी (कोर्ट मित्र) अनुपम गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के लिए हरियाणा सरकार द्वारा समय मांगने का विरोध नहीं किया। इस कारण हाई कोर्ट ने 23 जुलाई तक का समय दे दिया।

इसी बीच एक वेबसाइट जिस पर दुष्कर्म पीडि़ता की मां का इंटरव्यू प्रकाशित किया गया था उसके बैकफुट पर आने की और खबर का खंडन करने की बात हरियाणा सरकार ने कही। इसपर कोर्ट मित्र ने कहा कि भले ही समाचार की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हों लेकिन उस ऑडियो टेप की विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं है। ऑडियो टेप में महिला ने कहा है कि कुछ लोग उसकी लड़की को ढाबे के पीछे ले गए और सात घंटे बाद उसको छोड़ा। हाईकोर्ट ने मीडिया को यह हिदायत दी कि इस प्रकार के मामलों में रिपोर्टिंग करते हुए सावधानी बरते।

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सभी जिलों के पुलिस प्रमुख जांच में लाएं तेजी

हाई कोर्ट ने आरक्षण आंदोलन से प्रभावित सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों को दर्ज मामलो में तेजी से और प्रभावी जांच करने के आदेश हाई कोर्ट ने दिए हैं। इसके साथ ही हाई कोर्ट के आदेश के अनुरूप झज्जर और बहादुरगढ़ के सीजेएम (चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट) ने अपनी अदालतों में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए केसों से जुड़ी अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें पुलिस के रवैए पर सवाल उठाए गए थे। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वह सभी प्रभावित जिलों के पुलिस प्रमुखों को जांच में तेजी लाने के आदेश दें।

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रिपोर्ट लीक होने पर एसआइटी को फटकार

एसआइटी को फटकार लगाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि उनकी सीलबंद रिपोर्ट मीडिया में कैसे आ रही है। एसआइटी अपने ही केस को खराब करने पर तुली हुई है। कोर्ट मित्र ने कहा कि लोग मीडिया वालों से व अन्य लोगों से घटना के बारे में बात करने को तैयार हैं लेकिन एसआइटी से नहीं यह दुखद है।

दंगा पीडि़तों के लिए मुआवजे का प्रावधान क्यों नहीं

कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान एक दंगा पीडि़त की बिगड़ी हुई हालत का हवाला देते हुए कोर्ट मित्र ने बताया कि वह बुरी तरह से घायल हो गया था और इलाज पर नौ लाख खर्च हो चुके हैं। ऐसे में इस पैसे का भुगतान राज्य सरकार को करने के लिए कहा जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि केवल वह पीडि़त ही क्यों बाकी लोगों के लिए भी सरकार के पास कोई पॉलिसी क्यों नहीं है। इस पर हरियाणा सरकार ने कहा कि वर्तमान में यदि इस प्रकार के मुद्दे जोड़े गए तो यह केस मूल उद्देश्य से भटक जाएगा। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के पास कानून बनाने का अधिकार है तो क्यों नहीं हिंसक आंदोलनों को रोकने के साथ-साथ इस दौरान हुए नुक्सान का मुआवजा देने का प्रावधान किया जाता है।

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