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हाई कोर्ट ने हरियाणा में जातिगत आरक्षण पर उठाए सवाल

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा में हुड्डा सरकार के कार्यकाल में किए गए आरक्षण के प्रावधान जारी रहने पर सोमवार को सवाल उठाए। तत्‍कालीन हुड्डा सरकार ने इसके तहत जाट, बिश्‍नोई व जट सिख सहित कई जातियों को इसके तहत आरक्षण्‍ा देने के लिए अध्‍ािसूचनाएं जारी की थीं!

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2015 06:30 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2015 10:53 AM (IST)
हाई कोर्ट  ने हरियाणा में जातिगत आरक्षण पर उठाए सवाल

चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा में हुड्डा सरकार के कार्यकाल में किए गए आरक्षण के प्रावधान जारी रहने पर सोमवार को सवाल उठाए। तत्कालीन हुड्डा सरकार ने इसके तहत जाट, बिश्नोई व जट सिख सहित कई जातियों को इसके तहत आरक्षण्ा देने के लिए अध्ािसूचनाएं जारी की थीं। हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इसे चुनौती दी गई है।

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सोमवार को इस पर जस्टिस एस के मित्तल पर आधारित खंडपीठ ने इस पर सुनवाई की। खंडपीठ ने कहा कि यह आरक्षण जस्टिस केसी गुप्ता की रिपोर्ट के आधार पर लागू किया गया था। उन्होंने हरियाणा सरकार के वकील से पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट इस रिपोर्ट को रद्द कर चुका है तो राज्य सरकार ने किस आधार पर अब भी आरक्षण को लागू रखा हुआ हैं।

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हाईकोर्ट के इस नजरिए से हरियाणा में हो रही भर्तियों में किए गए आरक्षण के प्रावधान पर तलवार लटक गई है। सोमवार को याची पक्ष की ओर से सरकार द्वारा जारी विज्ञापन को रखते हुए कहा गया कि इन विज्ञापनों में पहली नोटिफिकेशन के मुताबिक जाट, बिशनोई, जटसिख, रोड़ और त्यागी जाति को आरक्षण दिया गया है।

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याचिका में कहा गया है कि दूसरी नोटिफिकेशन के तहत आर्थिक आधार पर आरक्षण और तीसरी नोटिफिकशन से जाट से मुसलमान बनने वालों को आरक्षण का लाभ दिया गया। इन आरक्षण प्रावधानों के कारण आरक्षण लगभग 67 प्रतिशत हो गया है और सामान्य वर्ग के लिए केवल 33 प्रतिशत ही बचा है। ऐसे में वर्तमान में भर्तियों और शिक्षण संस्थानों की दाखिला प्रक्रिया में दिए जाने वाले आरक्षण प्रावधान पर रोक लगाई जाए।


ख्ांडपीठ ने जब हरियाणा सरकार के वकील से इस बाबत जवाब मांगा तो उन्होंने कहा कि इस बारे में सरकार से निर्देश लेने के लिए उनको समय दिया जाए। इस पर हाईकोर्ट ने अगले सोमवार को जवाब दायर करने का निर्देश दिया।

सरकार के रवैये पर उठे सवाल
ख्ांडपीठ ने कहा कि यदि रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी है और रिव्यू लंबित है तो ऐसी स्थिति में कैसे आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। हाई कोर्ट ने भर्तियों के मामले में सरकार के सामने विकल्प रखा कि यदि वह चाहे तो भर्तियां जारी रख सकती है। इस दौरान आरक्षण के तहत बनने वाली सीटों को रिक्त रखा जाए और याचिका पर आने वाले फैसले के अनुरूप बाद में इन्हें भरा जाए।

मामले में तीसरी नोटिफिकेशन पर सवाला उठाते हुए बैंच ने पुछा कि केवल जाट से मुसलमान बनने वालों को आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। ऐसा है तो गुज्जर जो मुसलमान बने हैं उन्होंने क्या कोई अपराध किया है। उन्हें क्यों नहीं रखा गया। मेवात में तो 80 प्रतिशत गुज्जर की हालत बहुत खराब है उनको इसका लाभ क्यों नहीं दिया गया।


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