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    तेवर, तबादले, और तनातनी हैं इन अफसरों की सर्विस कुंडली का हिस्सा

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Tue, 28 Nov 2017 12:05 PM (IST)

    जानिए क्यों नहीं सरकार से पटरी बैठती आइएएस अधिकारी अशोक खेमका और प्रदीप कासनी की, कोई ऐसा विभाग नहीं बचा, जहां इन अफसरों का तबादला नहीं हुआ, हर बार खड ...और पढ़ें

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    तेवर, तबादले, और तनातनी हैं इन अफसरों की सर्विस कुंडली का हिस्सा

    अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो अफसरों के जब भी ट्रांसफर होते हैं, तभी कोई न कोई विवाद खड़ा हो जाता है। हम बात कर रहे हैं हरियाणा के सीनियर आइएएस अफसरों अशोक खेमका और प्रदीप कासनी की। खेमका 1991 और कासनी 1997 बैच के आइएएस अफसर हैं। कासनी की तो अगले तीन माह बाद रिटायरमेंट भी है। तबादले, विवाद और सरकार से तनानती इन दोनों अफसरों की सर्विस कुंडली का पार्ट बन गए। बहस का मुद्दा यह नहीं है कि इन अफसरों के तबादले क्यों किए जाते हैं...अफसरों से मन मुताबिक काम लेना सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला है, मगर तबादले होते ही यह दोनों अफसर क्यों आउट आफ कंट्रोल हो जाते हैं, आइए हम आपको बताते हैं।

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    इसलिए चढ़ जाता है दोनों अफसरों का पारा

    दरअसल, भारतीय सर्विस रूल्स में इस बात का प्रावधान है कि किसी अधिकारी को दो साल से पहले नहीं बदला जा सकता, लेकिन 26 साल की सर्विस में खेमका 51 बार और 20 साल की सर्विस में कासनी 71 बार बदले जा चुके हैं। इन सेवा नियमों का उल्लंघन होते ही खेमका और कासनी का पारा चढ़ जाता है। दोनों अफसरों ने आज तक किसी भी विभाग में दो साल का समय पूरा नहीं किया। हरियाणा का कोई ऐसा खुड्डा लाइन विभाग नहीं बचा, जहां इन अफसरों को नहीं लगाया गया। यह काम पिछली सरकार ने भी किया और मौजूदा सरकार भी कर रही है।

    इनका स्टाइल ही उनकी तरक्की में आड़े आ रहा

    कासनी हों या खेमका, दोनों अफसरों को अपने ढंग से काम करने की आदत है। सोसायटी का एक बड़ा तबका नौकरी करने के इस स्टाइल को ईमानदारी की संज्ञा देता है तो राजनीति करने वालों का बड़ा वर्ग इन अफसरों की ईमानदारी को अपने व्यवस्थागत काम में दखल मानता है। पिछली हुड्डा सरकार हो या फिर मौजूदा मनोहर सरकार, दोनों में इन अफसरों को खूब तबादले मिले। राबर्ड वाड्रा-डीएलएफ लैंड डील का इंतकाल रद कर सुर्खियों में आए खेमका को उम्मीद थी कि मनोहर सरकार में उनका प्रशासनिक कद बढ़ेगा, यहां तक कि वे केंद्र में डेपुटेशन पर भी जा सकते हैं। मगर सरकार ने उनकी चार्जशीट तो वापस ले ली, लेकिन केंद्र में डेपुटेशन पर नहीं भेजा गया, क्योंकि सरकार को अहसास हो रहा है कि खेमका अपने काम करने के स्टाइल के चलते सरकार की व्यवस्था में फिट नहीं बैठ रहे। अब जाकर सरकार ने उन्हें तेज तर्रार मंत्री अनिल विज के खेल विभाग में प्रधान सचिव के पद पर जोड़ा है।

    तो क्या इन अफसरों को सरेंडर कर देना चाहिए

    अब बात करते हैं कासनी की। कासनी की धर्मपत्नी नीलम प्रदीप कासनी भी आइएएस रह चुकी हैं। राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी के एडीसी पद से रिटायर हुई हैं। पति-पत्नी दोनों साहित्यकार हैं। मूल रूप से भिवानी जिले के रहने वाले हैं। खेमका का कोलकाता के हैं, बचपन में वामपंथ की तरफ रुझान रहा है। कासनी को भी खेमका की तरह किसी भी केस की तह में जाने की आदत है। इसका नतीजा यह हो रहा कि सरकार उन्हें व्यवस्था के खांचे में अपने अनुकूल नहीं मानती। लिहाजा दोनों बार-बार के तबादलों का शिकार हो रहे हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि खेमका और कासनी दोनों को सरेंडर कर देना चाहिए, लेकिन आज स्थिति यह बन गई कि जिस भाजपा ने इन दोनों अफसरों को पिछले चुनाव के दौरान गले लगाया था, आज वही भाजपा उन्हें अपने से ज्यादा से ज्यादा दूर रखने में ही भलाई समझ रही है। कासनी आजकल उस लैंड यूज बोर्ड के ओएसडी हैं, जिसके लिए तीन साल से फंड ही नहीं आवंटित हुआ है।

    नहीं मिला दोनों अफसरों को इंतजार का सिला

    पिछली हुड्डा सरकार में निशाने पर रह चुके कासनी को तो यहां तक उम्मीद थी कि वे मुख्यमंत्री मनोहर लाल के प्रधान सचिव बनाए जा सकते हैं। वह इंतजार कर रहे थे कि उन्हें इसका सिला मिलेगा। उन्हें फाइलें लेकर अक्सर सीएम के इर्द गिर्द देखा जाता था। खेमका को लग रहा था कि उन्हें हुड्डा सरकार में वाड्रा-डीएलएफ लैंड डील का इंतकाल रद करने का सिला मिलने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सोशल मीडिया पर इन दोनों अफसरों को हाथों हाथ लिया जाता है। यही वजह है कि उनके हर काम को न केवल भरपूर समर्थन मिलता है और सरकार पर लोग सवाल उठाने लगते हैं।

    इन अफसरों के विरुद्ध सरकार का हथियार कर्मचारी

    इन दोनों अफसरों के विरुद्ध सरकार के पास सबसे बड़ा हथियार कर्मचारियों का समर्थन है। दोनों अधिकारी खेमका और कासनी जिस भी विभाग में रहे, वहां के स्टाफ को अपना नहीं बना सके। दरअसल, इन अफसरों ने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का भरोसा जीतने की कभी कोशिश नहीं की। जिस भी फाइल में घुसे, उसी में खामियां निकालते हुए अपने पूर्व के अफसरों, मंत्रियों और नेताओं के साथ-साथ कर्मचारियों को भी निशाने पर लिए रखा। यही वजह है कि दोनों अफसरों के खिलाफ विभिन्न विभागों में कई आंदोलन भी हुए।

    कानून की पढ़ाई और साहित्य को बना रहे हथियार

    खेमका आजकल कानून की पढ़ाई कर रहे हैं। वह सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं पढ़ रहे। माना जा रहा कि उनकी कानून की यह पढ़ाई भविष्य में किसी हथियार के रूप में काम आएगी। कासनी सीधे व्यवस्था पर चोट करते हैं। महापुरुषों व बड़े साहित्यकारों के कोट्स को अक्सर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते। किताबें भी खूब लिखी हैं। उनका साहित्य ही हथियार है।

    हमें पता है किससे क्या काम लेना

    देखिए, किस अफसर से क्या काम लेना है, कौन कहां फिट बैठता है, किसकी कहां पर जरूरत है, यह सोचना सरकार का काम है और अफसर से वैसा ही काम लिया जाता है। तबादलों को राजनीति से जोड़ना उचित नहीं होता। अधिकारी की योग्यता के हिसाब से और जरूरत के मुताबिक सरकार उनसे कोई भी काम लेती है। इन तबादलों पर अंदाजे नहीं लगाए जाने चाहिए।
    - मनोहर लाल, मुख्यमंत्री, हरियाणा
     

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