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आखिर क्या है स्त्रीत्व..

'मैंने अपने अंदर छुपे हुए स्त्रीत्व को ढूंढ़ लिया है' टीवी शो 'बिग बॉस सीजन-5' में प्रवेश करते समय ट्रांसजेंडर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने यह कहकर स्त्रीत्व में एक नया आयाम जोड़ा और छोड़ दिया एक सवाल कि केवल सुंदर, नाजुक, लज्जा से भरी नारी ही स्त्री है! भारी आवाज, छोटे बाल, 'दमदार श्

By Edited By: Published: Sat, 14 Jun 2014 04:17 PM (IST)Updated: Sat, 14 Jun 2014 04:17 PM (IST)

'मैंने अपने अंदर छुपे हुए स्त्रीत्व को ढूंढ़ लिया है' टीवी शो 'बिग बॉस सीजन-5' में प्रवेश करते समय ट्रांसजेंडर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने यह कहकर स्त्रीत्व में एक नया आयाम जोड़ा और छोड़ दिया एक सवाल कि केवल सुंदर, नाजुक, लज्जा से भरी नारी ही स्त्री है! भारी आवाज, छोटे बाल, 'दमदार शख्सियत' या 'हिटलर' आदि की उपाधि से नवाजी जाने वाली महिलाओं में नहीं होता स्त्रीत्व?

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कोंचिता व‌र्स्ट। यह नाम हाल की खबरों में सुर्खियों में था। यूरोविजन संगीत प्रतिस्पर्धा का खिताब जब स्त्री जैसी वेशभूषा रखने वाले टॉम न्यूवर्थ नामक एक पुरुष ने जीता तो दुनिया उनकी इस उपलब्धि से ज्यादा उनके इस विचित्र रूप की चर्चा में मशगूल हो गई। कोचिंता दाढ़ी रखते हैं और इसलिए 'दाढ़ी वाली महिला' के रूप में ज्यादा पॉपुलर हैं। वह दाढ़ी को सहिष्णुता का प्रतीक मानते हैं। उनके मुताबिक, 'हमें लैंगिकता के आधार पर अपनी पहचान कायम नहीं करनी चाहिए और स्त्री बनना तो उनके लिए गर्व की बात है..।' कोंचिता जैसे पुरुषों की कमी नहीं, जो स्त्री बनना पसंद करते हैं। दरअसल, वे स्त्री बनने से ज्यादा अपने अंदर के 'स्त्रीत्व' को सेलिब्रेट करते हैं।

पर क्या है स्त्रीत्व? बढि़या व्यक्तित्व (सुंदर-सजीली नारी), कुशल गृहिणी या एक स्त्री की वह छवि, जिसमें उसका स्वाभाविक रूप नजर आए? वास्तव में आसान नहीं है स्त्रीत्व को परिभाषित करना। साठ के दशक में जब अमेरिकी अभिनेत्री और गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड विजेता सांड्रा डी से यही सवाल किया गया तो उन्होंने स्त्रीत्व को स्त्री के बाहरी व्यक्तित्व, उसके सुंदर कपड़े और पेश होने के 'स्त्रियोचित' अंदाज से जोड़ा था, पर आज तकरीबन पचास साल बाद स्त्रीत्व की इस पारंपरिक धारणा में काफी बदलाव आ गया है। हर कोई स्त्रीत्व को अपने तरीके से परिभाषित करता है। आइए, कुछ जानी-मानी सेलेब्रिटीज की नजर से जानें, इस पर क्या है उनकी राय..

मेरे भाव ज्यादा गहरे

सुदीपा सिंह, मॉडल व अभिनेत्री

हम जानते हैं कि कुदरती तौर पर पुरुष और स्त्री में फर्क होता है। स्त्री ज्यादा संवेदनशील होती है। हर छोटी-छोटी बात उसे छू जाती है। हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक, बुरी खबरें उन्हें ज्यादा प्रभावित करती है। मन के अनकहे भाव को भी वह पढ़ सकती है। संकेतों की भाषा भी समझ सकती है। इसलिए कहा जाता है कि उसका सिक्स्थ सेंस कमाल का होता है। उसकी बुद्घिमत्ता की तारीफ होती है। बेशक उसके प्रेम और करुणा के भाव ज्यादा गहरे और सशक्त होते हैं। यही कारण है कि उसे अधिक सशक्त माना गया है। देवी मानने के मूल में भी यही बात है। स्त्रीत्व यही तो है। स्त्रीत्व को एक शब्दावली से ज्यादा इन्हीं व्यापक अर्थो में लिया जा सकता है।

यही है सौंदर्य काजोल, अभिनेत्री

सुंदर चेहरा, सुंदर शरीर.. यानी कुल मिलाकर एक स्त्री सौंदर्य ऐसा हो कि देखते ही मन मोह लें यदि कोई 'स्त्रीत्व' को बस इस अर्थ में लेता है तो वह 'स्त्रीत्व' को नहीं समझ पाया है। वे सौंदर्य को सीमित अर्थो में रखकर देखते-समझते हैं और सौंदर्य को सीधे तौर पर स्त्री से जोड़कर देखते हैं। वे सौंदर्य को स्त्रीत्व के मूल गुण बताने से भी गुरेज नहीं करते, जबकि हकीकत बहुत अलग है। मेरी नजर में 'स्त्रीत्व' का मतलब है, वह अहसास जो हमें भीतर से खूबसूरत बना दे। आत्मविश्वास से लबालब कर दे। हमारे विजन को व्यापक, विशाल बना दे। स्त्रीत्व में यही सौंदर्य होता है, जो उसे भीतर ही नहीं, बाहर से भी खूबसूरत बना देता है। स्त्रीत्व की यही परिभाषा है, जो मुझे सबसे सटीक लगती है।

बहुआयामी है यहगीता चंद्रन, नृत्यांगना

स्त्री यह लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती तीनों देवियों का एक अद्भुत संयोग है। इनमें किसी को दूसरे से अलग कर नहीं देखा जा सकता। इन तीनों देवियों के गुणों के आधार पर देखें तो तीनों अलग-अलग होकर भी हर एक स्त्री के अंदर विराजमान हैं। स्त्रीत्व का सबसे खूबसूरत तत्व उसका बहुआयामी होना है। जिस भी क्षेत्र में वह जाए, उसे अपने हाथों से संवारकर अद्वितीय बना देती है। जिस भी राह चलती हैं, उसमें अपने रंग भरती हैं और सबको हैरत में डाल देती हैं। मिसाल बन जाती हैं। पुरुष को कहना पड़ता है कि हमें यह सीखना है, पर कैसे संभव होगा यह? यह सवाल उनके सामने हमेशा रहता है।

है सीप की तरह

तारा देशपांडे, अभिनेत्री एवं लेखिका

स्त्रीत्व को परिभाषित करने के लिए शब्द काफी नहीं हैं। यह एक अनुभव है, जो बस महसूस होता है। मुझे लगता है केवल स्त्री को ही 'स्त्रीत्व' का अहसास नहीं होता। एक पुरुष भी इस टर्म को समझता है, इसके मर्म से इंकार नहीं कर सकता। कुछ लोग बेडौल शरीर और भारी आवाज से युक्त स्त्री में स्त्रीत्व की बात से इंकार करते हैं। यह धारणा पूर्वाग्रह से भरी है। मुझे स्त्रीत्व का जो सबसे बड़ा तत्व लगता है, वह है उसका सीप की तरह होना। जो बाहर से कठोर दिखती है, लेकिन उसके अंदर दया और वात्सल्य रूपी मोती छुपा होता है। उसकी भाव-भंगिमा में ही नहीं, स्त्री की हर गतिविधियों में उसका यह गुण नजर आता है।

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