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Yes Papa Review: संवेदनशील विषय पर चुप्पी तोड़ती है फिल्म, मकसद हासिल करने में रही विफल

Yes Papa Review हिंदी सिनेमा में अक्सर ऐसी फिल्में आती हैं जो मुद्दाप्रधान हों और किसी ऐसे विषय को एड्रेस करती हैं जो बेहद जरूरी है। यस पापा ऐसी ही फिल्म है जिसमें बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों को दिखाया गया है। इसकी कहानी संवेदनशील है मगर ट्रीटमेंट में कमजोरी के चलते फिल्म असर नहीं छोड़ती है। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में शूट की गई है।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Published: Fri, 29 Mar 2024 04:09 PM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2024 04:09 PM (IST)
Yes Papa Review: संवेदनशील विषय पर चुप्पी तोड़ती है फिल्म, मकसद हासिल करने में रही विफल
यस पापा सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम

प्रियंका सिंह, मुंबई। कोई तंग करे तो पापा को जाकर बता दो, पर पापा का नाम किससे कहूं...। नाटककार सैफ हैदर हसन की फिल्म यस पापा यही सवाल उठाने का प्रयास करती है। फिल्म के डिस्क्लेमर में बता दिया गया है कि फिल्म का उद्देश्य बाल यौन शोषण जैसे घिनौने कृत्य पर प्रकाश डालना और जागरूकता बढ़ाना है, जहां कई बार परिवार का सदस्य ही भक्षक निकलता है।

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क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी शुरू होती है विनीता घोषाल (गीतिका त्यागी) द्वारा अपने पिता सग्नि घोषाल (अंनत महादेवन) की हत्या के साथ। उसके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके वह एक बैग में भरकर फेंक देती है। उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है।

तलाकशुदा और एक बेटी की मां विनीता जब अदालत में पेश होती है तो इस हत्या के पीछे का मजबूत कारण पता चलता है। वह बचपन में अपने पिता द्वारा ही यौन शोषण का शिकार हुई होती है। अब पिता की नजर उसकी बेटी पर होती है।

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कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?

ब्लैक एंड व्हाइट में बनी यह फिल्म कम समय में बाल यौन शोषण के आसपास पसरी उस चुप्पी को तोड़ने का प्रयास करती है, जहां परिवार का ही कोई सदस्य ऐसे घिनौने कृत्य में लिप्त होता है।

बदनामी के डर से परिवार वाले ही इस पर पर्दा डालते हैं। कई नाटकों का लेखन और निर्देशन कर चुके सैफ हैदर हसन की सोच फिल्म को बनाने को लेकर अच्छी है, लेकिन वह इसे प्रभावशाली नहीं बना पाए हैं।

फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, लेकिन फिर भी नाटक जैसी लगती है। 85 मिनट की होने के बावजूद लंबे-लंबे शाट्स की वजह से फिल्म लंबी लगती है और मुद्दे का असर भी कम हो जाता है। हालांकि, पिता का अपनी बेटी की गुड़िया के कपड़े उतारने वाला दृश्य झकझोरता है।

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कोर्ट रूम के दृश्य भी हल्के लगते हैं, जहां आरोपी के खिलाफ लड़ने वाला वकील कविताएं कहने लगता है। फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट में रखने का कारण शायद यह है कि निर्देशक उस बच्ची की मनोदशा दिखाना चाहते थे, जिसमें पिता के घिनौने कृत्य की वजह से कोई रंग नहीं बचा, लेकिन वह इसे समझा नहीं पाए हैं।

गीतिका त्यागी ने विनीता के पात्र को आत्मसात किया है। कम शब्दों में कैमरे के टाइट फ्रेम में वह चेहरे के भावों और आंखों के खालीपन से पिता के लिए गुस्से और दर्द को बयां करती हैं।

अनंत महादेवन का फिल्म में आगमन 40 मिनट बाद होता है। संक्षिप्त भूमिका में वह प्रभावित करते हैं। वकील बनी तेजस्विनी कोल्हापुरे और जज के रोल में दिव्या सेठ का रोल ठीक-ठाक है। बाकी कलाकारों का काम ऐसा नहीं, जिनके बारे में बात की जाए।


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