'हंटर' के निर्देशक बोले, दर्शक कर रहे सार्थक सिनेमा का स्वागत
मौजूदा साल में छोटे बजट की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी चमक बिखेरी है। दिलचस्प यह है कि वैसी फिल्मों में गौर फरमाए गए विषयों को दर्शकों ने खुले दिल से स्वीकार किया। कुछ महीने पहले आई ‘हंटर’ उसी तरह की फिल्म है। इस फिल्म की स्क्रीनिंग छठे जागरण
अमित कर्ण, नई दिल्ली। मौजूदा साल में छोटे बजट की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी चमक बिखेरी है। दिलचस्प यह है कि वैसी फिल्मों में गौर फरमाए गए विषयों को दर्शकों ने खुले दिल से स्वीकार किया। कुछ महीने पहले आई ‘हंटर’ उसी तरह की फिल्म है। इस फिल्म की स्क्रीनिंग छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में हुई।
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इसमें एडल्ट्री (अवैध संबंध) जैसा विषय कहानी के केंद्र में था। इस तरह के विषय पर आज भी लोग बात करने में हिचकिचाते हैं। ऐसे में लोग डरे हुए थे कि कहीं फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ढेर न हो जाए।
फिल्म के निर्देशक हर्षवर्धन कुलकर्णी बताते हैं कि सब का डर निमरूल साबित हुआ। फिल्म के ह्यूमर ने दर्शकों का दिल जीता। नतीजतन, उसने अच्छी कमाई की। यह सब फिल्म फेस्टिवल के चलते हुआ। वहां दुनिया भर की फिल्में आती हैं। उससे विभिन्न विषयों के प्रति लोगों में सहजता आई है। सबसे बड़ी बात यह कि दर्शकों का टेस्ट बदला है। सार्थक सिनेमा का स्वागत वे खुले दिल से करते हैं। तभी आज की तारीख में अब हम हंटर या एनएच-10 जैसी फिल्में बनाने की सोच भी सकते हैं।
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उन्होंने कहा, 'हां, यह जरूर है कि आप को सुनिश्चित करना होगा कि आप जो भी कंटेंट देना चाहते हैं, वह सतही न हो। अश्लीलता का पुट न हो उसमें। हंटर में एडल्ट्री, सेक्सुएलिटी जैसे विषय होने के चलते उसके वल्गर होने की गुंजाइश थी, लेकिन मैंने सुनिश्चित किया कि वैसा कहीं से न हो। लोगों को हंसी-मजाक में जहीन बात समझा दी गई। हमने अपने नायक वासु के जरिये अपनी बातें भी कह दीं और उसने कहीं से किसी की भावनाएं भी आहत नहीं की। पीकू में कब्ज केंद्र में था, पर देखिए लोगों ने फिल्म को क्या कमाल का रिस्पांस दिया।'
उन्होंने कहा कि जागरण फिल्म फेस्टिवल में हंटर देखने एक बुजुर्ग महिला आई हुई थीं। मैंने उन्हें नोटिस किया कि पूरी फिल्म में वे हंसती-मुस्कुराती रहीं। मतलब स्पष्ट था कि यह उन्हें सेक्स कॉमेडी नहीं लगी। मैं तो जागरण फिल्म फेस्टिवल का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जो ऐसे सब्जेक्ट की फिल्म इस फेस्टिवल के जरिये छोटे शहरों में भी जा रही है। वहां ऐसे सब्जेक्ट के प्रति लोगों में सहज भाव लाना जरूरी है वरना सामंती व सीमित सोच ध्वस्त नहीं हो सकती।
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वह बताते हैं, 'फेस्टिवल को मैं मीडिया से भी बेहतर व प्रभावी टूल मानता हूं, क्योंकि यह मीडिया है जो फिल्म को पहले ही खांचों में बांट देता है कि फलां फिल्म सॉफ्ट कॉमेडी है तो फलां एडल्ट कॉमेडी। हंटर के साथ भी ऐसा ही हुआ। मीडिया ने उसे एडल्ट कॉमेडी करार दिया, जबकि रिलीज व स्क्रीनिंग में इसे देखने तकरीबन हर उम्र के लोग आए। जाहिर है अगर यह सेक्स कॉमेडी होती तो इसे देखने उम्र विशेष के लोग ही आते। इस तरह फिल्म फेस्टिवल छोटे बजट व सार्थक सिनेमा को बखूबी सींच रहे हैं।'