प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने एक अध्यादेश लाकर किसानों और देश के हित में ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना में पारदर्शिता और उचित मुआवजे का अधिकार कानून, 2013 में अत्यावश्यक संशोधन किए हैं। ये संशोधन न तो अकारण हैं, न अनुचित, न असंवैधानिक और न ही अलोकतांत्रिक हैं। किसानों को न्याय दिलाने, विकास की रफ्तार बढ़ाने और पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की गलतियों को सुधारने के लिए इन संशोधनों की दरकार थी। सरकार ने जबसे इन संशोधनों का प्रस्ताव किया है तब से कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है। इस कोशिश में कांग्रेस झूठ का सहारा ले रही है। कहा जाता है कि एक झूठ को अगर बार-बार बोला जाए तो लोगों को यह सच लगने लगता है। कई बार तो झूठ बोलने वाले व्यक्ति को ही वह सत्य जान पड़ता है। राजग सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार के लिए कांग्रेस भी यही तरीका अपना रही है। कांग्रेस की इस दुष्प्रचार बिग्रेड के चंैपियन पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं जिनके कार्यकाल के दौरान कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकारों ने हरियाणा, भट्टा पारसौल और टप्पल सहित देश के कई भागों में लाखों किसानों की जमीन छीनकर कांग्रेसी नेताओं के रिश्तेदारों, बिल्डरों और धन्नासेठों को दीं। जयराम ने ही 13 कानूनों को अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 105 से बाहर रखकर किसानों को बाजार भाव पर मुआवजे तथा पुनर्वास के अधिकार से वंचित रखा। अब वही जयराम किसानों के हितों की दुहाई देकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।

जयराम ने एक लेख लिखकर सात असत्य दलीलों पर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 2015 के विरोध की बुनियाद तैयार की है। उनकी पहली असत्य दलील सामाजिक प्रभाव आकलन के बारे में है। कई राज्यों ने केंद्र से सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधान को हटाने का अनुरोध किया था। इसलिए सरकार ने इस संबंध में संशोधन किया है। यह अनुरोध अधिकतर कांग्रेस शासित राज्यों से ही आया। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा की सरकार ने एक सचिव स्तरीय दल केंद्र के पास भेजकर सामाजिक प्रभाव आकलन को खत्म करने का आग्रह किया। उनका कहना था कि अगर यह व्यवस्था जारी रही तो राज्य सरकार एक इंच जमीन का अधिग्रहण भी नहीं कर सकेगी। इस तथ्य से पता चलता है कि कांग्रेस की कथनी-करनी में कितना फर्क है। जयराम के मिथ्या प्रचार का दूसरा बिंदु है अधिग्रहण पर किसानों की सहमति। केंद्र ने जब इस बाबत राज्यों के राजस्व सचिवों का सम्मेलन बुलाया था तो उसमें कांग्रेस की हरियाणा सरकार ने जोर देकर कहा कि पीपीपी परियोजनाओं में जमीन पर मालिकाना हक सरकार के पास ही रहता है इसलिए अधिग्रहण के लिए किसानों की मंजूरी के प्रावधान को खत्म कर देना चाहिए। यह तथ्य भी कांग्रेस के असली चेहरे को बेनकाब करता है।

तीसरा बिंदु है-औद्योगिक गलियारों के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रावधान। जयराम का कहना है कि सरकार यह जमीन बिल्डरों को देगी। जयराम शायद भूल रहे हैं कि किसानों की जमीन छीनकर बिल्डरों को देने की कार्यशैली कांग्रेस की रही है। हरियाणा इसका जीता जागता उदाहरण है। कैग की एक ताजा रिपोर्ट इस बात की पुष्टि भी करती है कि किस तरह कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने कांग्रेसी नेताओं के रिश्तेदारों की रियल एस्टेट कंपनी को किसानों की उपजाऊ जमीन कौड़ियों के भाव दी और इन कंपनियों ने उस पर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाया। चौथा बिंदु राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा परियोजनाओं के संबंध में हैं। वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस ने 2013 के विधेयक में कई ऐसे प्रावधान किए थे, जिसके चलते सामरिक और रक्षा परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण मुश्किल हो गया था। इसलिए राजग सरकार ने इसमें बदलाव किया है। पांचवां बिंदु मुआवजे के साथ-साथ किसानों को जमीन वापस देने के संबंध में हैं। हकीकत यह है कि राजग सरकार ने मुआवजे और पुनर्वास के प्रावधानों से कोई छेड़छाड़ नहीं की है। वास्तविकता यह है कि जमीन अधिग्रहण से प्रभावित किसान को न सिर्फ मुआवजा मिलेगा, बल्कि विकसित भूमि का 20 प्रतिशत हिस्सा भी उसे मिलेगा। साथ ही प्रभावित किसान या कृषि मजदूर के परिवार के एक सदस्य को अनिवार्य रोजगार मिलेगा।

छठा बिंदु अधिग्रहीत भूमि का पांच साल तक उपयोग न होने के संबंध में हैं। इस संबंध में राजग सरकार ने बस इतना संशोधन किया है कि अगर किसी परियोजना को लेकर अदालत में मामला चलता है तो उस अवधि को निकालकर पांच साल की अवधि को जोड़ा जाए। यह स्वाभाविक है, क्योंकि जब मामला अदालत के विचाराधीन होगा तो परियोजना पर काम नहीं हो सकता। इसलिए व्यवहारिक अड़चन को दूर करने के लिए यह संशोधन किया गया। जयराम का सातवां झूठ है कि सरकार किसी भी इकाई, संगठन, एनजीओ या फिर व्यक्ति के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकेगी। यह पूरी तरह असत्य है। सच यह है कि सरकार किसी भी निजी अस्पताल या स्कूल के लिए एक भी इंच जमीन का अधिग्रहण नहीं करेगी। इस बात का प्रावधान 2015 के संशोधन विधेयक में किया गया है। भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक 2015 के विरोध में जयराम की सभी दलीलें झूठ की बुनियाद पर खड़ी हैं जो जनता के समक्ष टिक नहीं सकतीं। जयराम का कहना है कि देश में भूमि अधिग्रहण के नाम पर किसानों के साथ बड़ा अन्याय हुआ है। यह बात बिल्कुल सही है, क्योंकि यह अन्याय कांग्रेस के पांच दशक के शासन में हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने इसी अन्याय की पुनरावृत्ति रोकने को भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन किए हैं। कांग्रेस के पास इन संशोधनों का समर्थन कर विगत में अपनी गलतियों के लिए प्रायश्चित करने का मौका है। जहां तक प्रश्न है कि सपा, बसपा, तृणमूल, अन्नाद्रमुक और बीजू जनता दल जैसे दल राज्यसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का समर्थन करेंगे या नहीं तो इसका जवाब 20 मार्च को मिल चुका है जब विपक्षी दलों ने कांग्रेस की व्यवधानकारी राजनीति को छोड़कर कोयला और खान व खनिज विधेयकों पर राजग की विकास की नीतियों का समर्थन किया।

[श्रीकांत शर्मा: लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं]