बृज लाल। कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाला विपक्षी मोर्चा आइएनडीआइए आजकल दो फर्जी नैरेटिव चला रहा है। एक यह कि यदि भाजपा तीसरी बार सत्ता में आई तो दलितों एवं पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देगी और दूसरा यह कि वह संविधान को बदल देगी। इस फर्जी नैरेटिव से वह दलितों और पिछड़ों को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है। सच तो यह है कि कांग्रेस आरंभ से ही दलितों एवं पिछड़ों के आरक्षण की विरोधी रही है। जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में ही तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था कि वे आरक्षण को पसंद नहीं करते।

काका कालेलकर आयोग और मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़ों के आरक्षण की बात कही थी, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने उसे लागू नहीं होने दिया। जब 1990 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, तब जाकर अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल पाया। यह मोदी सरकार है, जिसने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया, जबकि कांग्रेस की सरकारों ने इसे वर्षों तक लटकाए रखा। अभी कर्नाटक में कांग्रेस ने तुष्टीकरण की नीति के तहत वहां समस्त मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा मानकर आरक्षण दे दिया।

आखिर वह इस नतीजे पर कैसे पहुंची कि कर्नाटक के सभी मुस्लिम पिछड़े हैं और इस कारण वे आरक्षण के हकदार हैं? क्या मुस्लिम समाज को सामाजिक रूप से ओबीसी समुदाय के समकक्ष रखा जा सकता है? कांग्रेस इस तरह का काम अविभाजित आंध्र प्रदेश में भी कर चुकी है। वहां दलितों, पिछड़ों के आरक्षण में से ही मुसलमानों को आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी। कांग्रेस ने जिस रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया था, उसकी रिपोर्ट में दलितों/पिछड़ों के आरक्षण को कम करके मुस्लिम समुदाय को देने की सिफारिश की गई थी। बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर पंथ-मजहब आधारित आरक्षण के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने संविधान में इसकी व्यवस्था नहीं की।

राहुल गांधी के सलाहकार रहे सैम पित्रोदा अभी हाल में इस मत का समर्थन करते दिखे कि संविधान निर्माण में डा. आंबेडकर नहीं, बल्कि जवाहरलाल नेहरू की मुख्य भूमिका थी। ध्यान रहे कि नेहरू जी ने डा. आंबेडकर के न चाहते हुए भी संविधान में अनुच्छेद-370 और 35ए जोड़ा, जिसके जरिये जम्मू-कश्मीर में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का हक छीना गया। इस विभाजनकारी अनुच्छेद के चलते जम्मू-कश्मीर के अनुसूचित समाज के उच्चशिक्षित युवा भी केवल सफाई कर्मी की ही नौकरी पा सकते थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अनुच्छेद-370 खत्म कर जम्मू-कश्मीर को केवल भारत का अभिन्न अंग ही नहीं बनाया, बल्कि उन्होंने राज्य में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आरक्षण के उस अधिकार को भी बहाल किया, जिसकी दशकों से अनदेखी हो रही थी। अब आइएनडीआइए के कुछ घटक दल कह रहे हैं कि सत्ता में आने पर वे अनुच्छेद-370 वापस लाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो वहां के दलितों एवं पिछड़ों के आरक्षण का अधिकार छिन जाएगा। क्या कांग्रेस जम्मू-कश्मीर के दलितों एवं पिछड़ों के आरक्षण को छीनने के अपने घटक दलों के वादों का समर्थन कर रही है?

यह भी ध्यान रहे कि संविधान में सबसे अधिक 80 संशोधन कांग्रेस ने ही किए। 1975 में आपातकाल लगाकर संविधान की धज्जियां उड़ाने का काम भी उसने ही किया था। कांग्रेस ने डा. आंबेडकर को कभी यथोचित सम्मान नहीं दिया। उन्हें 1946 में संविधान सभा, 1952 में संसदीय चुनाव और उसके बाद हुए संसदीय उपचुनाव में भी हराने का काम किया। जब तक केंद्र में कांग्रेस सरकार रही, तब तक डा. आंबेडकर को भारत रत्न नहीं मिल सका। उन्हें 31 मार्च, 1990 को भारत रत्न तब मिल पाया, जब केंद्र में भाजपा के सहयोग से वीपी सिंह की सरकार बनी। प्रधानमंत्री मोदी ने बाबा साहब के सम्मान में अनेक कार्य किए, जिनमें से एक ‘पंच तीर्थ’ का निर्माण है।

कांग्रेस माकपा के दबाव में यहां तक कहने लगी है कि यदि वह सत्ता में आई तो नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को समाप्त करने का काम करेगी। इस कानून के तहत भारत की नागरिकता उन हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध, ईसाई, जैन शरणार्थियों को मिलने वाली है, जो उत्पीड़न के चलते पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से पलायन कर 2014 से पहले भारत आए थे। भारत की नागरिकता के हकदार इन शरणार्थियों में 70-75 प्रतिशत अनुसूचित जाति के हैं और इसमें भी अधिकतर बांग्लादेश से आए नमोशूद्र और मतुआ समाज के लोग हैं।

यदि सीएए समाप्त किया गया तो सबसे अधिक चोट अनुसूचित जातियों को पहुंचेगी। यह भी याद रखें कि 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्वर्सिटी और 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत हुई। इनमें से बीएचयू तो संविधान प्रदत्त आरक्षण देता है, मगर एएमयू ने दलितों-पिछड़ों को आरक्षण नहीं दिया। इंदिरा सरकार ने 1981 में एएमयू एक्ट में संशोधन कर दलितों-पिछड़ों के हितों के प्रविधान को ही समाप्त कर दिया। यह तो भला हो इलाहाबाद हाई कोर्ट का, जिसने पहले 2005 और बाद में 2006 में निर्णय दिया कि इंदिरा सरकार द्वारा किया गया संशोधन गैर-कानूनी है।

उसने 1981 में किए गए संशोधन को समाप्त कर दिया। उसके निर्णय के बावजूद एएमयू में अब भी दलितों, पिछड़ों, गरीब सवर्णों को संविधान प्रदत्त आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। यह कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति का नतीजा है। दलितों, आदिवासियों एवं पिछड़े समाज के कल्याण के लिए जितना काम मोदी सरकार ने पिछले 10 साल में किया है, उतना आजादी के कई दशकों बाद तक भी नहीं हुआ। आरक्षण के मामले में यह देखने की आवश्यकता है कि किस दल की सरकार ने उसके लिए क्या किया?

(लेखक भाजपा के राज्यसभा के सदस्य एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं)