पड़ोस का अफसोस
नीति खुशहाल, अमन और तरक्की पसंद पड़ोस हर देश की जरूरत रहा है। इतिहास गवाह है कि जिनके पड़ोसी में ये सारी खूबियां रहीं हैं उन्होंने न केवल समृद्धि के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं बल्कि सौहार्द्र और भाई-चारे की मिसाल कायम की है। आधुनिक युग के विदेश नीति की आधारशिला ऐसे पड़ोसी को तलाशने और बनाने पर टिकी है। सभी जानते ह
नीति
खुशहाल, अमन और तरक्की पसंद पड़ोस हर देश की जरूरत रहा है। इतिहास गवाह है कि जिनके पड़ोसी में ये सारी खूबियां रहीं हैं उन्होंने न केवल समृद्धि के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं बल्कि सौहार्द्र और भाई-चारे की मिसाल कायम की है। आधुनिक युग के विदेश नीति की आधारशिला ऐसे पड़ोसी को तलाशने और बनाने पर टिकी है। सभी जानते हैं कि पड़ोसी को मनमाफिक चुना नहीं जा सकता लिहाजा हमें उसे अपने अनुरूप बनाने और उसकी पसंद की तरह बनने की हर संभव कोशिश करनी होती है। इन्हीं गुणों वाले पड़ोसी को पाने के लिए पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंधों की खातिर शुरू से ही हम अपना बहुत कुछ दांव पर लगाते चले आ रहे हैं। अपनी फितरत के अनुसार विश्वासबहाली की हमारी हर पहल का जबाव वह विश्वासघात से देता चला आ रहा है।
नीयत
बड़े भाई के दायित्व को निभाने की नेक मंशा के साथ हम उसकी हर कारगुजारियों को माफ करके आगे बढ़ने की सोचते रहे हैं। शायद हर चीज की हद होती है। अब हमारा भी धैर्य जवाब दे चुका है। भारत के लाख मना करने के बावजूद दोनों देश के विदेश सचिव वार्ता से ठीक पहले पाकिस्तान ने कश्मीरी अलगाववादियों से बातचीत करके द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन किया। लिहाजा वार्ता को रद करके पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने के सिवा भारत के पास कोई चारा नहीं बचा। भारतीय संदर्भ में पुरानी कहावत है कि विनय न मानत जलधि जड़..।
नेमत
विदेश नीति और कूटनीति के कई जानकार भारत के इस कड़े कदम को सही ठहरा रहे हैं। उनका मानना है कि पाकिस्तान की नीयत को देखते हुए भारत का परंपरागत नरम और लचीला रवैया उचित नहीं है। कड़ा कदम उठाना तर्कसंगत है, लेकिन अंतत: विचार तो बड़े भाई को ही करना होता है। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होते और ऐसा भी नहीं किया जा सकता कि हर लिहाज से भारत के प्रतिकृति वाले पड़ोसी देश से कोई संबंध ही न रखे जाएं। ऐसे में जब दोनों देशों की अवाम रिश्तों में बेहतरी की पक्षधर है। बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान बातचीत के माध्यम से ही संभव हो सका है। लिहाजा पाकिस्तान को भी साफ नीयत और स्पष्ट मंशा के साथ आगे बढ़ना होगा। ऐसे में घरेलू और वाह्य मोर्चो पर एक समान संकट से घिरे पड़ोसी से रिश्ते बहाल करने की जुगत निकालना आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
सियासी मजबूरी
पाकिस्तान से वार्ता को रद करना भारत की भी घरेलू राजनीतिक मजबूरी है। हालिया लोकसभा चुनावों में जम्मू में बेहतर प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी की नजरें अब कश्मीर घाटी की चार से पांच उन सीटों पर लगी हैं जहां विस्थापित कश्मीरी पंडित मतदाताओं का रसूख है। 87 सदस्यों वाली विधानसभा में 44 से अधिक सीटों के लक्ष्य पर पार्टी ने बढ़ना शुरू कर दिया है। प्रवासी मतदाताओं पर आंख टिकाए इस पार्टी ने संसद के अंदर और बाहर कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी और उनके पुनर्वास का मसला जोरशोर से उठाया। भाजपा की इस रणनीति को प्रदेश की चार से पांच अहम सीटों पर पार्टी की मौजूदगी दर्ज कराने की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। अलगाववादियों द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने की रीति पर अमल करने की दशा में कश्मीरी पंडितों के वोट कुछ चुनाव क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त हासिल कराएंगे। अभी तक भाजपा को कश्मीर से किसी भी चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली है। इस तरह से प्रदेश और केंद्र में बहुमत की सरकार के लिए करने को बहुत कुछ होगा।
मसला और मिशन
कश्मीर का एक पक्षकार होने के बावजूद इस मसले पर पाकिस्तान की कोई संगठित नीति नहीं है। कम लोग जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ की विवादों की सूची से जम्मू-कश्मीर को हटा दिया गया है। यह भारत की एक बड़ी जीत है, वहीं पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका। हालांकि पाकिस्तान इससे अन्जान होने का बहाना करता है और वैश्विक समुदाय को इस मसले में हस्तक्षेप करने के लिए कहता रहता है। हालांकि सात फरवरी, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के कार्यालय ने स्पष्टतौर पर यह स्वीकार किया है कि इस मसले में उनकी बहुत सीमित भूमिका है। उन्होंने दोहराते हुए कहा है कि यदि हमारी जरूरत भी होगी तो इसके लिए दोनों तरफ से अनुरोध होनी चाहिए। द्विपक्षीय रूप से ही संयुक्त राष्ट्र इस मसले में दखल कर सकता है। भारत शुरू से ही ऐसी किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को खारिज करता आया है।
जनमत
क्या पाकिस्तान से प्रस्तावित वार्ता को रद करना मोदी सरकार का सही फैसला है?
हां 95 फीसद
नहीं 5 फीसद
क्या पाकिस्तान की नीयत को देखते हुए भारत का परंपरागत नरम रवैया उचित है?
हां 14 फीसद
नहीं 86 फीसद
आपकी आवाज
पाकिस्तान से बातचीत का सिलसिला खत्म कर अब भारत को आक्रामक तेवर दिखाने होंगे, क्योंकि पाक किसी शांति वार्ता से समझने वाला नहीं है। -सुमन भट्टाचार्या
वह किसी वार्ता से समझने वाला नहीं है। हमें सीमाओं पर चौकसी बढ़ाने के साथ सार्थक प्रयास करने होंगे। -अमिताभ श्रीवास्तव
आजादी के बाद भी हम पाक की मनोदशा को समझने मे विफल रहे जब पाक का वजूद ही भारत विरोधी है तो उससे मित्रवत व्यवहार की कल्पना करना ही मूर्खता है। -परवेजअंसारी@जीमेल.कॉम
पाकिस्तान से तय वार्ता को रद करना मोदी सरकार का पाकिस्तान के गाल पर करारा तमाचा है। -कुणालराज@जीमेल.कॉम
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