सांसों का संकट
हमारे शहरों की आबोहवा बिगड़ती जा रही है। सड़कों पर दौड़ते और बेतहाशा बढ़ते वाहनों ने वायुमंडल की प्राणवायु का ऐसा हाल कर दिया है कि इसमें घुले तमाम सूक्ष्म कण इंसानी स्वास्थ्य को अंदर ही अंदर खोखला करने लगे हैं। देश के बेशकीमती मानव संसाधन को लगते इस घुन
हमारे शहरों की आबोहवा बिगड़ती जा रही है। सड़कों पर दौड़ते और बेतहाशा बढ़ते वाहनों ने वायुमंडल की प्राणवायु का ऐसा हाल कर दिया है कि इसमें घुले तमाम सूक्ष्म कण इंसानी स्वास्थ्य को अंदर ही अंदर खोखला करने लगे हैं। देश के बेशकीमती मानव संसाधन को लगते इस घुन का असर प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से देश के आर्थिक विकास पर पड़ रहा है। तेज शहरीकरण और वहां बढ़ते वायु प्रदूषण ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। सांस रोगों, कैंसर सहित कई जानलेवा बीमारियों को शरीर में पैबस्त करने वाले ये प्रदूषक बड़े चिंता का विषय हैं। हैरत तो इस बात पर है कि आम नागरिक से जुड़ा यह अहम मसला अब तक किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में नहीं शामिल हुआ और न ही किसी भी चुनाव में मुद्दा बन सका।
बहरहाल, देर आये दुरुस्त आये। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित देशों की तर्ज पर देश का पहला वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) जारी किया है। अब हर कोई घर बैठे अपने शहर के वायु की गुणवत्ता को देख सकेगा। अब वायु की गुणवत्ता के आधार पर वह (खासकर सांस के रोगी) अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधानी बरत सकेगा।
वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मसले को जनता से जोड़ने की दिशा में इस सूचकांक को सरकार की अच्छी पहल के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि इस सूचकांक के माध्यम से जनता को वायु प्रदूषण के प्रति ज्यादा सचेत करने, उनकी सकारात्मक सहभागिता को सुनिश्चित करने जैसी चुनौतियों से सरकार को दो-चार होना पड़ सकता है। अच्छी बात यह है कि अगर एक बार आम जनता वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक हो गई और उसे इसके दुष्परिणामों की परवाह होने लगी, तो सरकार को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए किसी भी सख्त कदम पर वह समर्थन करेगी। साथ ही वे लोग भी अपनी सांसों पर खड़े हुए इस संकट से निजात पाने में बेहिचक सक्रिय भागीदारी निभाएंगे।
जनमत
क्या शहर की हवा आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है?
हां 95%
नहीं 5%
क्या शहर की खराब होती आबोहवा के लिए सिर्फ सरकारें जिम्मेदार हैं?
हां 55%
नहीं 45%
आपकी आवाज
वायु प्रदूषण से फिलहाल तो केवल उन लोगों की स्थिति खराब हो रही है जो हृदय या फिर फेफड़े की बीमारी से पहले से पीड़ित हैं। यह जरूर है कि जिस रफ्तार से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है उससे आने वाले दिनों में सेहतमंद लोग भी इसकी चपेट में आ जाएंगे। -विशाल
शहरों में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इनसे निकलने वाला धुआं वायु को प्रदूषित कर रहा है। ऐसे में सरकार को इस स्थिति पर समय रहते काबू पाना चाहिए। ऐसा न हो कि जब तक हम संभले तब तक देर हो जाए। -कृष्ण सिंह
अभी तक तो शहर की हवा उतनी प्रदूषित नहीं हुई है कि यह हमें बीमार कर दे। हालांकि हम पर्यावरण को जिस तरह नुकसान पहुंचा रहे हैं उससे वायु प्रदूषण में इजाफा हो रहा है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब हमें स्वच्छ हवा नसीब नहीं होगी। -कुलदीप
वायु प्रदूषण दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। इसका असर हम पर भी दिखने लगा है। इसका कारण सड़कों पर बढ़ रहे वाहनों की संख्या है। अक्लमंदी इसी में है कि स्थिति पर फौरन नियंत्रण पाने के लिए उपाय किए जाएं। -अंबिकेश पांडेय