अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन
थोक और खुदरा कीमतों में गिरावट, डीजल की कीमतों में कमी, औद्योगिक विकास दर में लंबे अर्से बाद बढ़ोतरी
थोक और खुदरा कीमतों में गिरावट, डीजल की कीमतों में कमी, औद्योगिक विकास दर में लंबे अर्से बाद बढ़ोतरी, शेयर बाजार में उछाल, मेक इन इंडिया अभियान का देश-विदेश में स्वागत, आर्थिक विकास दर का पांच फीसद से ऊपर जाना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निश्चित ही शुभ संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया विदेश दौरों से विदेशी निवेश की उम्मीद बढ़ी है। बड़े पैमाने पर डिजिटाइजेशन की मुहिम ई-क्त्रांति ओर इशारा करती है। लाल फीताशाही की जगह हरी फीताशाही की ओर भी सरकार के कदम बढ़ रहे हैं, जो भारत में व्यापार करने और उद्योग लगाने में सहायक साबित होगा। जीएसटी अथवा वस्तु एवं सेवा कर को लेकर जो अवरोध था वह अब दूर होता दिख रहा है और उम्मीद है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर निर्णय ले लिया जाएगा। इस सत्र में श्रम कानूनों और संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल के आने की भी संभावना है। कोयला खदानों की लाइसेंसिंग के नए नियम भी बन चुके हैं। डब्ल्यूटीओ में खाद्य सुरक्षा के मसले पर अमेरिका के साथ जारी गतिरोध भी अब खत्म हो चुका है। एक संतोषजनक बात यह भी है कि ऑस्ट्रेलिया भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करने को तैयार हो गया है, जो परमाणु बिजली परियोजनाओं के लिए वरदान साबित होगा।
1991 की नई अर्थनीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाया और विकास दर को 9 प्रतिशत तक पहुंचा दिया, किंतु पिछले कुछ वषरें में इसमें भारी कमी आई और संप्रग सरकार के अंतिम वर्ष में यह दर आधी रह गई। मोदी सरकार बनने के बाद विकास दर पटरी पर लौटने लगी है और खाद्य पदाथरें की कीमतों का सूचकांक तीन वर्ष के निम्नतम स्तर पर आ गया है। कीमतों के नीचे आने से रिजर्व बैंक पर ब्याज दर घटाने का दबाव बढ़ रहा है ताकि उद्योग-धंधों के लिए कर्ज सस्ता हो और निवेशकों को प्रोत्साहन मिले। औद्योगिक विकास दर में भी सुधार के संकेत हैं। घरेलू उद्योगपतियों और विदेशी निवेशकों को भारत में कारखाने लगाने और उत्पादन करने के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए मोदी ने मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत की है। इसके साथ ही निवेश की प्रक्रिया सरल बनाने पर जोर दिया जा रहा है। रेलवे में सौ फीसद और बीमा में 49 फीसद विदेशी निवेश की अनुमति दी गई है। रक्षा उत्पादन क्षेत्र में भी विदेशी पूंजी की अनुमति दी गई है। मोदी ने अपने हालिया विदेश दौरों में प्रवासी भारतीयों को आजीवन वीजा और पर्यटकों को एयरपोर्ट पर पहुंचने के साथ ही वीजा सुविधा का भरोसा जताया है। इसे भी भारत में आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के कदम के रूप में देखा जा रहा है।
डिजिटल भारत की महत्वाकांक्षी योजना भी मोदी सरकार का एक बड़ा और दूरदर्शी कदम है। इसके लिए 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाने का प्रावधान है। 2016 तक 2.5 लाख गांवों और 10 लाख से अधिक आबादी वाले सभी शहरों में वाई-फाई की सुविधा सबके लिए उपलब्ध कराई जाएगी। जिन 43,200 गांवों में अभी मोबाइल नेटवर्क नहीं है वहां भी यह सुविधा उपलब्ध करा दी जाएगी। सरकार का जोर नकदी लेन-देन को धीरे-धीरे कम करने का है। ई-क्रांति की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। अनुमान है कि डिजिटाइजेशन की योजना से 1.7 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष और 8.5 करोड़ लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल सकेगा। विकसित देशों की तुलना में भारत अभी इस क्षेत्र में बहुत पीछे है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रॉडब्रैंड देशों की सकल आय बढ़ाने में कामयाब रहा है। ब्रॉडबैंड सुविधा में 10 फीसद की वृद्धि कुल जीडीपी में 0.25 से 1.5 फीसद तक की वृद्धि कर सकती है। अर्थव्यवस्था के विकास में घरेलू बचत की भूमिका भारत में दुनिया के अधिकांश देशों से अधिक है। यह पहलू भारतीय जीवन शैली से जुड़ा है। लोग अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा बचाकर रखना चाहते हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर दूसरों के सामने हाथ न फैलाना पड़े। इसके विरुद्ध पाश्चात्य संस्कृति में कर्ज लेकर जीने की आदत है। भारत में घरेलू बचत का दो तिहाई हिस्सा सोने-चांदी के गहनों और जमीन-जायदाद के रूप में होता है। बचत दर बढ़ाने के लिए सरकार तमाम नई योजनाएं ला रही है। किसान विकास पत्र जो पिछले कुछ वषरें से बंद था उसे फिर से चालू किया गया है। इसमें निवेश की राशि सौ महीनों में दोगुनी हो जाएगी। इस योजना के साथ यदि टैक्स में भी कुछ छूट होती तो अधिक लोग आकर्षित होते। निजीकरण की प्रक्त्रिया को तेज करने के लिए पीपीपी यानी निजी-सार्वजनिक सहभागिता पर जोर दिया जा रहा है। व्यावसायिक उपयोग के लिए निजी क्षेत्र को कोयला खनन की अनुमति दे दी गई है। राज्य सरकारें भी निजी-सार्वजनिक सहयोग के मॉडल का उपयोग करके कोयला खनन कर सकेंगी। इससे कोल इंडिया का एकाधिकार अपने आप खत्म होने लगेगा।
श्रम कानून में परिवर्तन के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में बिल लाए जाने की संभावना है। अधिकांश श्रम कानून ब्रिटिश राज में बने थे, जिनकी प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं। पुराने कानूनों के चलते उद्योगों के समक्ष जो कठिनाइयां हैं उनको दूर करने के लिए नए प्रावधानों की जरूरत है। मजदूर संगठनों को इस बात का डर है कि नए नियम श्रमिकों की रोजगार सुरक्षा को कम करेंगे और उनके हितों की अनदेखी होगी। बिना नए नियमों को जाने-समझे यह चिंता आधारहीन है। सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना की घोषणा की है। इसके अंतर्गत हर श्रमिक को एक परमानेंट एकाउंट नंबर आवंटित होगा। इससे नौकरी बदलने पर भी उसे अपनी भविष्य निधि से पैसा निकालने में कोई परेशानी नहीं होगी। इसके लिए इंटरनेट पर एक पोर्टल बनाया गया है, जिससे पूरी जानकारी कभी भी हासिल की जा सकती है। कारखानों में इंस्पेक्टर राज की पूर्ण समाप्ति के लिए भी सरकार ने पहल की है। अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकार योजनाएं तेजी से ला रही है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन भी उतनी ही तेजी से हो।
[लेखक प्रो. लल्लन प्रसाद, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]