पढ़ें- लालू को इस विधानसभा चुनाव ने क्या-क्या सिखाया
बिहार विधानसभा चुनाव ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को बहुत कुछ सिखाया है। चुनावी सभाओं में अगड़ा-पिछड़ा को आधार बनाने वाले लालू ने चुनाव आयोग के भय या सत्ता में आने की उम्मीद से इस पर कुछ बोलने से परहेज कर लिया।
पटना [वीरेंद्र कुमार]। बिहार विधानसभा चुनाव ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को बहुत कुछ सिखाया है।
चुनावी सभाओं में अगड़ा-पिछड़ा को आधार बनाने वाले लालू ने चुनाव आयोग के भय या सत्ता में आने की उम्मीद से इस पर कुछ बोलने से परहेज कर लिया।
लालू के इन शब्दों के कई निहितार्थ हैं,जिसमें कहा गया है कि महागठबंधन के शासन में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। किसी के अंदर उदासी न हो। हर एक को लगे कि यह प्रदेश मेरा है।
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि चुनाव के दौरान लालू को इसका आभास हो गया कि भले ही यदुवंशियों व अल्पसंख्यकों सहित बड़ी संख्या में मतदाताओं की जमात उनके साथ है किन्तु समाज के बड़े तबके के बीच भय का भी माहौल है।
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लालू इसको भले ही भाजपा की सुनियोजित साजिश मानें किन्तु उनको अपने गिरेबां में झांकने के लिए विवश भी होना पड़ा है। प्रेक्षकों का मानना है कि आखिर क्या कारण है कि नीतीश कुमार को बार-बार कहना पड़ा कि कानून के शासन पर उनका लालू प्रसाद से कोई समझौता नहीं है।
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महागठबंधन की सरकार बनी तो लालू पूरी तरह से बदले नजर आएंगे। उनके समक्ष ऐसे नेताओं की लंबी सूची है जो उनके शासन में सभी तरह से मजबूत हुए। उनके गलत कार्यों का खामियाजा राजद शासन को भुगतना पड़ा। ऐसे लोग ही बाद में उल्टे दोष मढऩे लगे।
प्रेक्षकों का मानना है कि चुनाव सरकार के मुद्दे पर सत्ता में बैठे लोगों के राजनीतिक अखाड़े में होता है किन्तु, 2015 का विधानसभा चुनाव भाजपा नेताओं के बयान को आधार बनाकर हुआ।
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सही मायने में इस बार का युद्ध विपक्ष के अखाड़े में लड़ा गया। आरक्षण की समीक्षा से लेकर दादरी कांड पर विपक्ष के बयान को ही महागठबंधन ने अपने पक्ष में अमोध अस्त्र बनाया। इसके आधार पर गोलबंदी भी हुई।
पहले अगड़ा-पिछड़ा के आधार पर चुनाव की रणनीति बनी किन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पिछड़ी जाति के होने के कारण इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली। संयोग से तोड़-मरोड़ कर ही सही आरक्षण की समीक्षा संबंधित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान ने जान ला दी।
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महागठबंधन का प्रचार तंत्र आरक्षण मुद्दे को अपने मतदाताओं के बीच ले जाने में पूरी तरह से सफल रहा। इस पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को सफाई देनी पड़ी किन्तु तब तक काफी विलंब हो चुका था।
लालू व उनके कुनबे के दिमाग के यह बात समझ में आ गयी है कि शासन चलाने के लिए जनता के बीच कुशल प्रशासक के रूप में पहचान भी जरूरी है। इससे सरकार के प्रति सभी तबके का विश्वास बढ़ता है।
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महागठबंधन के पास नीतीश कुमार के रूप में ऐसा चेहरा है। जिसके बारे में कोई यह नहीं कह सकता कि उन्होंने कभी पुलिस व प्रशासन पर अनावश्यक दबाव बनाया हो। महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि को लेकर महागठबंधन के दावे में दम दिखता है कि महिलाओं को नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण के वादे सहित उनके हित को किए गए अन्य सरकारी निर्णय का नतीजा है। चुनाव नतीजा से ही इसकी सच्चाई सामने आएगी। सड़क व बिजली संबंधित भाजपा के चुनावी मुद्दे की भी परीक्षा होगी।
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