बस इन पांच बातों पर टिका है बिहार चुनाव का पांचवां चरण
पांच नवंबर को मतदान की पूर्णाहुति वाले चरण में जिन 57 सीटों पर मतदान होना है, उनमें सबसे बड़ी बात वोटों की सेंधमारी है। सत्ता को लेकर संख्याबल के गणित को संभालने और बिगाडऩे में इस सेंधमारी का बड़ा असर होगा।
पटना। पांच नवंबर को मतदान की पूर्णाहुति वाले चरण में जिन 57 सीटों पर मतदान होना है, उनमें सबसे बड़ी बात (फैक्टर) वोटों की सेंधमारी है। सत्ता को लेकर संख्याबल के गणित को संभालने और बिगाडऩे में इस सेंधमारी का बड़ा असर होगा। वैसे कुछ जगहों पर बागी प्रत्याशी भी खेल बिगाडऩे को तैयार हैं।
कोसी और सीमांचल के साथ-साथ मिथिलांचल के जिलों में हो रहे चुनाव में एक फैक्टर उस गुस्से का भी है, जिसके तहत लोग यह कह रहे कि हमारी आबादी के हिसाब से हमारी जाति के उम्मीदवार नहीं मिले। यह गुस्सा अगर मतदान के दिन तक हावी रहा तो हार-जीत का खेल इससे भी तय हो सकता है।
1. पप्पू यादव
पप्पू यादव ने कोसी की प्राय: सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। पप्पू की जन अधिकार पार्टी ने लगभग उन्हीं जातियों के लोगों को अपना प्रत्याशी बनाया है जिस जाति के प्रत्याशी को महागठबंधन से टिकट मिला है।
कुछ जगहों पर इसका भी ख्याल रखा गया है कि महागठबंधन ने जिस जाति के प्रत्याशी को अपना टिकट दिया है, उस जाति के प्रत्याशी के बजाय महागठबंधन के कोर वोट को ध्यान में रखकर प्रत्याशी उतार दिए जाएं।
2. ओवैसी
सीमांचल में वोटों की सेंधमारी पर जब बात होती है तो ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल-मुस्लमीन की भी चर्चा होती है। ओवैसी ने मुस्लिम वोटों के एक हिस्से को अपनी ओर मोडऩे के लिए कई सीटों पर प्रत्याशी दिए हैं। ओवैसी के प्रत्याशियों की सेंधमारी भी महागठबंधन की तबियत नासाज करेगी।
3. पचफोरना इफेक्ट
आखिरी चरण में जिन सीटों पर वोट होना है उनमें मिथिलांचल की काफी सीटों पर पचफोरना इफेक्ट भी है। पचफोरना यानी अति पिछड़ी पांच जातियों का समूह। मधुबनी जिले में तो यह समूह इतना अधिक प्रभावी है कि वह जिसके साथ हुआ, परिणाम उधर जाने लगता है। पिछले दो विधानसभा चुनाव को दृष्टांत के तौर पर लिया जा सकता है।
4. आक्रोश
दरभंगा की दस सीटों में बहुत सी सीटें ऐसी हैं जहां से उस जाति के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं जिनकी कोई बड़ी आबादी वहां नहीं है। जिन जातियों की संख्या अधिक है उनमें यह आक्रोश है कि जब उनकी जाति के लोगों को प्रत्याशी ही नहीं बनाया तो फिर हम उन्हें वोट देने क्यों निकलें। यह फैक्टर अगर प्रभावित हुआ तो परिणाम उलट-पलट सकता है।
5. बागी
पांचवें चरण की 57 सीटों में कुछ सीटें ऐसी हैं जहां बागी फैक्टर भी प्रभावी है। अपने दल से टिकट नहीं मिलने पर कई संभावित प्रत्याशी दूसरे दल के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी उपस्थिति इस मायने में उल्लेखनीय है कि वे खुद जीतें या न जीतें, पर अपने मूल दल के प्रत्याशियों को मुसीबत में तो डाल ही देंगे।