लालू-तेजस्वी के लिए क्यों खास हैं बिहार की ये तीन सीट? चौथे चरण के लिए RJD ने खेला अलग दांव, सियासी हलचल तेज
Bihar Politics बिहार में तीन लोकसभा सीट इस बार राजद के लिए बेहद खास है। लालू यादव और तेजस्वी यादव ने इन तीनों सीट के लिए अलग दांव खेल दिया है। इन तीनों सीट पर मतदान चौथे चरण में होना है। तीनों पर राजद ने कैंडिडेट बहुत ही सोच समझकर उतारे हैं। पार्टी ने इन तीनों सीट के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।
सुनील राज, पटना। Bihar Politics In Hindi लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में बिहार की जिन पांच सीटों पर चुनाव हो रहा है, उन सभी सीटों पर महागठबंधन के सामने जीत का बड़ा लक्ष्य है। ये वे सीटें हैं जहां पिछले तीन लोकसभा चुनावों में महागठबंधन खासकर राजद की हार होती रही है।
लालू प्रसाद (Lalu Yadav) की रणनीति हो या फिर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की मेहनत राजद और महागठबंधन यहां अपना जादू बीते 15 वर्षो में दिखा नहीं पाया है। चौथे चरण में जिन पांच सीटों पर चुनाव होना है उनमें दरभंगा, समस्तीपुर, उजियारपुर, बेगूसराय और मुंगेर संसदीय क्षेत्र हैं।
दो अन्य सीटों पर जीत का जिम्मा सहयोगी दलों पर
इन सभी सीटों पर एनडीए का कब्जा है और एनडीए एक बार फिर यहां अपना रिकॉर्ड तोड़ने के लिए मैदान में होगा। एनडीए के मुकाबले इन पांच सीटों में तीन पर खुद राजद (RJD) अपने उम्मीदवार उतारकर जीत की कोशिश में जुटा है तो दो अन्य सीटों पर जीत का जिम्मा पार्टी ने महागठबंधन के सहयोगी दलों को दिया है।
सबसे पहले दरभंगा की बात। यहां एनडीए की ओर से गोपालजी ठाकुर मैदान में हैं। जिनका मुकाबला राजद के ललित यादव से होगा। गोपाल जी ने 2019 का चुनाव भी जीता था। तब उनका मुकाबला राजद के अब्दुलबारी सिद्दिकी से था।
इसके पहले 2014 और 2009 में इस सीट से एनडीए की सहयोगी भाजपा (BJP) के कीर्ति झा मैदान में थे। जिन्होंने दोनों बार राजद प्रत्याशी अली अशरफ फातमी को पराजित किया था। गोपालजी ठाकुर यहां दूसरी जीत के लिए मैदान में हैं।
समस्तीपुर सीट का हाल
एक और सीट है समस्तीपुर। इस सुरक्षित सीट से एनडीए की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार शांभवी चौधरी मैदान में हैं। जिनका सामना कांग्रेस के सन्नी हजारी से होगा।
समस्तीपुर में खास यह है कि यहां नीतीश सरकार के एक मंत्री अशोक चौधरी (Nitish Kumar) की पुत्री मैदान में हैं तो दूसरी ओर एक अन्य मंत्री महेश्वर हजारी के पुत्र सन्नी हजारी कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं।
2019 और 2014 में लोजपा की ओर से रामविलास पासवान के छोटे भाई रामचंद्र मैदान में थे और दोनों बार उन्होंने कांग्रेस के अशोक कुमार को पराजित किया था। जबकि 2009 में सन्नी हजारी के पिता महेश्वर हजारी लोजपा के रामचंद्र को पराजित किया था।
उजियारपुर सीट का हाल
उजियारपुर का मुकाबला भी दिलचस्प होगा। इस सीट से एक बार फिर भाजपा ने गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय को खड़ा किया है। जिनकी टक्कर राजद के आलोक मेहता से होगी। 2019 और 2014 में नित्यानंद राय ने यहां जीत हासिल की थी।
तब उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा और इसके पूर्व राजद के आलोक मेहता को पराजित किया था। जनता के मन में भी सवाल है कि नित्यानंद राय हैट्रिक पूरी करेंगे या फिर आलोक मेहता यहां से राजद की जीत का कारण बनेंगे।
इसी प्रकार चौथे चरण में आने वाली बेगूसराय सीट पर भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह बनाम महागठबंधन उम्मीदवार सीपीआइ के अवधेश राय के बीच मुकाबला है। बेगूसराय सीट भले ही वामपंथ का गढ़ हो, लेकिन 2019 हो 2014 हो या फिर 2009, यहां से एनडीए की जीत होती रही है।
2019 में एनडीए के गिरिराज सिंह ने राजद के तनवीर हसन को पराजित किया। तनवीर परिणाम में तीसरे नंबर पर थे। 2014 में एनडीए के भोला सिंह ने तनवीर को हराया। जबकि 2009 में जदयू के मोनाजिर हसन ने कम्युनिस्ट नेता शत्रुघ्न सिंह को पराजित कर सीट जीती थी।
मुंगेर संसदीय क्षेत्र की भी अलग कहानी
इन चार सीटों की तरह मुंगेर संसदीय क्षेत्र की भी कहानी है। महागठबंधन यहां से पराजित होता रहा है। 2009 में जदयू के ललन सिंह ने राजद के रामबदन राय को पराजित किया।
2014 में लोजपा की वीणा देवी ने एनडीए से बाहर रहे जदयू के उम्मीदवार ललन सिंह और राजद के प्रगति मेहता को पराजित किया तो वहीं 2019 में एनडीए के टिकट पर ललन सिंह ने महागठबंधन की कांग्रेस की उम्मीदवार नीलम देवी को पराजित किया था।
महागठबंधन इस बार पांच सीटों पर जीत के दावे के साथ पूरी तरह तो जरूर लगा रहा है, लेकिन निर्णय जनता को करना है कि वह एनडीए के साथ है या फिर महागठबंधन के साथ।
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