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पृथ्वी के दो गुना बड़े आकार वाला ‘के2-18बी’ नामक 'एक्सोप्लैनेट' पर तलाशी जीवन की संभावनाएं

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की टीम ने के2-18बी नामक इस एक्सोप्लैनेट के द्रव्यमान त्रिज्या और वायुमंडलीय डाटा के अध्ययन में पाया कि वहां पानी और जीवन लायक स्थितियां हो सकती हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 03 Mar 2020 12:17 PM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2020 12:32 PM (IST)
पृथ्वी के दो गुना बड़े आकार वाला ‘के2-18बी’ नामक 'एक्सोप्लैनेट' पर तलाशी जीवन की संभावनाएं
पृथ्वी के दो गुना बड़े आकार वाला ‘के2-18बी’ नामक 'एक्सोप्लैनेट' पर तलाशी जीवन की संभावनाएं

लंदन, एजेंसियां। भारतवंशी खगोलविद के नेतृत्व वाली टीम ने पृथ्वी के दो गुने से भी ज्यादा बड़े आकार वाले एक ऐसे एक्सोप्लैनेट का पता लगाया है, जहां जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं। सौरमंडल से बाहर के ग्रह को एक्सोप्लैनेट कहा जाता है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की टीम ने के2-18बी नामक इस एक्सोप्लैनेट के द्रव्यमान (मास), त्रिज्या (रेडियस) और वायुमंडलीय (एटमोस्फेयरिक) डाटा के अध्ययन में पाया कि वहां पानी और जीवन लायक स्थितियां हो सकती हैं। हालांकि, ग्रह के वायुमंडल में हाइड्रोजन की अधिकता है। इसकी रिपोर्ट एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित हुई है।

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यह एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से 124 प्रकाश वर्ष दूर है। इसकी त्रिज्या पृथ्वी से 2.6 गुना, जबकि द्रव्यमान 8.6 गुना ज्यादा है। यह तारे की परिक्रमा करता है। इसका तापमान ऐसा है कि वहां पानी की उपलब्धता हो सकती है। पिछले साल भी इसके बारे में मीडिया में खूब चर्चा हुई थी, जब दो टीमों ने दावा किया था कि वहां के वायुमंडल में वाष्प पाया गया है। हालांकि, तब उसकी वायुमंडलीय और आंतरिक स्थिति का पता नहीं चल पाया था।

आंतरिक वायुमंडलीय स्थिति को समझना है जरूरी : खगोलविदों का नेतृत्व करने वाले कैंब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनॉमी के डॉ. निक्कू मधुसूदन ने कहा था, ‘कई एक्सोप्लैनेट के वायुमंडल में वाष्प के कण पाए गए हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वहां जीवन की संभावनाएं हैं। जीवन की संभावनाओं के लिए जरूरी है कि वहां की आंतरिक और वायुमंडलीय स्थितियों को समझा जाए। खासकर वहां, जहां वायुमंडल के नीचे पानी हो सकता है। पृथ्वी से बड़े और नेपच्यून से छोटे हाइड्रोजन की बहुलता वाले इस एक्सोप्लैनेट पर पानी हो सकता है। अगर हाइड्रोजन का आवरण गाढ़ा हुआ तो तापमान और पानी के सतह का दबाव जीवन की संभावनाओं के लिए उपयुक्त होगा।

लौह अयस्कों की है भरमार : वैज्ञानिकों ने इसे मिनी नेपच्यून जैसा बताया है। उनका कहना है कि ऐसा लगता है कि इस ग्रह पर हाइड्रोजन और पानी के अलावा चट्टानें और लौह अयस्क भारी मात्रा में मौजूद है।खगोलशास्त्रियों ने इस ग्रह पर दूसरे रसायनों जैसे- मीथेन और अमोनिया की सतहें भी पाई हैं लेकिन वो अपेक्षाकृत बहुत कम है लेकिन ये सतहें जैवकीय प्रक्रिया में कितना योगदान दे सकती हैं, इसका अंदाज अभी लगाया जाना शेष है। हालांकि शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस अधिकतम हाइड्रोजन की जरूरत ग्रह के द्रव्यमान के अनुपात में होना चाहिए, वो 06 फीसदी है। पृथ्वी पर भी इसका अनुपात यही है। शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारा ब्रह्मांड कई रहस्यों और अचरजों से भरा पड़ा है। इसके बारे में खगोलविद हर दिन नई-नई जानकारियां साझा करते हैं। नए एक्सोप्लैनेट में अब जीवन की संभावनाएं तलाशी गई है।

पृथ्वी जैसा ग्रह कैल्पर : इससे पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से लगभग 40 गुना बड़ा और 1200 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित कैल्पर 62एफ नामक ग्रह की खोज की थी, जिसके बारे में कहा गया कि वहां जीवन की प्रबल संभावनाएं हैं। वैज्ञानिकों का कहना था कि कैल्पर और पृथ्वी के बीच ऐसी कई समानताएं हैं जो यहां जीवन की संभावनाओं को पुख्ता करती हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने अपने एक अध्ययन में ऐसी आशंका जताई थी कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी चीजें अगले 100 वर्षों में खत्म हो सकती हैं। इसका तापमान भी बढ़ेगा और ये रहने लायक नहीं रहेगी। तब मनुष्यों को किसी नए ग्रह की जरूरत होगी। इसलिए हमें अभी से उसकी तलाश शुरू कर देनी चाहिए।

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