पाक में किसके निशाने पर है मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के नेता और पार्टी
पाकिस्तान में इन दिनों सुरक्षा का मुद्दा काफी तूल पकड़े हुए है। इसको उठाने वाले वहां की ही सांसद हैं। सुरक्षा का मुद्दा दरअसल सैयद रजा अबिदी की हत्या के बाद तेजी से उठा है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान में इन दिनों सुरक्षा का मुद्दा काफी तूल पकड़े हुए है। इसको उठाने वाले वहां की ही सांसद हैं। सुरक्षा का मुद्दा दरअसल सैयद रजा अबिदी की हत्या के बाद तेजी से उठा है। उनकी हत्या क्रिसमस के दिन कराची में उस वक्त कर दी गई थी जब वह शाम को गाड़ी से घर के अंदर जा रहे थे। इसी दौरान बाइक पर सवार दो हमलावरों ने उनकी कार पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी, जिसमें उनकी मौत हो गई। इससे दो दिन पहले ही पाक सरजमीं पार्टी के दो नेताओं की हत्या को भी कराची में ऐसे ही अंजाम दिया गया था।
देश का कमर्शियल हब है कराची
उनकी मौत और सुरक्षा के मुद्दे के तेजी से उठने की वजह ये भी है क्योंकि कराची पाकिस्तान का कमर्शियल और इकनॉमिक हब है। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट ने इसको कोल्ड ब्ल्डेड मर्डर करार दिया है। अबिदी पहले एमक्यूएम-पी के ही सदस्य थे लेकिन बाद में उन्होंने निजी कारणों से इस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसके लिए सीधेतौर पर पाकिस्तान की सेना को जिम्मेदार ठहराया है।
एमक्यूएम का आरोप
एमक्यूएम का सीधा आरोप है कि सेना उनकी पार्टी को निशाना बना रही है और पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए इस तरह की कार्रवाई कर रही है। आपको बता दें कि कराची में काफी समय से एमक्यूएम की जड़ें काफी मजबूत रही हैं। इसी मजबूती को खत्म करने के लिए अब सेना पर दबाव डाला जा रहा है। यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि पार्टी के प्रमुख नेता अल्ताफ हुसैन लगभग दो दशक से लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। हालांकि जहां तक एमक्यूएम की बात है तो वह काफी समय से पाकिस्तान में सरकार और सेना के निशाने पर रही है। पार्टी प्रमुख अल्ताफ हुसैन पर कई तरह के आरोप लगाए जा चुके हैं और उन्हें भारत का एजेंट तक कहा गया है। इसकी वजह एक ये भी है कि यह पार्टी उन लोगों की है जो देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान में बतौर शरणार्थी गए थे। इन लोगों को वहां आज भी मुजाहिर कहा जाता है।
क्या है एमक्यूएम
आपको बता दें कि एमक्यूएम पाकिस्तान का एक सेक्युलर राजनीतिक दल है। यह मुखयतः भारत से आये शरणार्थियों का दल है, जिन्हें पाकिस्तान में मुजाहिर कहा जाता है। वर्तमान समय में यह दल सिन्ध प्रान्त का दूसरा सबसे बड़ा दल है जिसके पास 130 में 54 सीटें हैं। यह पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। अल्ताफ हुसैन ने 1978 में 'आल पाकिस्तान मुजाहिर स्टुडेन्ट्स ऑर्गनाइजेशन' (APMSO) बनाया था जिससे 1984 में मुज़ाहिर कौमी मूवमेन्ट का जन्म हुआ। 1997 में इस पार्टी ने अपना नाम बदलकर 'मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट' रख लिया। कराची में इसका आधार बहुत तगड़ा है।
अबिदी की मजबूत पकड़
जहां तक अबिदी की बात है तो उनकी पकड़ पार्टी के अलावा कई जगहों पर बेहद मजबूत थी। सोशल मीडिया पर भी वह काफी एक्टिव रहते थे। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में भी उनकी काफी पकड़ मानी जाती थी। वह शिया समुदाय से ताल्लुक रखते थे। पाकिस्तान में शिया समुदाय काफी समय से कट्टरपंथियों सुन्नी मुस्लिम ग्रुप के निशाने पर रहा है। हाल के कुछ वर्षों में शिया समुदाय पर हमलों में भी काफी तेजी आई है। अबिदी को न सिर्फ एक मंझा हुआ राजनेता माना जाता था बल्कि वह कट्टरपंथ के घोर विरोधी भी थे। इतना ही नहीं पाकिस्तान में मौजूद दूसरे धर्मों के लोगों के लिए भी वह समान अधिकार दिलवाने के पक्षधर थे। ऐसे में उनकी हत्या से इस तरफ चलाई जा रही मुहिम को भी काफी धक्का लगा है।
धमकी की दी थी जानकारी
न्यूयार्क टाइम्स ने पाकिस्तान के पत्रकार के हवाले से लिखा है कि उन्होंने कुछ समय पहले उनकी हत्या किए जाने की धमकी से पत्रकार को अवगत कराया था। इतना ही नहीं वह लगातार मिल रही धमकियों के मद्देनजर देश छोड़ने तक पर विचार कर रहे थे। उनकी हत्या के पीछे राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को भी बड़ी वजह माना जा रहा है। एमक्यूएम से अलग होने के बाद भी वह पार्टी के अलग धड़े को वापस लाने का काम कर रहे थे। सीसीटीवी से मिली फुटेज के आधार पर कहा जा रहा है कि अबिदी पर कई राउंड गोलियां चलाई गईं। उनकी हत्या के लिए हमलावर पहले से तैयार थे। हत्या को अंजाम देने के बाद वह आसानी से वहां से निकल भी भागे।
राजनीतिक हत्या का लंबा इतिहास
पाकिस्तान की बात करें यहां पर इस तरह की राजनीतिक हत्या का काफी पुराना इतिहास रहा है। 1951 से शुरू हुआ ये सिलसिला आज तक जारी है। इस लिस्ट में कई प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक भी रहे हैं।
पाकिस्तान में हुई राजनीतिक हत्याएं | |||||||||
नेता | वर्ष | ||||||||
लियाकत अली खान | 1951 | ||||||||
जिया उल हक | 1988 | ||||||||
अब्दुल्लाह यूसुफ आजम | 1989 | ||||||||
फजले हक | 1991 | ||||||||
इकबाल मसीह | 1995 | ||||||||
हाकिम सैयद | 1998 | ||||||||
सिद्दीक खान कंजू | 2001 | ||||||||
बेनजीर भुट्टो | 2007 | ||||||||
बेतुल्लाह महसूद | 2009 |
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