यूरोपीय संघ के चुनाव में हो रहा है बड़ा उलटफेर, जानें इसके बनने और यहां तक आने की कहानी
यूरोपीय संघ में इस बार बड़ा उलटफेर होता दिखाई दे रहा है। पिछले चुनाव में जिन पार्टियों का प्रदर्शन खराब था अब वही किंगमेकर की भूमिका में आ रही हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। यूरोपीय संघ के चुनाव में इस बार तीन बड़ी चीजें निकलकर सामाने आ रही हैं। इनमें पहली है युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी तो दूसरी है दक्षिणपंथी और वामपंथी (Liberal Democrats Conservatives) के प्रति समर्थन कम होना है। इसके अलावा तीसरी खास बात ये भी है कि इस बार उम्मीद से अधिक वोट पड़े हैं। पहले आपको बता दें कि इस चुनाव में 28 देशों के नागरिकों ने वोट डाले थे। यह चुनाव ऐसे समय में हुआ है जब ब्रिटेन में यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद काफी समय से कवायद चल रही है। इस मुद्दे पर केमरून ने इस्तीफा दिया था और अब थेरेसा मे ने अपने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। इसके बाद भी ईयू से अलग होने को लेकर मसौदे पर एक राय बनती दिखाई नहीं दे रही है।
बहरहाल, आपको यहां पर ये भी बता दें कि यूरोपीय संसद के लिए 23 से 26 मई के बीच कराए गए चुनाव में 21 देशों में 700 से अधिक यूरोपीय सांसदों को चुने जाने के लिए मतदान किया था। गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में दक्षिणपंथी और वामपंथी दलों को आधी से ज्यादा सीटें मिली थीं। इस बार के चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन जर्मनी की चांसलर एंजिला मर्केल की दक्षिणपंथी क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स का रहा है जिसको महज 28 प्रतिशत वोट मिले। इसके अलावा वामपंथी पार्टी सोशल डेमोक्रेट्स को 16 फीसद वोट मिले। ये दोनों डेमोक्रेटेस वहां की दक्षिण पंथी पार्टी यूरोपीयन पीपल्स पार्टी (ईपीपी) और वामपंथी पार्टी सोशलिस्ट एंड डेमोक्रेट्स (एसएंडडी) को प्रतिनिधि मुहैया कराते हैं।
ईयू चुनाव के बाद सामने आए एग्जिट पोल की मानें तो इस बार यूरोपीय संसद में 42 फीसद तक सिमट सकती है। सीटों में कहा जाए जो इन्हें 92 सीटों का नुकसान हो सकता है। इस बार के चुनाव में एलायंस ऑफ लिबरल्स एंड डेमोक्रेट्स फॉर यूरोप (एएलडीई) को अच्छी सफलता हासिल हुई है और उनकी सीटों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। 2014 के चुनाव में जहां इस पार्टी को महज 67 सीटें मिली थीं वहीं इस बार यह 102 तक पहुंच गई है। यही वजह है कि ईयू में यह किंगमेकर की भूमिका में रह सकती है।
ग्रीन पार्टी की बात करें तो इस बार इसका भी समर्थन पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़ा है। इस पार्टी को वोट देने वालों में युवा मतदाता अधिक हैं। ग्रीन पार्टी का गठन ईयू में पर्यावरण के मुद्दे पर ही हुआ है। यह पार्टी अपनी सोच को फैलाने और लोगों को जागरुक बनाने में सफल हुई है। इस पार्टी की तरफ से लगातार इस मुद्दे को उठाया गया है। इसके अलावा फ्रांस की ग्रीन पार्टी यूरोप इकॉलॉजी लेस वर्ट्स (ईईएलवी) इस चुनाव में तीसरे स्थान पर आई है। उसको महज 13.2 फीसद वोट मिले हैं। वहीं पुर्तगाल की ग्रीन पैन पार्टी भी ईयू पार्लियामेंट में सीट हासिल करती हुई दिखाई दे रही है।
अन्य पार्टियों के हाल पर एक नजर :-
फ्रांस में मरीन ला पेन की नेशनल रैली पार्टी को 23.4 फीसद वोट मिले हैं।
स्पेन में दक्षिण पंथी वोक्स पार्टी को 6.2 फीसद वोट मिले हैा।
ब्रिटेन में एंटी यूरोपीय यूनियन पार्टी, ब्रेग्ज़िट पार्टी जीत की ओर बढ़ रही है।
ऑस्ट्रिया में सत्तारुढ़ पीपल्स पार्टी को 34.9 प्रतिशत वोट मिले हैं।
नीदरलैंड्स की डच लेबर पार्टी को 18 फीसद वोट मिले हैं।
क्या है यूरोपीय संसद
इसका उदय 1957 में रोम की संधि द्वारा यूरोपिय आर्थिक परिषद के माध्यम से छह यूरोपिय देशों की आर्थिक भागीदारी से हुआ था। तब से इसमें सदस्य देशों की संख्या में लगातार बढोत्तरी हो रही है। हर पांच वर्षों में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के मतदाता इसकी संसद के 751 सदस्यों का चुनाव मतदान के जरिए करते हैं। यह यूरोपीय संघ का इकलौता और प्रत्यक्ष निर्वाचित हिस्सा है। ईयू की पार्लियामेंट ब्रसेल्स और स्ट्रॉसबर्ग में स्थित हैं। यूरोपीय संसद के सदस्य, स्वास्थ्य सेवा, पर्यावरण, पारिवारिक मुद्दों, नौकरियां और वेतन से जुड़े मुद्दों पर फैसले लेते हैं। यह संसद आपस में मिलकर कोई फैसला लेकर कानून बना सकती है। इसके अलावा यूरोपीय संसद की दो अहम ज़िम्मेदारियां और भी हैं। इसके निर्वाचित सदस्यों के पास यूरोपीय संघ के बजट को पास करने का अधिकार होता है। इस पर ईयू के अध्यक्ष के हस्ताक्षर के बाद यह लागू हो जाता है।
संघ सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए एक तरह की व्यापार, मतस्य, क्षेत्रीय विकास की नीति पर अमल करता है। 1999 में यूरोपिय संघ ने साझी मुद्रा यूरो की शुरुआत की जिसे पंद्रह सदस्य देशों ने अपनाया हुआ है। यह संघ संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन में अपने सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है। यूरोपीय संघ के 21 देश नाटो के भी सदस्य हैं।
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