जानें- क्या है गिनी पिग और कोविड-19 से इसका संबंध, पढ़ें WHO प्रमुख का इसको लेकर जवाब
Covid-19 की दवा को लेकर उड़ रही अफवाहों का खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने खंडन कर दिया है।
जिनेवा। कोरोना वायरस दवा विकसित करने को लेकर पूरी दुनिया में शोध हो रहे हैं और कुछ दवाओं का तो क्लीनिकल ट्रायल भी शुरू हो गया है। लेकिन इस बीच इन दवाओं के क्नीनिकल ट्रायल को लेकर कुछ अफवाह भी उड़ने लगी हैं। ये अफवाहें कुछ गरीब देशों को इनके टेस्ट के लिए चुने जाने को लेकर हैं। un.org के मुताबिक अब इन अफवाहों का खंडन खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किया है।
किसी देश को नहींं बनाया 'गिनी पिग'
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान महानिदेशक टैड्रोस ऐडहेनॉम गैबरेसस से पूछा गया था कि इस तरह की बातें सामने आ रही हैं कि अफ्रीका के गरीब देशों का कोरोना वैक्सीन शोध के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। इसके जवाब में डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने इस तरह की अफवाहों का खंडन किया है। उन्होंने कहा है कि दवा के शोध को लेकर किसी देश को 'गिनी पिग' (Guinea Pig) के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। न ही कुछ अफ्रीकी देशों को कोविड-19 महामारी की दवाओं के शोध का परीक्षण-स्थल बनाया जा रहा है।
चार दवाइयों का हो रहा परीक्षण
कोरोना वायरस की दवाओं को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में टैड्रोस का कहना था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन इस समय चार दवाइयों का परीक्षण कर रहा है। इसमें लगभग 40 देश हिस्सा ले रहे हैं। इसमें जो देश भागीदारी कर रहे हैं उनमें सबके साथ एक समान प्रोटोकॉल व शर्तें अपनाई जा रही हैं। इसलिए किसी देश को गिनी पिग बनाने का सवाल ही नहीं उठता है। उनका कहना था कि जब वैक्सीन की बात होती है तो, संगठन का रुख एक जैसा ही होता है। पूरी दुनिया में एक ही प्रोटोकॉल अपनाना और इस शोध में शामिल देशों में एक जैसी शर्तें लागू करना, संगठन की पहला मानक है।
एक समान नियम
टैड्रोस ने बुधवार को हुई इस प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ये भी साफ कर दिया कि परीक्षण करने के लिए किसी महाद्वीप या किसी देश को निशाना बनाया जाना या उसे परीक्षण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जाना, किसी भी सूरत से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उनके मुताबिक कोरोना को लेकर बनाई जा रही कुछ वैक्सीनों का जल्द ही क्लीनिकल परीक्षण शुरू किया जाएगा। संगठन ये सुनिश्चित करेगा कि एक समान प्रोटोकॉल व दिशा-निर्दश सभी जगह लागू किए जा सकें।
शोध के तौर पर गिनी पिग का इस्तेमाल
इतिहास पर यदि नजर डालें तो गिनी पिग का इस्तेमाल पूर्व में काफी समय तक दवाओं के शोध का जरिया बनाने के तौर पर होता रहा है। 17वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भी इन पर दवाओं को लेकर शोध हुआ है। 1809 में डिप्थेरिया से बचाव के लिए इनके जरिए ही एंटीटॉक्सिन विकसित किया गया था। इसकी वजह से लाखों लोगों की जान बचाई गई थी। 1901 में इस पर हुए शोध के चलते एमिल एडोल्फ वॉन (Emil Adolf von Behring) को मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने डिप्थेरिया के इलाज में सहायक सिरम थेरेपी (serum therapy against diphtheria) गिनी पिग के जरिए ही विकसित की थी। समय के साथ बदलाव होता चला गया और शोध का जरिया भी बदलता चला गया। बाद में अधिकतर शोध दूसरे जानवरों पर होने लगे। इनमें चूहे और बंदर अधिक थे। धीरे-धीरे इस शब्द की टर्म भी बदलती चली गई और इसका इस्तेमाल भी बदलता चला गया।
पालतू जानवर है गिनी पिग
आपकी जानकारी के लिए यहां पर ये भी बता दें कि गिनी पिग दरअसल, एक छोटा पालतू जानवर है। इसको cavy भी कहा जाता है। आपको जानकर हैरत हो सकती है लेकिन ये सच है कि इसके नाम से उलट इसका कोई संबंध पिग या सूअर से नहीं है। ये Caviidae प्रजाति का सदस्य है। इसके नाम के ऑरिजन को लेकर आज तक कुछ पता नहीं चल सका है। ये मूलत: दक्षिण अफ्रीका में पाया जाने वाला जानवर है।
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