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आज ही के दिन भारत ने पहले ही प्रयास में Mars पर उतारा था Mangalyaan, जानिए पूरी डिटेल

24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश बन गया।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 02:01 PM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 02:01 PM (IST)
आज ही के दिन भारत ने पहले ही प्रयास में Mars पर उतारा था Mangalyaan, जानिए पूरी डिटेल
आज ही के दिन भारत ने पहले ही प्रयास में Mars पर उतारा था Mangalyaan, जानिए पूरी डिटेल

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आज ही वो ऐतिहासिक दिन है जब भारत के प्रथम मंगल अभियान ने सकुशल मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया था। यह भारत के प्रथम ग्रहों के बीच का मिशन है। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। वैसे अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान असफल भी रहे हैं परन्तु 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश बन गया।

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सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत एशिया का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया। क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे।

भारत का प्रथम मंगल अभियान 

मंगलयान भारत का प्रथम मंगल अभियान ( Mars Orbiter Mission- मार्स ऑर्बिटर मिशन) था। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना थी। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवंबर 2013 को 2.38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु छोड़ा गया था। इसे भी आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक डिजाइन, प्लानिंग, मैनेजमेंट तथा आपरेशन का विकास करना है। 

ऑर्बिटर करता रहेगा मंगल की परिक्रमा 

ऑर्बिटर अपने पांच उपकरणों के साथ मंगल की परिक्रमा करता रहेगा तथा वैज्ञानिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आंकड़े व तस्वीरें पृथ्वी पर कंट्रोल रूम को भेजता रहेगा। अंतरिक्ष यान पर वर्तमान में इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक), बंगलौर के अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र से भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना की सहायता से नजर रखी जा रही है। मंगलयान मिशन की लागत 450 करोड़ रुपए आई थी। प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने मंगलयान को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया था।

मिशन की अवधारणा 

मंगलयान मिशन की अवधारणा 2008 में चंद्र उपग्रह चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष विज्ञान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा 2010 में एक अध्ययन के साथ शुरू हुआ। भारत सरकार ने परियोजना को 3 अगस्त 2012 में मंजूरी दी। इसके बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 125 करोड़ रुपये (19$ मिलियन) के ऑर्बिटर के लिए आवश्यक अध्ययन पूरा किया। इसके बाद परियोजना की कुल लागत 454 करोड़ रुपये (67$ मिलियन) हुई।

पीएसएलवी-एक्सएल लांच सी25 वाहन को जोड़ने का कार्य 5 अगस्त 2013 को शुरू हुआ। मंगलयान को वाहन के साथ जोड़ने के लिए 2 अक्टूबर 2013 को श्रीहरिकोटा भेज दिया गया। उपग्रह के विकास को तेजी से रिकार्ड 15 महीने में पूरा किया गया। अमेरिका की संघीय सरकार के बंद के बावजूद, नासा ने 5 अक्टूबर 2013 को मिशन के लिए संचार और नेविगेशन सपोर्ट प्रदान करने की पुष्टि की। 30 सितंबर 2014 को एक बैठक के दौरान, नासा और इसरो के अधिकारियों ने मंगल ग्रह के भविष्य के संयुक्त मिशन के लिए मार्ग स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 

मंगलयान की लागत 

इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब 6 करोड़ 90 लाख डॉलर) है। यह नासा के पहले मंगल मिशन का दसवां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक चौथाई भर है।

मंगलयान मिशन का उद्देश्य 

मंगलयान का मुख्य उद्देश्य भारत के रॉकेट प्रक्षेपण प्रणाली, अंतरिक्ष यान के निर्माण और संचालन क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए हैं। विशेष रूप से, मिशन का प्राथमिक उद्देश्य ग्रहों के बीच के लिए मिशन के संचालन,उपग्रह डिजाइन, योजना और प्रबंधन के लिए आवश्यक तकनीक का विकास करना है। द्वितीयक उद्देश्य मंगल ग्रह की सतह का स्वदेशी वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग कर विशेषताओं का पता लगाना है। इसके अलावा इसका मुख्य उद्देश्य ग्रहों के मिशन के संचालन के लिए उपग्रह डिजाइन, योजना और प्रबंधन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास करना भी है।

वैज्ञानिक उद्देश्य 

- मंगल ग्रह की सतह की आकृति, स्थलाकृति और खनिज का अध्ययन करके विशेषताएं पता लगाना।

- सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग कर मंगल ग्रह के माहौल के घटक सहित मीथेन और कार्बन डाइआक्साइड का अध्ययन करना।

- मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल पर सौर हवा, विकिरण और बाह्य अंतरिक्ष के गतिशीलता का अध्ययन।

- मिशन मंगल के चांद का भी निरीक्षण करने के लिए कई अवसर प्रदान करेगा।

ऐसे बढ़ता गया मंगलयान 

3 अगस्त 2012 - इसरो की मंगलयान परियोजना को भारत सरकार ने स्वीकृति दी। इसके लिए 2011-12 के बजट में ही धन का आबण्टन कर दिया गया था।

5 नवम्बर 2013 - मंगलयान मंगलवार के दिन दोपहर भारतीय समय 2:38 अपराह्न पर श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-25 द्वारा प्रक्षेपित किया गया। 3:20 दोपहर के निर्धारित समय पर पीएसएलवी-सी 25 के चौथे चरण से अलग होने के उपरांत यान पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया और इसके सोलर पैनलों और डिश आकार के एंटीना ने कामयाबी से काम करना शुरू कर दिया था।

5 नवम्बर से दिसम्बर 2013 तक यह पृथ्वी की कक्षा में घूमेगा तथा कक्षा (ऑर्बिट) सामंजस्य से जुड़े 6 महत्वपूर्ण ऑपरेशन होंगे। इसरो की योजना पृथ्वी की गुरुत्वीय क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करके मंगलयान को पलायन वेग देने की है।

7 नवम्बर 2013 - भारतीय समयानुसार 1.17 मिनट पर मंगलयान की कक्षा को ऊंचा किया गया।

11 नवम्बर 2013 को नियोजित चौथे चरण को 130 मीटर प्रति सेकंड की गति देकर लगभग 1 लाख किलोमीटर तक ऊंचा करने की योजना थी, किंतु लिक्विड इंजन में खराबी आ गई। परिणामतः इसे मात्र 35 मीटर प्रति सेकंड की गति देकर 71,623 से 78,276 किलोमीटर ही किया जा सका।

12 नवम्बर 2013 - एक बार फिर मंगलवार मंगलयान के लिए मंगलमय हुआ। सुबह 5.03 मिनट पर इंजन दागकर यान को 78,276 से 118,642 किलोमीटर की कक्षा पर सफलतापूर्वक पहुंचा दिया गया।

16 नवम्बर 2013 : पांचवीं और अंतिम प्रक्रिया में सुबह 01:27 बजे तक इंजन दागकर यान को 1,92,874 किलोमीटर तक उठा दिया गया। इस प्रकार यह चरण भी पूरा हुआ।

01 दिसम्बर 2013, 31 नवंबर की मध्यरात्रि को 00:49 बजे मंगलयान को मार्स ट्रांसफर ट्रेजेक्‍टरी में प्रविष्‍ट करा दिया गया, इस प्रक्रिया को ट्रांस मार्स इंजेक्शन (टीएमआई) ऑपरेशन का नाम दिया गया। यह इसकी 20 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा लम्बी यात्रा शुरूआत थी जिसमें 9 महीने से भी ज्यादा का समय लगना था और वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसके अन्तिम चरण में यान को बिल्कुल सटीक तौर पर धीमा करने की थी ताकि मंगल ग्रह अपने छोटे गुरुत्व बल के जरिये इसे अपने उपग्रह के रूप में स्वीकार करने को तैयार हो जाये।

4 दिसंबर 2013: मंगलयान 9.25 लाख किलोमीटर के दायरे वाले पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकला।

11 दिसंबर 2013 : पहली दिशा संशोधन प्रक्रिया संपन्न हुई।

11 जून 2014 : दूसरी दिशा संशोधन प्रक्रिया संपन्न हुई।

14 सितंबर 2014 : अंतिम चरण के लिए आवश्यक कमांड्स अपलोड किए गए। 

22 सितंबर 2014 : एमओएम ने मंगल के गुरुत्वीय क्षेत्र में प्रवेश किया। लगभग 300 दिन की संपूर्ण यात्रा के दौरान मंगलयान के मुख्य इंजन 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर को 4 सेकंड्स तक चलाकर अंतिम परीक्षण एवं अंतिम पथ संशोधन कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

24 सितम्बर 2014 : सुबह 7.17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम) यान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ सक्रिय की गई जिससे यान की गति को 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड करके मंगलयान को मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रविष्ट किया गया। इस क्षण का प्रसारण दुरदर्शन द्वारा राष्ट्रीय टेलीविज़न पर किया गया। भारत के इस गौरवमयी क्षण को देखने के लिए भारत के प्रधानमंत्री स्वयं वहां उपस्थित रहे।  

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