NGT का बंगाल सरकार को निर्देश, माइक्रोफोंस में साउंड लिमिटर्स लगाने के तरीके तलाशे, एक महीने में मांगी रिपोर्ट
Bengal News 1997 में दिवंगत न्यायाधीश भगवती प्रसाद बनर्जी ने सबसे पहले माइक्रोफोंस में लिमिटर्स के अनिवार्य रूप से इस्तेमाल का आदेश दिया था। 2004 में पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसी तरह का आदेश दिया था। एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच इस मामले को अपने विचार के लिए लेगी।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। Kolkatta News: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ईस्टर्न जोनल बेंच ने बंगाल सरकार को महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए कहा है कि वह माइक्रोफोंस में साउंड लिमिटर्स लगाने के तरीके तलाशे ताकि ध्वनि स्तर को निर्धारित सीमा के ऊपर जाने से रोका जा सके और चाहने पर भी नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सके।
गौरतलब है कि इस मामले पर गत तीन नवंबर को सुनवाई हुई थी और अब फैसला आया है। सरकार से इसपर एक महीने के अंदर रिपोर्ट मांगी गई है। बेंच ने कहा कि देशभर में इस तरह के उल्लंघन की प्रवृत्ति बनती जा रही है इसलिए ऐसे निर्देश की सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में जरुरत है। नई दिल्ली स्थित एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच इस मामले को अपने विचार के लिए लेगी।
बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि राज्य सरकार को इस पहलू की जांच करनी चाहिए और एक महीने के अंदर हलफनामा दाखिल कर इससे जुड़े सभी मौजूदा तथ्यों को पेश करना चाहिए। गौरतलब है कि जाने-माने पर्यावरणविद् सुभाष दत्ता ने इस व्यवस्था की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर की थी।
उन्होंने कहा था कि जब तक एम्प्लीफायर्स और साउंड सिस्टम्स के निर्माता अपने उत्पादों (पब्लिक एड्रेस सिस्टम में साउंड लिमिटर्स नहीं लगाते, तब तक उन्हें इनकी मार्केटिंग नहीं करने दी जानी चाहिए।
राज्य सरकार की ओर से दिशानिर्देश जारी कर इसका सख्ती से पालन करने को कहा जाना चाहिए और इसपर कड़ी निगरानी भी रखी जानी चाहिए। राज्य सरकार की ओर से बेंच को सूचित किया गया है कि ऐसी व्यवस्था की कार्य प्रणाली की संभावनाएं तलाशने के लिए जल्द एक विशेषज्ञ कमेटी गठित की जाएगी।
गौरतलब है कि 1997 में दिवंगत न्यायाधीश भगवती प्रसाद बनर्जी ने सबसे पहले माइक्रोफोंस में लिमिटर्स के अनिवार्य रूप से इस्तेमाल का आदेश दिया था। 2004 में पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसी तरह का आदेश दिया था। उसके बाद विभिन्न न्यायिक पीठों की तरफ से इस तरह के कई आदेश पारित किए जा चुके हैं, हालांकि जमीनी हकीकत यह है कि इसका उल्लंघन करने वालों में लगभग सभी शामिल हैं।