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हिमालय की वादियों में फिर गुलजार होने लगा भोजवृक्ष का जंगल

भोजवासा में भोजवृक्षों का जंगल एक बार फिर आकार ले रहा है। अस्सी के दशक में यह जंगल पूरी तरह खत्म हो चुका था। अब यहां भोज के छोटे-बड़े हजारों पेड़-पौधे दिखाई दे रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 04:07 PM (IST)Updated: Thu, 22 Mar 2018 11:05 AM (IST)
हिमालय की वादियों में फिर गुलजार होने लगा भोजवृक्ष का जंगल
हिमालय की वादियों में फिर गुलजार होने लगा भोजवृक्ष का जंगल

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: भोजवासा में भोजवृक्षों का जंगल एक बार फिर आकार ले रहा है। अस्सी के दशक में यह जंगल पूरी तरह खत्म हो चुका था। अब यहां भोज के छोटे-बड़े हजारों पेड़-पौधे दिखाई दे रहे हैं। समुद्रतल से करीब 3800 मीटर की ऊंचाई पर और भागीरथी (गंगा) के उद्गम गोमुख से करीब चार किलोमीटर पूर्व स्थित इस दुर्गम पर्वतीय स्थान में एक महिला पर्वतारोही के सतत प्रयासों का यह सुपरिणाम है, जो प्रेरणा के रूप में हमारे सामने है। अगले वर्ष इस जंगल को गंगोत्री नेशनल पार्क का हिस्सा बना दिया जाएगा।

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बची सदियों पुरानी धरोहर

भोजवासा का बहुत पुराना इतिहास है। शायद उतना ही पुराना जितना कि खुद भोजवृक्ष का। भोजवृक्षों का जंगल होने के कारण ही इस स्थान का नाम भोजवासा पड़ा। लेकिन, अस्सी का दशक आते-आते भोजवासा में केवल भोज के पुराने पेड़ों के ठूंठ ही बचे थे। तब पर्वतारोही डॉ. हर्षवंती बिष्ट ने इस जंगल को दोबारा गुलजार करने की ठानी। आज उनकी मुहिम रंग लाती दिख रही है। भोजवासा में उनके द्वारा रोपे गए भोज के करीब बाहर हजार पौधों में से 7500 से अधिक अब शानदार भोजवृक्ष में परिवर्तित होते हुए दिखाई दे रहे हैं।

 

पर्वतारोहण से मिली पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा

उत्तराखंड के पौड़ी जिले के बीरोंखाल ब्लाक स्थित सुकई गांव निवासी डॉ. हर्षवंती बिष्ट अर्जुन पुरस्कार विजेता पर्वतारोही हैं। वर्ष 1975 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का कोर्स करने के बाद हर्षवंती ने अनेक पर्वतारोहण अभियान सफलतापूर्वक पूरे किए। वर्ष 1977 में गढ़वाल विवि में अर्थशास्त्र विषय में लेक्चरर पद पर नियुक्ति के बाद भी उन्होंने पर्वतारोहण जारी रखा। 1981 में उन्होंने नंदा देवी पर्वत (7816 मीटर) के मुख्य शिखर का सफल आरोहण किया।

इस अभियान में उनके साथ रेखा शर्मा और चंद्रप्रभा एतवाल भी थीं। नंदा देवी चोटी का आरोहण करने वाली ये तीनों भारत की पहली महिलाएं थीं। इसके लिए वर्ष 1981 में हर्षवंती को अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 2013 में सर एडमंड हिलेरी लीगेसी मेडल भी उन्हें प्रदान किया गया। इस सम्मान को पाने वाली हर्षवंती एशिया महाद्वीप की पहली महिला हैं। हर्षवंती बताती हैं कि पर्वतारोहण के दौरान ही हिमालय के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए कुछ ठोस काम करने की उन्हें प्रेरणा मिली। 

1989 में शुरू किया था सेव गंगोत्री प्रोजेक्ट

ग्लेशियर व हिमालय की सुरक्षा के लिए हर्षवंती बिष्ट ने वर्ष 1989 में सेव गंगोत्री प्रोजेक्ट की शुरुआत की। इसके तहत चीड़वासा के पास भोज की पौधशाला तैयार की गई। 1992 से 1996 तक गंगोत्री व भोजवासा में भोज के पौधों का रोपण किया गया। भोजवासा में करीब दस हेक्टेयर क्षेत्र में 12,500 पौधे लगाए गए। इनमें से 7500 पौधे अब पेड़ बने रहे हैं। हर्षवंती अब भी इस जंगल की निगरानी कर रही हैं। हाल ही में गोमुख गए पर्यावरणविद जगत सिंह ने बताया कि भोजवासा में भोज वृक्षों का अच्छा-खासा जंगल आकार ले चुका है। हर्षवंती कहती हैं कि उन्होंने अपना जीवन पर्यावरण के लिए समर्पित कर दिया है। 

बनेगा गंगोत्री नेशनल पार्क का हिस्सा

हेर्षवंती ने बताया कि अगले वर्ष तक भोज के इस जंगल को गंगोत्री नेशनल पार्क के सुपुर्द कर दिया जाएगा। डॉ. हर्षवंती बिष्ट वर्तमान में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान की नोडल अधिकारी हैं और देहरादून में तैनात हैं।

विलुप्ति के कगार पर

दुनिया में कागज की खोज के बहुत पहले से भारत में लेखन के लिए भोजपत्र का इस्तेमाल किया जाता था। भोजपत्र पर लिखा हुआ सैकड़ों वर्षो तक संरक्षित रहता है, परन्तु वर्तमान में भोजवृक्ष गिनती के ही बचे हुए हैं। हिमालय में बढ़ता प्रदूषण, चढ़ता तापमान और गड़बड़ाता पर्यावरण साथ ही भू-जलस्तर का नीचे जाना इसकी वजह है। दरअसल, भोजपत्र भोज नाम के वृक्ष की छाल का नाम है, पत्ते का नहीं।

इस वृक्ष की छाल ही सर्दियों में पतली-पतली परतों के रूप में निकलती हैं, जिन्हे मुख्य रूप से कागज की तरह इस्तेमाल किया जाता था। भोज वृक्ष हिमालय में 3,500 से 4,500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह एक ठंडे वातावरण में उगने वाला पतझड़ी वृक्ष है, जो लगभग 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। भोज को संस्कृत में भूर्ज या बहुवल्कल कहा गया है। दूसरा नाम बहुवल्कल ज्यादा सार्थक है। बहुवल्कल यानी बहुत सारे वस्त्रों या छाल वाला वृक्ष। भोज को अंग्रेजी में हिमालयन सिल्वर बर्च और विज्ञान की भाषा में बेटूला यूटिलिस कहा जाता है। यह वृक्ष बहुउपयोगी है।

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