यहां देवी चंद्रबदनी ने दूर किया था शिव का मोह, जानने के लिए पढ़ें
भगवान शिव देवी सती के मोह में रोदन करते हुए चंद्रकूट पर्वत पर मूर्छा में चले गए थे। तब महामाया भगवती ने उन्हें चंद्र समान वदन (मुख) का दर्शन करवाया तब भगवान शिव का मोह दूर हुआ और वह प्रसन्न हो उठे।
टिहरी। भगवान शिव देवी सती के मोह में रोदन करते हुए चंद्रकूट पर्वत पर मूर्छा में चले गए थे। तब महामाया भगवती ने उन्हें चंद्र समान वदन (मुख) का दर्शन करवाया तब भगवान शिव का मोह दूर हुआ और वह प्रसन्न हो उठे। देव गंधर्वों ने महाशक्ति के रूप का दर्शन कर स्तुति की। तब से यह सिद्धपीठ चंद्रबदनी के नाम से प्रसिद्ध हैं।
यह सिद्धपीठ देवप्रयाग-टिहरी मार्ग पर आठ हजार फीट पर चंद्रकूट पर्वत पर स्थित है।
स्कंध पुराण, देवी भागवत, केदारखंड, महाभारत में इस सिद्धपीठ का वर्णन हैं। मंदिर के गर्भ गृह में भुवनेश्वरी चक्र स्थापित है। खास बात यह है कि इस चक्र के कोई दर्शन नहीं कर सकता। बताया कि इसके दर्शन से व्यक्ति पर कई प्रकार के संकट आते हैं। ऐसे में पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर चक्र की पूजा करते हैं तथा प्रसाद के रूप में कच्चा नारियल चढ़ाया जाता है।
इस सिद्धपीठ में चैत्र माह में चंद्रबदनी विकास मेला भी आयोजित होता है। 1968 में स्वामी मनमथन के प्रयासों से यहां पशु बली प्रथा समाप्त हुई थी। राजा की जब श्रीनगर गढ़वाल में राजधानी थी तब हर साल यहां राज यात्रा भी चलती थी।
मंदिर के पुजारी पंडित दाताराम भट्ट ने बताया कि मंदिर की पूजा के साथ ही यहां भुवनेश्वरी चक्र का पूजन किया जाता है। सुबह शाम मंदिर में आरती होती है। नवरात्र में श्रद्धालुओं लाए जाने वाले जौ की मंदिर में हरियाली डाली जाती है। उन्होंने बताया कि सिद्धपीठ चंद्रबदनी का प्राचीन नाम भुवनेश्वरी पीठ था।
कैसे पहुंचे मंदिर
श्रीनगर गढ़वाल से 55 किमी की दूरी तय कर सिद्धपीठ तक पहुंचा जता सकता है, जबकि नई टिहरी से जाखणीधार होते हुए 80 किमी का सफर तय करना पड़ता है। वहीं देवप्रयाग से 40 किमी की दूरी तय कर जुराना गांव तक पहुंचा जा सकता है। यहां से एक किमी पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जबकि एयरपोर्ट जौलीग्रांट है।
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