सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू किया मुर्गी पालन, हर माह हो रही 50 हजार से अधिक की कमाई
सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनुज बिष्ट ने तीन वर्ष पूर्व एक प्राइवेट संस्थान की नौकरी छोड़ गांव में पोल्ट्री फार्म का काम शुरू किया। आज वह प्रतिमाह 50 हजार से अधिक कमा रहे हैं।
पौड़ी, राजीव खत्री। लॉकडाउन के दौरान रोजगार गंवा चुके युवाओं के लिए पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक के डांग गांव निवासी सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनुज बिष्ट ने उम्मीद की किरण दिखाई है। तीन वर्ष पूर्व एक प्राइवेट संस्थान की नौकरी छोड़ वह गांव आए थे। गांव में छोटे स्तर पर पोल्ट्री फार्म का काम शुरू किया और आज प्रतिमाह 50 हजार से अधिक कमा रहे हैं।
उनका कहना है कि गांव में स्वरोजगार के बेहतर संसाधन हैं, लेकिन यहां रह कर कोई काम करना नहीं चाहता। यदि हम पूरी मेहनत से अपने संसाधनों का उपयोग करें तो स्वयं के साथ ही अन्य लोगों को रोजगार दे सकते हैं। अनुज बिष्ट बताते हैं कि वह देहरादून में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनयर थे। लेकिन, उनके मन से हमेशा से गांव में ही अपना रोजगार करने की इच्छा थी। इसलिए वह जनवरी 2017 में छह माह तक नौकरी करने के बाद वापस गांव आ गए। यहां उन्होंने छोटे स्तर पर पोल्ट्री फार्म शुरू किया। कड़ी मेहनत के बल पर वह आज सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी के दौरान मिलने वाले वेतन के दोगुना प्रतिमाह कमा रहे हैं।
घर वालों का मिला पूरा सहयोग
अनुज बताते हैं कि जब उन्होंने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया। उस दौरान उन्हें 25 हजार रुपये वेतन मिल रहा था। लेकिन, उनके पोल्ट्री फार्म खोलने के निर्णय पर परिवार वालों ने पूरा सहयोग किया। अनुज के पिता राकेश सिंह बिष्ट सेवानिवृत्त सैनिक हैं। बड़ा भाई वायु सेना में है। अनुज की पत्नी भी काम में उनका सहयोग करती हैं।
शुरू में हुई कई समस्याएं
अनुज ने बताया कि रोजगार शुरू करने के दौरान उन्हें कई समस्याएं हुई। सबसे अधिक परेशानी उन्हें बैंक से ऋण लेने में हुई। करीब एक माह तक बैंक के चक्कर कटवाने के बाद भी उन्हें लोन नहीं मिला था। उन्होंने अपने स्तर से पैंसों की व्यवस्था कर काम शुरू किया। बाद में एक ग्रामीण बैंक से लोन मिल पाया। अनुज बताते हैं कि अभी भी उन्हें गांव में काम करने के लिए युवा नहीं मिल पा रहे हैं। जिससे वह नेपाली मूल के लोगों को काम देने के लिए मजबूर हैं।
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युवाओं की करेंगे मदद
यदि कोई युवा पोल्ट्री फार्म से संबंधित जानकारी या सहयोग लेना चाहे तो वह निश्शुल्क प्रशिक्षण देने को तैयार हैं। वह चाहते हैं कि गांव का युवा घर में ही रह कर स्वरोजगार करे। अनुज बताते हैं कि गांव में सब्जी, फल उत्पादन के साथ ही मत्स्य पालन, मुर्गी पालन जैसे स्वरोजगार के कई साधन हैं। लेकिन, युवा इन्हें अपनाने के बजाय छोटी-मोटी नौकरी के लिए शहरों की ओर भागते हैं।
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