ब्रिटेन की महारानी रहीं किंग मैरी ने भी किया था गढ़वाल रायफल्स के साहस को सलाम
ब्रिटेन की महारानी रहीं किंग मैरी ने भी गढ़वाल राइफल्स की सराहना की थी। उनका लिखा एक संदेश गढ़वाल राइफल्स के उस साहस को दर्शाता है, जो उसने द्वितीय विश्व युद्ध में दिखाया था।
लैंसडौन, [अनुज खंडेलवाल]: 'दुख और सहानुभूति में मेरे विचार समुद्र पार मेरी हिंदुस्तानी बहनों की ओर जाते हैं। मैं दो बार हिंदुस्तान गई और मुझे भारतवासियों से बहुत स्नेह है। यह तस्वीर मैं उस बहादुर सैनिक के सम्मान के लिए भेज रही हूं, जिसने सत्य और आजादी की लड़ाई में तानाशाही और गद्दारी के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति दी।'
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की महारानी रहीं किंग मैरी का लिखा यह संदेश गढ़वाल राइफल्स के उस अदम्य साहस को दर्शाता है, जो उसने द्वितीय विश्व युद्ध में दिखाया था। वह दौर हो या आज का दौर, गढ़वाल राइफल्स के जांबाजों ने कभी भारत का भाल झुकने नहीं दिया। इन्हीं जांबाजों की वीरता को बयां करता है जीआरआरसी (गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर) के मुख्यालय लैंसडौन में स्थित दरबान सिंह संग्रहालय, जिसे रेजीमेंट के शौर्य का प्रतीक माना जाता है। गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट के 131 वर्षों के गौरवमयी इतिहास को समेटे इस संग्रहालय में पहुंचने वाले हर व्यक्ति का सिर स्वयं ही झुक जाता है।
दरबान सिंह संग्रहालय: एक नजर
रेजीमेंट के इस संग्रहालय की स्थापना 1983 में हुई थी। शुरुआती दौर में इसे रेजीमेंट के सूचना केंद्र के रूप में स्थापित किया गया। वर्ष 1986 में संग्रहालय को सेंट्रल परेड ग्राउंड के पूर्वी भाग में स्थित नए भवन में स्थापित कर इसका नामकरण रेजीमेंट के पहले विक्टोरिया क्रास विजेता नायक दरबान सिंह के नाम पर कर दिया गया। यह संग्रहालय भारत सरकार के संस्कृति मंत्रलय की ओर से इलाहाबाद म्यूजियम ऑर्गनाइजेशन व नेशनल म्यूजियम दिल्ली से संबद्ध किया गया है।
संग्रहालय में लैंसडौन के क्रमिक विकास की यात्र के साथ विभिन्न युद्धों में दुश्मनों से छीने गए हथियार भी प्रदर्शित हैं। यही नहीं, पहाड़ के विलुप्त हो रहे लोकवाद्य ढोल-दमाऊ, भंकोरा, हुड़का व रणसिंघा के अलावा कंडी, पाथा, माणा, ढोर आदि भी संग्रहालय की धरोहर हैं।
विक्टोरिया क्रॉस है संग्रहालय की शान
विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार ब्रिटिश सरकार की ओर से दिया जाने वाला वीरता का सर्वोच्च पुरस्कार है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले भारतीयों को यह पुरस्कार नही दिया जाता था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना की सहयोगी सेना के रूप में लड़ते हुए विशेष पराक्रम के लिए गढ़वाल रेजीमेंट के नायक दरबान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस दिया गया। ब्रिटेन के राजा जार्ज पंचम ने उन्हें यह पदक प्रदान किया था। गढ़वाल राइफल्स को प्राप्त तीन विक्टोरिया क्रॉस में से दो लैंसडौन स्थित दरबान सिंह संग्रहालय में सजाए गए हैं।
संग्रहालय की थाती
संग्रहालय में प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक में पराजित दुश्मनों के इस्तेमाल किए गए हथियार और अन्य सामाग्री सजाई गई है। इनमें तलवारों के अलावा 119 बंदूक, 304 मेडल, छह थ्री इंच यूबीएमजी प्रमुख हैं। आजादी से पूर्व के 31 और आजादी के बाद के नौ युद्धों में भाग लेने वाले गढ़वाल रेजीमेंट के सैनिकों की वर्दी, झंडे, सरहदों के मानचित्र आदि निशानियां संग्रहालय को समृद्ध बनाती हैं।
रेजीमेंट के तीन विक्टोरिया क्रास नायक
दरबान सिंह (1914), राइफलमैन गबर सिंह (1915) व लेफ्टिनेंट कर्नल यूडी कैनी (1920) की प्रतिमाएं भी गढ़वाल राइफल्स के गौरवपूर्ण इतिहास की याद दिलाती हैं। विदित हो कि 1948 में तीसरी गढ़वाल राइफल्स ने पाकिस्तान के टिथवाल से पाकिस्तानी सेना को महज चौबीस घंटे में खदेड़ दिया था। वहीं, तीसरी गढ़वाल ने कोकाई की स्पीन धारा रिज में भी जीत हासिल की, जिसके बाद इस रिज का नाम ही गढ़वाल रिज पड़ गया। इन दोनों युद्धों की विजय झलक संग्रहालय में देखी जा सकती है।
संग्रहालय के एक भाग में रेजीमेंट के गठन से लेकर आज तक के 'कर्नल ऑफ द रेजीमेंट' और 'सेंटर कमांडेंट' की तस्वीरें लगी हैं। वहीं, आइएनएस विराट जलपोत का भव्य मॉडल भी रेजीमेंट व आइएनएस विराट के संबंधों को प्रदर्शित करता है। संग्रहालय में 20वीं सदी के प्रारंभ में लैंसडौन में स्थापित टेलीफोन एक्सचेंज के यंत्र, मिलिट्री बैंड के संयंत्र और गढ़वाल राइफल्स के शताब्दी समारोह में पहुंचे तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की कुर्सी भी संरक्षित है। रेजीमेंट की साहसिक व खेल गतिविधियों की उपलब्धियों को लेकर बनाई गई गैलरी भी दर्शकों का ध्यान खींचती है।
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