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जिन्हें अपनों ने ठुकराया, उनका सहारा बनी पौड़ी की ज्योति रौतेला, पढ़िए पूरी खबर

पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लॉक स्थित ग्राम सकमुंडा निवासी ज्योति रौतेला बुजुर्ग का सहारा बनी हैं और उन्‍हें नया ठौर दिया है आशियाना राधा देवी वृद्धाश्रम में।

By Edited By: Published: Mon, 17 Aug 2020 10:58 PM (IST)Updated: Tue, 18 Aug 2020 10:35 AM (IST)
जिन्हें अपनों ने ठुकराया, उनका सहारा बनी पौड़ी की ज्योति रौतेला, पढ़िए पूरी खबर
जिन्हें अपनों ने ठुकराया, उनका सहारा बनी पौड़ी की ज्योति रौतेला, पढ़िए पूरी खबर

लैंसडौन (पौड़ी गढ़वाल), अनुज खंडेलवाल। मठाली निवासी 80-वर्षीय चंडी प्रसाद के भले ही तीन बेटे हों, लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव में उन्हें बहू-बेटों के ताने ही मिले। यहां तक कि दो वर्ष पूर्व उन्होंने चंडी प्रसाद को घर से बाहर निकाल दिया। तब इस बुजुर्ग को सहारा दिया ज्योति रौतेला ने और उनका नया ठौर बना 'आशियाना राधा देवी वृद्धाश्रम'।

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इसी तरह 75-वर्षीय फगुणी देवी पौखाल (जयहरीखाल) की रहने वाली हैं, जबकि शंकुतला देवी लखनऊ में रहती थीं। दोनों का भरा-पूरा परिवार है, लेकिन बुढ़ापे में सहारा देने वाला कोई नहीं। स्वजनों ने दोनों के ही साथ इस कदर क्रूर व्यवहार किया कि उन्हें घर छोड़ने को विवश पड़ा। आज दोनों ही उम्र का आखिरी पड़ाव आशियाना राधा देवी आश्रम में गुजार रही हैं।

यह सिर्फ इन तीन बुजुर्गों की ही नहीं, बल्कि अपनों के ठुकराए उन सभी 36 बुजुर्गों की दास्तान है, जिनका सहारा ज्योति रौतेला द्वारा स्थापित आशियाना राधा देवी आश्रम बना है। इन बुजुर्गों के जीवन में ज्योति उम्मीद की ऐसी किरण बनकर सामने आईं, जिसने उन्हें न सिर्फ जीने का हौसला दिया, बल्कि वो तमाम खुशियां भी दे रही हैं, जिनकी उन्हें जीवनभर हसरत रही।

पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लॉक स्थित ग्राम सकमुंडा निवासी ज्योति रौतेला राजकीय महाविद्यालय जयहरीखाल (लैंसडौन) से बीए करने के बाद वर्ष 1999 में दिल्ली चली गईं और वहां एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगीं। लेकिन, मन में हमेशा टीस रहती थी कि जड़ों से जुड़े रहने और समाज के लिए कुछ किया जाए। सो, वर्ष 2003 में वह गांव वापस लौट आईं।

इसके बाद उन्होंने एन्वायरनमेंट एक्शन फॉर रूरल डेवलमेंट एंड इकोलॉजिकल सोसाइटी (लीडर्स) नाम से एक संस्था रजिस्टर्ड कराई और ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल कैंप लगाने शुरू कर दिए। बकौल ज्योति, 'कैंप में एक बुजुर्ग महिला बिना चप्पल आई थी। मैंने उससे नंगे पैर आने का कारण पूछा तो पता चला कि उसके पास चप्पल खरीदने को पैसे नहीं हैं। मैंने उसे चप्पल खरीदकर दी तो अपनत्व में उसने अपनी सारी पीड़ा बयां कर दी। बताया कि किस तरह स्वजनों ने उसे एकाकी जीवन जीने को छोड़ दिया। महिला की इस पीड़ा ने मेरे मन को विचलित कर दिया और मैंने उसी वक्त संकल्प लिया कि ऐस बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम खोलूंगी। इसके लिए 90 हजार रुपये की पहली मदद मेरी दादी राधा देवी ने की। इसलिए मैंने उन्हीं के नाम पर यह वृद्धाश्रम स्थापित किया है।

चुनौतियों भरा रहा सफर 

जयहरीखाल कसबे के पास ग्राम समखाल में वृद्धाश्रम खोलने में ज्योति को खासी चुनौतियां झेलनी पड़ीं। ग्रामीणों ने न सिर्फ आश्रम का विरोध किया, बल्कि कई लोग इसके विरोध में उनके घर तक पहुंच गए। लेकिन, ज्योति इससे हताश नहीं हुई और वर्ष 2006 में लीडर्स संस्था के नाम से समखाल में आठ नाली जमीन खरीदी ली। वर्ष 2007 में उन्होंने इस भूमि पर भवन निर्माण का कार्य शुरू कराया, जो वर्ष 2014 में बनकर तैयार हुआ। इसके लिए पांच लाख की धनराशि उन्होंने अपने पास से खर्च की। इस दौरान वृद्धाश्रम तक सड़क निर्माण और बिजली-पानी का कनेक्शन लगाने में भी उन्हें ग्रामीणों का विरोध झेलना पड़ा।

आश्रम में दी जानी वाली सुविधाएं 

वृद्धाश्रम में बुजुर्ग महिलाओं को नहलाने, बाल बनाने व उनके कपड़े धोने के लिए अलग से महिला स्टाफ है। बुजुर्गों की नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए फिजियोथेरेपी सेंटर स्थापित किया गया है। साथ ही बुजुर्गों को कैरम, चैस, लूडो जैसे इंडोर गेम्स भी खिलवाए जाते हैं। समय-समय पर उन्हें दर्शनीय स्थलों की भी सैर भी करवाई जाती है।

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हंस कल्चर सेंटर करता है सहयोग

40-वर्षीय ज्योति रौतेला के इस मिशन में लीडर्स के सचिव विमल गुसाईं, संजीव जैन, प्रवीन जैन व अमित सक्सेना ने अहम भूमिका निभाई। आश्रम निर्माण के लिए ज्योति व विमल गुसाईं ने अपने सहयोगियों से फंड एकत्र किया। वर्तमान में हंस कल्चर सेंटर आश्रम को फंडिंग कर रहा है। ज्योति तीन भाई-बहनों में दूसरे नंबर की है। पिता बलवीर सिंह रौतेला केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल से सेवानिवृत्त हैं, जबकि मां हर्षवती देवी गृहणी।

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