ISRO: सूर्य पर होगी 24 घंटे नजर, Mission Aditya L-1 से अंतरिक्ष में लंबी छलांग लगाने को तैयार भारत
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के निदेशक व आदित्य एल-1 मिशन आउटरीच कमेटी के सह अध्यक्ष प्रो.दीपांकर बनर्जी ने बताया कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसरो की यह परियोजना बेहद महत्वपूर्ण है। इस परियोजना पर करीब एक दशक से कार्य चल रहा है।
नैनीताल, एजेंसी। भारत आदित्य एल-1 मिशन के जरिए अंतरिक्ष में लंबी छलांग लगाने को तैयार है। जुलाई में यह मिशन लांच कर दिया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पेलोड समेत सभी उपकरण तैयार कर चुका है और कंपन परीक्षण भी पूरा हो चुका हैं। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का एकीकरण कार्य प्रगति पर है।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के निदेशक व आदित्य एल-1 मिशन आउटरीच कमेटी के सह अध्यक्ष प्रो.दीपांकर बनर्जी ने बताया कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसरो की यह परियोजना बेहद महत्वपूर्ण है। इस परियोजना पर करीब एक दशक से कार्य चल रहा है। कोविड लाकडाउन के कारण इस मिशन में थोड़ा विलंब हुआ है। लेकिन अब यह मिशन अंतिम चरण में पहुंच चुका है।
आदित्य एल-1 मिशन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य सीएमई यानी सूर्य से पृथ्वी की ओर आने वाले सौर तूफानों का निरीक्षण करना है। मल्टी-वेवलेंथ में सौर पवन की उत्पत्ति का अध्ययन करना है। आदित्य एल-1 सुपरसोनिक गति के त्वरण, सीएमई के विकास और अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव का अध्ययन करेगा।
सूर्य के पास अंतरिक्ष यान भेजने वाला भारत चौथा देश होगा
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत चंद्रमा व मंगल ग्रह पर यान भेजकर सफलता पा चुका है। अब बारी सूर्य की है। इस मिशन के बाद सूर्य के पास अंतरिक्ष यान भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अमेरिका, जर्मनी व यूरोपीय स्पेस एजेंसी सूर्य पर यान भेज चुके हैं।
सूर्य पर होने वाली घटनाओं पर 24 घंटे रखी जाएगी नजर
आदित्य को अंतरिक्ष में "लैग्रेंज पाइंट्स" यानी एल-1 कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसके जरिये सूर्य पर होने वाली गतिविधियों का 24 घंटे अध्ययन किया जा सकेगा। एल-1 का आशय अंतरिक्ष में स्थित उन बिंदुओं से होता है, जहां दो अंतरिक्ष निकायों (जैसे सूर्य व पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आकर्षण एवं प्रतिकर्षण का क्षेत्र उत्पन्न होता है। 15 लाख किमी दूर स्थित है एल-1 पृथ्वी से, जबकि सूर्य से पृथ्वी की दूरी 14 करोड़ 96 लाख किमी है।
पेलोड वाला स्पेसक्राफ्ट है आदित्य एल-1
इसे इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है।
सोलर विंड पृथ्वी के वायुमंडल पर क्या असर डालती है, इस पर होगा अध्ययन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष व विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के अलावा अंतरिक्ष आयोग के सदस्य किरण कुमार के अनुसार सूर्य से आने वाली रेडियो विकिरणों का आब्जर्वेशन उदयपुर की सौर वेधशाला से होगा। अब सूर्य से विकिरणों के साथ आने वाले पार्टिकल्स ‘सोलर विंड’ पृथ्वी के वायुमण्डल पर अलग-अलग प्रभाव डालती होंगी, इसका अध्ययन कर फायदे और नुकसान पर शोध हो पाएंगे। नुकसानदेह सोलर विंड की जानकारी मिलते ही हम उसके समाधान कर बड़े नुकसान से बच पाएंगे।
पेंगोंग झील में स्थापित की जा रही प्रयोगशाला
अहमदाबाद भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के निदेशक प्रो. अनिल भारद्वाज ने बताया कि लद्दाख की पेंगोंग झील किनारे स्थापित की जा रही प्रयोगशाला को उदयपुर सौर वेधशाला तैयार कर रही है।
नासा का सैटेलाइट भी एल-1 पर स्थित
नासा की सोलर एंड हेलिओस्फेरिक आब्जर्वेटरी सैटेलाइट एल-1 बिंदु पर ही स्थित है। यह सैटेलाइट नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी की एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परियोजना है।