संस्कृत का भविष्य बचाने को लेकर हल्द्वानी में जुटे संस्कृत कॉलेजों के शिक्षक nainital news
विभिन्न भाषाओं की जननी संस्कृत आखिर क्यों पराई हो गई? इस बात पर मंगलवार को हल्द्वानी में विभिन्न जिलों के संस्कृत विद्वानों के बीच गहन मंथन हुआ।
हल्द्वानी, जेएनएन : विभिन्न भाषाओं की जननी संस्कृत आखिर क्यों पराई हो गई? इस बात पर मंगलवार को हल्द्वानी में विभिन्न जिलों के संस्कृत विद्वानों के बीच गहन मंथन हुआ। विद्वानों ने संस्कृत विद्यालय व महाविद्यालय के अलग-अलग वर्गीकरण, शिक्षकों की कमी, नया पाठ्यक्रम, समान वेतन जैसी दर्जनों समस्याओं पर चर्चा की। जिसके बाद मांगों से संबंधित एक ज्ञापन कुमाऊं मंडल संस्कृत शिक्षा सहायक निदेशक पद्माकर मिश्र के माध्यम से शासन को भेजा गया।
रेलवे बाजार स्थित सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय में प्रादेशिक संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक समिति का अधिवेशन आयोजित किया गया। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. ओम प्रकाश पुर्वाल की अध्यक्षता में दो सत्रों में अधिवेशन हुआ। प्रथम सत्र में राज्य के सभी संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के शिक्षकों व कर्मचारियों की समस्याओं पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि राज्य में संस्कृत द्वितीय राजभाषा घोषित की गई है, मगर विद्यालय वर्षों से संस्कृत शिक्षक विहीन हैं। रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही है। जिसके चलते कई विद्यालय बंद होने की कगार पर हैं। सरकार की अनदेखी का आलम यह है कि निदेशालय एवं संस्कृत परिषद में एक भी अधिकारी स्थायी नहीं है। अधिवेशन के द्वितीय सत्र में प्रादेशिक कार्यकारिणी के गठन पर चर्चा की गई। फरवरी 2020 में प्रादेशिक चुनाव कराने पर सहमति बनी। यहां प्रदेश महामंत्री डॉ. वाणी भूषण भट्ट, संरक्षक राजेंद्र प्रसाद गैरोला, उपाध्यक्ष अनुसूया प्रसाद सुंदरियाल, प्रदेश प्रवक्ता मनोज कुमार द्विवेदी, भुवन चंद्र जोशी, कीर्ति बल्लभ जोशी, नवीन चंद्र जोशी, हरीश चंद्र जोशी, विजय कुमार भट्ट, महेश चंद्र जोशी, तुलाराम जोशी, कृष्ण चंद्र जोशी, डॉ. नवीन चंद्र बेलवाल, डॉ. राजेंद्र भट्ट, हर्षमणि रतूड़ी आदि मौजूद रहे।
ये मांगें प्रमुखता से उठी
- राज्य सरकार द्वारा जल्द से जल्द संस्कृत निदेशक की नियुक्त की जाए
- विद्यालयों में रिक्त पड़े पदों को संस्कृत शिक्षकों से भरा जाए
- शिक्षकों की कमी से बंद हो रहे स्कूलों को बचाया जाए
- संस्कृत विद्यालय व महाविद्यालय का वर्गीकरण किया जाए
- आवासीय विद्यालयों को बजट उपलब्ध कराया जाए
- पाठ्यक्रम में छात्र हितों के मद्देनजर बदलाव किया जाए
- संस्कृत क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को ही संस्कृत शिक्षा निदेशक नियुक्त किया जाए
- प्रदेश व जिला समितियां पारदर्शिता से बनें
- परीक्षा की कॉपियां जांचने का हक माध्यमिक शिक्षकों को भी दिया जाए
- पुराने विद्यालयों के शिक्षकों को नए विद्यालयों के शिक्षकों के बराबर वेतन मिले
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