राज्य आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर कांड के मामले में हाई कोर्ट से न्याय की उम्मीद खत्म
राज्य आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड के मामले में राज्य की सबसे बड़ी अदालत से न्याय की उम्मीद खत्म हो गई है।
नैनीताल, जेएनएन : राज्य आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड के मामले में राज्य की सबसे बड़ी अदालत से न्याय की उम्मीद खत्म हो गई है। हाई कोर्ट ने इस मामले में विचाराधीन याचिका को निस्तारित करते हुए याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट में दायर होने वाली एसएलपी में इन बिन्दुओं को शामिल करने की छूट प्रदान कर दी है।
दरअसल राज्य आंदोलन के दौरान हुए मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहा में आंदोलनकारियों पर पुलिसिया बर्बरता हुई थी। तत्कालीन सरकार की शह पर पुलिस दमन में 28 आंदोलनकारियों की मौत हो गई, जबकि सात महिला आंदोलनकारियों के साथ दुराचार किया गया। इसके अलावा 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ छेड़छाड़ की गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर इस मामले की सीबीआइ जांच हुई। 1996 में सीबीआइ ने मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह व अन्य के खिलाफ विभिन्न धाराओं में चार्ज शीट दायर की। 2003 में डीएम ने नैनीताल हाई कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने उन्हें राहत देते हुए पूरे मामले में स्थगनादेश दे दिया। बाद में 22 अगस्त 2003 को हाई कोर्ट की एकलपीठ ने फैसले को रिकॉल कर दिया। जिसके बाद मामले में सुनवाई नहीं हो सकी। मामले से जुड़ी फाइलें तक गायब हो गई। अधिवक्ता रमन कुमार साह ने मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों पर कार्रवाई को लेकर याचिका दायर की थी।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद याचिका को अंतिम रूप से निस्तारित कर दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस फीसद क्षैतिज आरक्षण का मामला भी हाई कोर्ट निरस्त कर चुका है, जिसे एसएलपी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। अब ताजा फैसले के बाद मुजफ्फरनगर कांड का मामला भी देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचना तय है।
यह भी पढ़ें : नैनीताल सीट से सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने पांच साल में पूछे महज दस सवाल
यह भी पढ़ें : अल्मोड़ा सीट : सांसद अजय टम्टा ने आधे कार्यकाल में पूछे सवाल तो आधे में दिए जवाब