बच्चों को मोबाइल, टीवी, लैपटॉप स्क्रीन का लती बनाकर बीमार कर रहे पैरेंट्स nainital news
कामकाजी व्यस्तता के चलते बच्चों को समय न दे पाने वाले अभिभावक खुद ही उन्हें टीवी मोबाइल फोन व लैपटॉप में व्यस्त कर दे रहे हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : कामकाजी व्यस्तता के चलते बच्चों को समय न दे पाने वाले अभिभावक खुद ही उन्हें टीवी, मोबाइल फोन व लैपटॉप में व्यस्त कर दे रहे हैं। उनकी ये युक्ति बच्चे को स्क्रीन एडिक्शन का आदी बनाने से लेकर क्लीनिकल इंपल्सिव डिसऑर्डर का शिकार बना सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे गंभीरता से लेते हुए गाइडलाइन जारी कर अभिभावकों को चेताया है कि बच्चों को स्क्रीन की लत से दूर रखें। फिलहाल हालात ये है कि दो साल तक के बच्चे रोज दो से तीन घंटे मोबाइल पर बिता रहे हैं, जबकि पांच साल तक के बच्चे मोबाइल के साथ ही टीवी व कंप्यूटर पर भी व्यस्त रहते हैं। दैनिक जागरण ने मनोवैज्ञानिकों से बात की तो पता चला कि क्लीनिकल इंपल्सिव डिसऑर्डर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पहले महीने में एक-दो केस आते थे, अब ये रोज की बात होती जा रही है।
केस-एक
मानसी (बदला नाम) ने ऑफिस में रहते हुए नौ साल के बच्चे से संपर्क बनाए रखने के लिए उसे मोबाइल फोन दे दिया। इससे कुछ दिनों में ही उसके बर्ताव बदलने लगा। मोबाइल फोन लेने पर वह टीवी देखने लगता। खाने व होमवर्क से कतराने लगा। वह मोबाइल के बिना रह नहीं पाता था।
केस-दो
शिल्पी (बदला नाम) सोशल मीडिया पर दिनभर देखती रहती कि उसे कितने लाइक्स मिले। कुछ दिनों में पढ़ाई व सेहत पर बुरा असर दिखने लगा। घर में किसी से बात न करना, अपने कमरे में मोबाइल फोन पर व्यस्त रहना उसकी आदत बन गई। साइकोलॉजिस्ट के परामर्श से उसे मोबाइल फोन से दूर किया जा सका।
ये हैं नुकसान
नींद पूरी नहीं होती।
शारीरिक गतिविधियां कम होने से बजन बढ़ता है।
एक ही स्थिति में घंटों बैठने से सिरदर्द।
साफ न दिखाई देना।
ज्यादा संवेदनशील होना।
काम की जिम्मेदारी न लेना।
हिंसक होना।
डिप्रेशन और चिड़चिड़ा होना।
कैसे बचाएं
- बच्चों के रोल मॉडल बनें। उनके लिए समय निकालें।
- घर में एक एरिया ऐसा बनाएं, जहां गैजेट प्रतिबंधित हो।
- बच्चों को किसी बात के लिए मोबाइल का लालच न दें।
- बच्चों के साथ वॉक करें, योग करें। बच्चों को रोजाना पार्क ले जाएं।
- पेंटिंग, डांस, म्यूजिक आदि की हॉबी जगाएं व क्लास ज्वाइन कराएं।
- घर के कामों में क्षमता अनुसार बच्चों की मदद लें।
- बच्चों को अच्छी स्टोरी बुक दें और उनसे कहानियां सुनें व सुनाएं।
स्क्रीन की लत के लक्षण
- बर्ताव में बदलाव।
- मोबाइल पर अधिक समय देना।
- मोबाइल मांगने पर नाराजगी।
- दूसरों के घर जाकर भी मोबाइल पर समय बिताना।
- टॉयलेट में मोबाइल ले जाना।
- बेड में साइड पर मोबाइल रखकर सोना।
- दूसरों से कटे-कटे रहना।
- खेल के मैदान में भी मोबाइल ले जाना।
- पढ़ाई व खेलकूद में मन न लगना।
- पढ़ाई में नंबर कम आना।
डिजिटल डी-टॉक्सिफिकेशन जरूरी
एसटीएच के मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत घर में डिजिटल डी-टॉक्सिफिकेशन जरूरी बताते हैं। जैसे हफ्ते में एक दिन और महीने में चार दिन गैजट मुक्त रहना तय करें। इस दौरान फैमिली के साथ गेम खेलें। ध्यान रहे इस दौरान टीवी, मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि गैजट को हाथ भी नहीं लगाना है। तीन-चार साल तक के बच्चे को मोबाइल फोन से दूर रखें। पांच से 12 साल के बच्चे को रोजाना 90 मिनट से ज्यादा स्क्रीन नहीं देखनी चाहिए।
शौक बाद में बन जाती है लत
मनोवैज्ञानिक डॉ. नेहा शर्मा कहती हैं कि अक्सर पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल फोन दे देते हैं। कभी खाना खिलाने के लालच में तो कभी काम के लिए। कभी बच्चों को कविता, डांस आदि सिखाने के लिए। ये शौक बाद में लत बन जाती हैं। स्क्रीन एडिक्शन भी नशे की लत जैसा ही है। ड्रग्स, एल्कोहल, जुआ आदि की तरह ही यह क्लीनिकल इंपल्सिव डिसऑर्डर है।
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