नरेश कुमार, नैनीताल : Nainital News: सरोवर नगरी में हरियाली सिमटने के साथ ही तेजी से कंक्रीट का जंगल बनने लगा है। प्राधिकरण के गठन के बाद भी अवैध निर्माणों का सिलसिला यहां बढ़ता जा रहा है। भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील शहर में बेतरतीब अवैध निर्माणों के खेल से शहर को खतरे के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। शहर धंस रहा है। कहीं यह भी दूसरा जोशीमठ न बन जाए।
ब्रिटिशराज में पानी की निकासी को शहर की पहाड़ियों पर 68 नालों के निर्माण के साथ ही भवन निर्माण की प्रकिया को जटिल बना दिया गया। जिससे शहर में अनियोजित निर्माण पर लगाम लगी रही। आजादी के बाद शहर पर्यटन क्षेत्र में पहचान बनाने लगा। 70 के दशक के बाद तो शहर में अंधाधुंध तरीके से निर्माण कार्य होने लगे। नतीजतन शहर अब कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुका है।
आखिर क्यों मौन रहे जिम्मेदार
90 के दशक में झील विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। किसी भी क्षेत्र में भवन निर्माण कार्य करने से पूर्व प्राधिकरण से अनुमति लेना अनिवार्य हो गया लेकिन प्राधिकरण गठन के बाद निर्माण कार्यों पर अंकुश तो नहीं लगा उल्टे अवैध निर्माणों की बाढ़ जरूर आ गई। प्राधिकरण कर्मियों की शह पर शहर में वैध-अवैध तरीके से निर्माण कार्यों में बेतहाशा वृद्धि दर्ज की गई। गैर कानूनी निर्माण के विरुद्ध नैनीताल बचाओ संघर्ष समिति ने आंदोलन भी किया, मगर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया।
महज नोटिस तक सिमटी कार्रवाई
अवैध रूप से किये गए निर्माण कार्यो पर निर्माणकर्ताओं को विभाग की ओर से नोटिस तो जारी किए गए, मगर गिने चुने निर्माणों को छोड़ कहीं भी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की गई। जिस कारण निर्माणकर्ताओं के हौसले बुलंद हो गए।
विभाग की ओर से नोटिस और निर्माण सील होने के बाद भीतर ही भीतर निर्माण कर आलीशान भवन खड़े कर दिये गए। जिसके बाद सील तोड़ निर्माणकर्ता भवनों में निवास भी करने लगे। वर्तमान में अवैध रूप से निर्मित सैकड़ों भवनों में लोग निवास कर रहे हैं। नये अवैध निर्माणों को लेकर भी प्राधिकरण चुप्पी साधे हुए है।
भयावह रहा है भूस्खलन का अतीत
शहर की बसासत के साथ ही
भूस्खलन की भी शुरूआत हो गई थी। पर्यावरणविद व इतिहासिकार डा. अजय रावत बताते हैं कि शहर की संवेदनशीलता को देखते हुए 1867 में ही हिल साइड सेफ्टी कमेटी का गठन हो गया था। जिसमें शहर को तीन श्रेणियों क्रमश: सुरक्षित, डेंजर और असुरक्षित जोन के रूप में विभाजित किया गया।
1880 में आल्मा की पहाड़ी पर हुए भूस्खलन ने 151 लोगों का जीवन लील लिया। शहर में अवैध निर्माण पर लगाम लगाने के लिए काफी प्रयास किये गए। 90 के दशक में सेव नैनीताल के नाम से कार्यशाला आयोजित की गई। जिसमें भूवैज्ञानिक, फारेस्ट्री समेत तमाम विषय विशेषज्ञों ने सर्वे रिपोर्ट सामने रखी।
डा. केएस वाल्दिया ने जियोलाजी, डीपी जोशी ने फारेस्ट्री और अतीत से तत्कालीन समय तक के भूस्खलन अध्ययन को सामने रखा था। जिसमें भूस्खलन का मुख्य कारण निर्माण कार्यों व वाहनों के संचालन को बताया गया। कार्यशाला की सिफारिशों का कोई संज्ञान सरकारी तंत्र ने नहीं लिया।