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गुलदारों का बदल रहा व्यवहार, भविष्‍य में बढ़ेगा मानव-वन्यजीव संघर्ष

गुलदारों का बदल रहा व्यवहार जीव वैज्ञानिकों को हैरानी में डाल रहा हैं। गुलदार अब पूरे परिवार के साथ दिखाई देने लगा हैं। शिकार के लिए बस्तियों पर निर्भरता भी खतरनाक हो रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 12 Oct 2018 07:26 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 09:05 PM (IST)
गुलदारों का बदल रहा व्यवहार, भविष्‍य में बढ़ेगा मानव-वन्यजीव संघर्ष

चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर : गुलदारों का लगातार बदल रहा व्यवहार जीव वैज्ञानिकों को हैरानी में डाल रहा हैं। एकाकी रहने वाला गुलदार अब पूरे परिवार के साथ दिखाई देने लगा हैं। यही नहीं शिकार के लिए बस्तियों पर निर्भरता भी खतरनाक साबित हो रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आने वाले समय में गुलदार व मानव के बीच संघर्ष और बढऩे की आशंका प्रबल दिखने लगी है।

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गुलदार को लेकर किए गए पुराने वैज्ञानिक अध्ययन अब गलत साबित होने लगे हैं। गुलदार एकाकी जीव है। वह अकेला रहना पसंद करता है और अकेले ही शिकार करता है। नर गुलदार का इलाका 48 वर्ग किमी व मादा गुलदार 17 वर्ग किमी होता है। अगर कोई गुलदार उसके इलाके में घुस जाए तो इनमें संघर्ष हो जाता है। ऐसे में कमजोर की मौत निश्चित है। एक मादा गुलदार तीन से चार तक शावकों को जन्म देती हैं। यह शावक मादा के साथ करीब 18 महीने तक रहते हैं। इसके बाद प्राकृतिक रुप से सब अलग-अलग हो जाते हैं। 

समय के साथ दिखने लगा बदलाव

समय के साथ अब गुलदार व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देने लगा है। 50 गुलदार व दो बाघों का शिकार कर चुके शिकारी लखपत सिंह कहते हैं कि अब इनका व्यवहार आश्चर्यचकित करता हैं। अब गुलदार झुंड में दिखाई दे रहे हैं। बागेश्वर, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल आदि जगहों पर आदमखोर को मारने गया तो तब यह दिखाई दिया। पहले जिस इलाके में आदमखोर होता था वहां पर एक ही गुलदार होता था। अब यह दो से तीन एक साथ रह रहे हैं। अपना शिकार भी साझा करते दिखाई दे रहे हैं। जो पुराने अध्ययनों को चुनौती दे रहा हैं। 

मानवों का वन्यजीवों से बढ़ेगा संघर्ष

गुलदार खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर आता हैं। लेकिन, अब जंगल और वहां रहने वाले जीव-जंतु लुप्त होते जा रहे हैं। मादा गुलदार जब शावकों को जन्म देती है तो जंगल में उसके खाने के लिए कोई कुछ नहीं होता। वह आसान शिकार की तलाश में आदम बस्तियों में शावकों को साथ लेकर आ रही हैं। मां के साथ शावक अब जंगल में शिकार करना नहीं सीख रहे, बल्कि इंसान की बस्तियों में शिकार करना सीख रहे हैं। इसलिए वह भी बड़े होकर शिकार के लिए आदम बस्तियों में ही स्वभाविक रुप से आने लगे हैं। लगातार आने से उनका मानवों के प्रति डर खत्म हो जाता हैं।

व्यवहार में अंतर

झुंड में दो-तीन गुलदार एक साथ दिखाई देना।

शिकार को लेकर गुलदारों की साझेदारी।

शिकार के लिए आदम बस्तियों पर निर्भरता।

जैव विवधता के खत्‍म होने का संकेत

डॉ. रमेश बिष्ट, पर्यावरणविद् एवं वन्यजीव जन्तु प्रेमी ने बताया कि गुलदार का व्यवहार बदल रहा है। जो जैव विविधता खत्म होने की ओर संकेत हैं। जंगल अब बचे नहीं हैं। इसलिए उनका स्वभाव, व्यवहार बदल रहा हैं। यह पर्यावरणीय संकट की भी चेतावनी हैं।

कुछ महीने पहले गुलदार को लेकर आई थी चौंकाने वाली रिपाेर्ट

वन्‍य जीव संघर्ष की घटनाएं प्रदेश में निरंतर बढ़ती जा रही हैं। आबादी क्षेत्र में गुलदाल के घुसने की पिछले दिनों कई घटनाएं सामने आईं, जो जैव विविधता के लिए चुनौती बनी हुई है। कहीं कुछ महीनों पहले आई एक रिपोर्ट ने वन्‍य जीवों के संरक्षण को लेकर भी सवाल खड़ा कर दिया था।वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में गुलदार को लेकर जो बातें सामने आईं वे प्रदेश में वन्‍यजीवों के सरक्षण को लेकर तमाम सवाल खड़े करती हैं। उत्तराखंड इस साल गुलदारों की मौत के मामले में देश में नंबर वन पर आ गया था। जनवरी से मार्च तक 29 गुलदार विभिन्न कारणों से मर गए । रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में इस वर्ष जनवरी से मार्च तक 127 गुलदार मारे गए हैं। जिसमें सर्वाधिक मौत उत्तराखंड में 29 दूसरे नंबर पर 25 की संख्या के साथ महाराष्ट्र और 13 मौतों के साथ राजस्थान तीसरे नंबर पर है। 

सर्वाधिक मौतें हो रहीं आपसी संघर्ष के कारण

गुलदारों की मौत के पीछे सबसे बड़ा कारण आपसी संघर्ष, मानव गुलदार संघर्ष और दूसरे नंबर पर जानवरों से संघर्ष है। करीब पचास प्रतिशत गुलदार इसमें मारे गए हैं। शिकार के कारण भी गुलदार मारे गए। इसमें सबसे ज्यादा मौतें फंदे से और जहर से हुई। 

शिकारियों पर सख्‍त हुआ महकमा  

गुलदारों की सबसे ज्यादा मौत संघर्ष में होती है। फंदा और जहर देकर भी काफी गुलदार मारे जाते हैं। मानव वन्यजीव संघर्ष रोकने को जर्मनी से मदद ली जा रही है। लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। इसके अलावा शिकार पर अंकुश के लिए सतर्कता बढ़ाई जा रही है। 

नौ से 12 साल के बीच के गुलदार मारे गए 

मारे गए ज्यादातर गुलदारों की उम्र 9 से 12 साल के बीच है। विशेषज्ञों के अनुसार गुलदार की अधिकतम आयु करीब 12 साल है। आठ साल के बाद वह कमजोर होने लगता है और आसानी से शिकार नहीं कर पाता। ऐसे में वह या तो भूख या अन्य जानवरों से संघर्ष में मारा जाता है। 

फंदा देकर या जहर होकर गुलदारों की मौत 

वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी आफ इंडिया के प्रोग्राम कोआर्डिनेटर टीटो जोजेफ ने बताया कि इस साल अब तक देश भर में 127 और उत्तराखंड में 29 गुलदार मारे जा चुके हैं। यह जानकारी खाल बरामदगी से पता लगी है। ऐसी खालों की फॉरेंसिक जांच के बाद मौत की असल वजह सामने आएगी। अब तक बाकी मौतें आपसी संघर्ष या शिकार के लिए फंदा देकर या जहर देकर हुई।

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