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उद्वयोग, रोजगार और कृषि को चाहिए खाद-पानी, इनके अभाव में कैसे होगा कुमाऊं का विकास

बात बिजली आपूर्ति की हो पार्किंग या रोड-ड्रेनेज सिस्टम की इन बुनियादी सुविधाओं में लालफीताशाही ने सिडकुल की बुनियाद हिला दी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 12:18 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 12:18 PM (IST)
उद्वयोग, रोजगार और कृषि को चाहिए खाद-पानी, इनके अभाव में कैसे होगा कुमाऊं का विकास
उद्वयोग, रोजगार और कृषि को चाहिए खाद-पानी, इनके अभाव में कैसे होगा कुमाऊं का विकास

उद्योग : सुविधाओं की उम्मीद में सिडकुल

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नीैनीताल, जेएनएन, बात बिजली आपूर्ति की हो, पार्किंग या रोड-ड्रेनेज सिस्टम की, इन बुनियादी सुविधाओं में लालफीताशाही ने सिडकुल की बुनियाद हिला दी है। ऊर्जा प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखंड में उद्योग बिजली कटौती से जूझ रहे हैं। बिजली के दाम बढ़ रहे हैं जमीन की कीमत आग उगल रही है, जिससे नए उद्योग यहां आने से कतरा रहे हैं। उद्यमियों की मानें तो बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी उद्योगों के विकास में बड़ी बाधा है। तराई उद्योगों का बड़ा ठिकाना है। पंतनगर और सितारगंज सिडकुल को ही ले लें तो यहां साढ़े पांच सौ से अधिक उद्योग चालू हाल में हैं। इनसे दो लाख से अधिक लोगों का रोजगार जुड़ा है। जब उद्योग यहां आए तो लंबे-चौड़े वादे हुए। टैक्स में छूट से लेकर भविष्य के तमाम सपने दिखाए गए लेकिन आज हाल बुरा है। बुनियादी सुविधाएं तक उद्योगों को मुहैया नहीं हो पा रही हैं। सड़क की बात करें तो गहरे गड्ढे यहां की हालत बयां कर रहे हैं। बरसात में तो और भी मुश्किलों के दौर से उद्यमी और श्रमिक गुजरते हैं। यही हाल बिजली का है। बेवक्त की कटौती उत्पादन को प्रभावित कर रही है। पिछले दिनों यह मामला जोर-शोर से उठा भी था। तब सरकार ने वादा किया था लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। आज श्रमिक आंदोलनों से जूझ रहा सिडकुल कई सवाल राजनीतिक दलों से कर रहा है। उद्यमी कहते हैं कि ऊर्जा प्रदेश में ही जब ऊर्जा का यह हाल होगा तो भला उद्योग कैसे चलेंगे। उन्होंने बिजली दरों को बढ़ाने की सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए। यह भी कहा कि जब तक सस्ती दर पर उद्योगों को जमीन नहीं मिलेगी, नए उद्योग सिडकुल में आने से रहे। कुछ उद्यमियों ने श्रमिक आंदोलनों का राजनीतिकरण किए जाने पर भी सवाल उठाए, साथ ही प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा किया। 

कई उद्योग ले चुके विदाई

सुविधाओं का अभाव और अनदेखी ही कहेंगे कि कई उद्योग सिडकुल से विदाई ले चुके हैं। इनमें एस्कार्ट, एचसीएल, तोशा, यूएसएस फूड, भास्कर जेनसेट प्रमुख हैं। इनके जाने से हजारों श्रमिकों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ा है। वहीं कई उद्योग ऐसे भी हैं जो आखिरी सांसें गिन रहे हैं।  

समाधान के तरीके

1 - उद्योगों को विशेष पैकेज उपलब्ध कराना

2 - नए उद्योगों के लिए प्रोत्साहन नीति लागू करना

3 - सिंगल विंडो सिस्टम को बेहतर तरीके से क्रियान्वित करना

4 - लघु व मध्यम उद्योगों को विकसित करने के लिए ठोस नीति बनाना

रोजगार : ताकि भटकते न रहें युवा

नैनीताल संसदीय क्षेत्र में बेरोजगारी बड़ा चुनावी मुद्दा है। नैनीताल व ऊधमसिंह नगर जिलों के जिला सेवायोजन कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार दोनों जिलों में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या क्रमश: 94602 व 82082 है। नैनीताल में बेरोजगारी दर 11.90 प्रतिशत जबकि ऊधमसिंह नगर में 16.10 प्रतिशत है। कृषि क्षेत्र सिमटने, लघु व कुटीर उद्योगों के बंद होने से बेरोजगारी बढ़ी है तो प्रतिभा पलायन तेज हो रहा है। सरकारी विभागों में ही 30 से 50 फीसद तक पद रिक्त हैं। संविदा व दैनिक व आउट सोर्स कर्मियों से जैसे-तैसे काम चलाया जा रहा है। स्वरोजगार को लेकर तमाम ऋण योजनाएं संचालित हैं मगर बैंकों का रवैया बेरोजगारों को लेकर बदला नहीं है। स्वरोजगार से संबंधित ऋण योजनाओं का लाभ उन्हीं उद्यमियों या लाभार्थियों को दिया जाता है, जिनसे बैंकों को फायदा नजर आता है। निर्माण सेक्टर में बाहरी राज्यों के श्रमिकों की वजह से स्थानीय कामगार खाली हाथ बैठे हैं। स्थानीय स्तर पर अप्रशिक्षित बेरोजगारों को प्रशिक्षित करने के लिए कारगर सिस्टम नहीं है। विवि-कॉलेजों में प्लेसमेंट सेल बने तो हैं मगर रोजगार दिलाने में उनकी भूमिका ही नहीं है। ग्रामीण विकास में बड़े पैमाने पर रोजगार मिलता रहा है। मनरेगा में हर साल सौ दिन रोजगार की गारंटी है मगर यह भी लक्ष्य से भटक गई। ग्रामीण क्षेत्र के अप्रशिक्षित बेरोजगारों के सामने रोजगार का कोई विकल्प नहीं है। सरकार ने योजनाएं तो बनाई हैं मगर उनका लाभ सुनिश्चित करने का सिस्टम विकसित नहीं किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में कॉमन सर्विस सेंटर तो खुले हैं मगर इंटरनेट सेवा की तकनीकी गड़बड़ी की वजह से सेवाएं ठप रहती हैं। इस वजह से इनमें रोजगार पाए युवा भी बेरोजगार की श्रेणी में आ गए हैं। सरकारी निर्माण संस्थाओं, मसलन लोनिवि, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग, लघु सिंचाई, जल निगम, जल संस्थान आदि में कामगारों के बजाय अधिकांश कामकाज मशीन से हो रहा है। ऐसे में रोजगार के अवसर कम हुए हैं। मोबाइल-इंटरनेट क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर तो सृजित हुए हैं मगर फिर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। जब तक सरकारी विभागों की रिक्तियों को नहीं भरा जाता, रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं किए जाएंगे तो समस्या विकराल होती जाएगी।

समाधान के तरीके

1- कौशल विकास की ठोस योजना बनाना

2- तकनीकी व रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा देना

3 - नए-नए उद्योगों को बढ़ावा देना होगा

4 - क्षेत्रीय उत्पादों व हस्तनिर्मित उत्पादों को बढ़ाना देना

कृषि : सिंचाई को चाहिए पानी व तकनीक

नैनीताल और ऊधमसिंहनगर में 1,57,522 किसान निवास करते हैं, जिनमें तकरीबन 14397 महिला किसान हैं। अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के चलते यह लोकसभा क्षेत्र कृषि, पशुपालन व दुग्ध उत्पादन में अलग स्थान रखता है। धान और गेहूं उत्पादन के साथ ही दुग्ध उत्पादन में नैनीताल पहले और ऊधमसिंह नगर प्रदेश में दूसरे पायदान पर है। जाहिर है यहां किसानों के अपने मुद्दे हैं, जिनमें सबसे ज्यादा जरूरी है कि 49626 हेक्टेयर असिंचित कृषि भूमि में सिंचाई का पानी पहुंचाना और आधुनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सस्ती दरों पर खाद, बीज और कृषि उपकरण उपलब्ध कराना।

तराई-भाबर के किसान सिर्फ धान व गेहूं की स्थानीय जरूरत ही पूरी नहीं करते, बल्कि कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों व गढ़वाल क्षेत्र में भी ज्यादातर गेहूं-चावल की आपूर्ति इसी क्षेत्र से होती है। ऊधमसिंह नगर में 104245 व नैनीताल के मैदानी भाग में 10829 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान उत्पादन किया जाता है। प्रदेश के अन्य जिलों के मुकाबले यह सबसे बड़ा क्षेत्र है जहां 373107 मीट्रिक टन धान उत्पादन होता है। खेतों में पसीना बहने वाले किसान प्रदेश के अन्य जिलों के लिए भी अन्नदाता साबित हो रहे हैं, जबकि सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। कृषि के साथ ही यह क्षेत्र पशुपालन के लिहाज से भी बड़ा क्षेत्र है, जिसमें लगभग एक लाख लोग प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर दुग्ध उत्पादन से जुड़े हैं। सिंचाई के बाद दूसरी बड़ी समस्या जंगली जानवरों की है। जंगल से सटे ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त इंतजाम न होने से जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। विगत वर्ष में हल्द्वानी के गौलापार इलाके में खेतों में हाथियों के झुंड घुसने की पंद्रह से ज्यादा घटनाएं हुई। इसी तरह अन्य क्षेत्र भी हैं जहां जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा के लिए इंतजाम की दरकार है।

समाधान के तरीके

1- उच्च कीमत के कृषि उत्पादों पर सब्सिडी दी जाए

2 - उर्वरक व बिजली पर भी विशेष छूट दी जाए

3- सिंचाई के लिए ठोस व्यवस्था की जाए

4- क्षेत्रीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विशेष नीति बने

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