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खेती बनेगी पहाड़ आए युवाओं के रोजगार का जरिया, आइआएम काशीपुर संभावनाओं पर कर रहा शोध

कोरोना संक्रमण ने चुनौती देने के साथ तो अवसर भी प्रदान किया है। लाखों की संख्या में युवा रिवर्स पलायन कर अपने घर-गांव लौट चुके हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 08 May 2020 04:41 PM (IST)Updated: Fri, 08 May 2020 04:41 PM (IST)
खेती बनेगी पहाड़ आए युवाओं के रोजगार का जरिया, आइआएम काशीपुर संभावनाओं पर कर रहा शोध
खेती बनेगी पहाड़ आए युवाओं के रोजगार का जरिया, आइआएम काशीपुर संभावनाओं पर कर रहा शोध

काशीपुर, अभय पांडेय : कोरोना संक्रमण ने चुनौती देने के साथ तो अवसर भी प्रदान किया है। लाखों की संख्या में युवा रिवर्स पलायन कर अपने घर-गांव लौट चुके हैं। इन युवाओं के हाथों में हुनर और प्रतिभा दोनों है। जरूरत है एक मौका मिलने की। आइआएम काशीपुर की विंग इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप टीम व कृषि शोध संस्थान अवसर दिलाने वाली संभावनाओं पर ही शाेध कर रहे हैं। आइआइएम का कहना है कि फिलहाल पर्यटन उद्योग को फिर से पंख लगने में साल भर का समय लगा सकता है। ऐसे में कृषि युवाओं के लिए सुनहरा अवसर हो सकता है। एकीकृत कृृषि, आर्गेनिक खेती, बेमौसमी कृषी उत्पादन ऐसे विकल्प बनेंगे जो एक बार फिर पहाड़ो पर विरान पड़े गांवों को पुर्नजीवित कर देंगे। उत्तराखंड में औद्दोगिक कृषि की सबसे ज्यादा संभावना बताई जा रही है।

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आईआइएम काशीपुर व कृषि विज्ञान केन्द्र ने सुझाए विकल्प

आइआइएम के विंग इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप टीम डायरेक्टर सफल बत्रा के निर्देशन में रिवर्स पलायन पर रिर्सच कर रही है। टीम के सदस्य शिवेन्द्र का कहना है कि उत्तराखंड पलायन आयोग के मुताबिक, कोरोना महामारी के चलते 59,360 से ज्यादा लोग विभिन्न प्रदेशों से उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में अपने गांवों में लौट आए हैं। इस आबादी में तकरीबन 70 प्रतिशत आबादी में 25 से 45 के वर्ष के युवा हैं। वर्तमान हालात देखते हुए इतनी बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए कृषी सबसे बड़े विकल्प के रूप में सामने आया है। आज के हालात में पर्यटन उद्योग को फिर पंख लगने में तकरीबन एक साल तक का समय लग सकता है ऐसे में इन युवाओं को कृषि से जोड़ना सबसे बेहतर विकल्प होगा।

कृषि विज्ञान केंद्र ने माना कृषि सबसे मुफिद

कृषि विज्ञान केन्द्र काशीपुर के प्रभारी जितेन्द्र क्वात्रा का कहना है कि उत्तराखण्ड में 75% से अधिक जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। जिसका योगदान राज्य के घरेलू उत्पाद में 22.4% है (एक नजर में उत्तराखंड, 2013-14)। राज्य में शुद्ध बुवाई क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्र का केवल 13.52% है। उत्तराखण्ड का पहाड़ी क्षेत्र जैव-विविधता में समृद्ध स्रोत के साथ कृषि के लिए महान क्षमता रखता है। वर्तमान हालात में राज्य के जिन जिलों में सबसे ज्यादा रिवर्स पलायन हुआ है उनमें उनमें पौड़ी, अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, टिहरी, उत्तरकाशी, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, नैनीताल और चमोली शामिल हैं। वर्तमान हालात में सरकार को कृषी क्षेत्र में प्रोत्साहन देने की जरूरत है। क्योंकि कृषि ही फिलाहल वह माध्यम नजर आ रहा है जो युवाओं पलायन रोककर उन्हें अवसर प्रदान कर सकता है। इसके लिए कृषि के नए विकल्पोें पर विचार करना होगा।

पलायान रोकने को सुझाएं गए मॉउल

एकीकृत कृषि प्रणाली

पहाड़ों पर एकीकृत कृषि पर फोकस किए जाने की जरूरत है । किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाने के लिए किसानों को जागरूक करने की जरूरत है। इस प्रणाली में कृषि के साथ ही पशुपालन, बागवानी, हर्बल खेती, मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन, मुर्गीपालन, वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और पौध नर्सरी को शामिल किया गया है। इसका फायदा यह है कि किसान सिर्फ एक उत्पादन पर निर्भर नहीं रहता।

पहाड़ों पर बैमोसमी सब्जी उत्पादन

भारत में इस समय बैमोसमी सब्जी का काफी मांग हैं। अब सब्जियां एक सीजन की नहीं हैं। पहाड़ पर प्रकृति की देन है कि मैदानी इलाकों के मुकाबले यहां गर्मियों में टमाटर, शिमला मिर्च, ब्रोकली, यूरोपिन वेजटेरियन का उत्पादन किया जा सकता है।

औषधीय खेती बनेगा विकल्प

लेहमन ग्रास, गुलाब का तेल मंहगे दर पर मिलता है। इसके अलावा आर्गेनिक टी व काफी का उत्पादन भी पहाड़ों पर किया जा सकता है। ऐसे बहुत से आैषधीय हैं जिनका उत्पादन के जरिये युवाओं को जोड़ा जा सकता है। जैविक खेती से पैदा हुए फसलों की मांग इस समय पूरे भारत में तेजी से बढ़ा है। पहाड़ के अपने फसल उत्पादन मुनस्यारी के राजमा के दिवाने विदेशों में भी हैं। यूरोप-अमेरिका तक यहां के राजमा की मांग है। इसी प्रकार मडुवा की खेती राजमा, सेम, रामदाना है। मंडुवा से बनने वाले विभिन्न प्रोउेक्ट की सबसे ज्यादा खपत जापान में किया जाता है।

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