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    29 सालों में इतनी घटी नैनी झील की औसत गहराई, जानिए वजह

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    Updated: Thu, 16 Aug 2018 08:54 AM (IST)

    नैनी झील की औसत गहरार्इ पिछले 29 सालों में 1.62 मीटर घटी है। नालों से बहकर आने वाला मलबा इसकी मुख्य वजह मानी जा रही है।

    29 सालों में इतनी घटी नैनी झील की औसत गहराई, जानिए वजह

    नैनीताल, [किशोर जोशी]: देश-विदेश के आकर्षण की केंद्र नैनी झील की औसत गहराई में कमी आ रही है। आलम यह है कि पिछले 29 सालों में झील की औसत गहराई 1.62 मीटर घटी है। नालों से बहकर आने वाला मलबा इसकी मुख्य वजह मानी जा रही है। झील की अधिकतम गहराई भी 15 सेमी कम हुई है। 

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    दरअसल, मंडलायुक्त राजीव रौतेला ने झील संरक्षण को लेकर आयोजित बैठक में सिंचाई विभाग से नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाईड्रोलॉजी देहरादून से झील की गहराई, लंबाई चौड़ाई आदि के अध्ययन करवा कर रिपोर्ट मांगी थी। एनइएच की ओर से झील के सर्वेक्षण के बाद रिपोर्ट सिंचाई विभाग को भेजी है। ख्याति प्राप्त संस्थान से 1989 के बाद झील का अध्ययन किया गया है। 

    तीन साल पहले तत्कालीन डीएम दीपक रावत ने सिंचाई विभाग से गहराई मापने को कहा था तो विभाग ने रस्सी से गहराई मापी थी। सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता मदन मोहन जोशी के अनुसार अध्ययन रिपोर्ट में झील की औसत गहराई 2018 में 16.90 मीटर बताई है, जबकि 1989 में यह 18.52 मीटर थी। इस प्रकार पिछले करीब तीन दशक में झील की औसत गहराई में 1.62 मीटर की कमी आई है। कैचमेंट क्षेत्रफल भी घटा रिपोर्ट में कहा गया है कि झील के कैचमेंट क्षेत्र के क्षेत्रफल में पिछले तीन दशक में कमी आई है। 1989 में कैचमेंट का क्षेत्रफल 3.63 किमी था जो 2017 में घटकर 3.27 वर्ग किमी हो गया। 

    पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत बताते हैं कि जलागम क्षेत्रफल कम होने की वजह लड़ियाकांटा प्रतिबंधित क्षेत्र को हटाना हो सकता है। अध्ययन रिपोर्ट के निष्कर्ष झील की अधिकतम गहराई 1989 में 27.30 मीटर 2018 में 27.15 मीटर, अंतर मात्र-15 सेमी। झील की लंबाई-एक किमी चार सौ मीटर। चौड़ाई-450 मीटर, झील का सतही क्षेत्रफल-0.46 वर्ग किमी। मशीन से किया डेफ्थोमेट्री सर्वे सिंचाई विभाग के एई एमएम जोशी बताते हैं कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाईड्रोलॉजी के विशेषज्ञों द्वारा महंगी मशीनों से झील की गहराई समेत अन्य जानकारी जुटाई है। मशीन से झील के अलग-अलग हिस्सों की गहराई मापी और फिर गणितीय विधि से औसत गहराई निकाली। 

    यहां बता दें कि पाषाण देवी मंदिर के समीप से मध्य तक के क्षेत्रफल में सर्वाधिक गहरी है। गहराई कम होना खतरे का संकेत पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत ने कहा कि नैनीताल झील की औसत गहराई गम होना बड़े खतरे का संकेत है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2030 में देश के 40 फीसद लोगों को पीने योग्य पानी नहीं मिलेगा। उत्तराखंड को वाटर टावर ऑफ नॉदर्न इंडिया कहा जाता है। नैनीताल लेक रिजन का क्षेत्रफल 200 वर्ग किमी है। इस क्षेत्र में 60 झील व वेंटलेंड थे। इसको छकाता भी कहते थे। वैटलेंड सूखाताल, अयारपाटा क्षेत्र, शेर का डांडा, स्नोव्यू आदि में अतिक्रमण हर हाल में रोकना होगा।

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